"आईडिया सेलुलर" का एक प्रचार आया था ..जिसमे 'भूमिहार और कुर्मी' की लड़ाई दिखाई गयी थी ! एन डी टी वी - इंडिया ने एक छोटी रिपोर्ट भी बनाई थी ! 'आईडिया' के श्रीवास्तव जी बहुत खुश होकर रविश को बता रहे थे - कितना 'क्रिएटिव' प्रचार है ! अब यह सच्चाई हो गयी है ! सत्ता में भागीदारी को लेकर लड़ाई तेज़ है ! पर यह लड़ाई सिर्फ 'भूमिहारों' तक ही सीमित नहीं है - नितीश के खिलाफ कायस्थो के महनायक शोट गन सिन्हा प्रथम दिन से ही 'मोर्चा' खोले हुए हैं ! ब्राह्मणों ने काफी पहले से शंख नाद शुरू कर दिया था ! बहुत मामूली वोट से हारने के बाद कल तक संसद में नितीश की आवाज़ बुलंद करने वाले 'प्रभुनाथ' की आवाज़ उनकी जाति में 'धिक्कार' के रूप में गूँज रही है ! 'ललन' को किनारा कर - 'नितीश' ऐसे खुश हैं जैसे - किसी लंगड़े ने बिना "बैसाखी" चलना शुरू कर दिया हो ! पर शिवानन्द को यह आशा है की बिहार की 'राजनीती' में बिना बैसाखी बैठा तो जा सकता है पर 'दौड़ा' नहीं जा सकता !
जात की राजनीति बिहार , भारत या विश्व के लिए नया नहीं है ! ये होता आया है और किसी न किसी रूप में यह हमेशा रहेगा ! नितीश से खुश देश की राजधानी में बैठे - पत्रकार लोग विकास की दुहाई दे रहे हैं ! देना भी चाहिए ! कुछ भी गलत नहीं है ! लेकिन क्या १५ साल तक बिहारी बेवकूफ बने रहे - लालू-रबरी को गद्दी पर बैठा कर ! मेरा ऐसा मानना नहीं है ! लालू ने कभी विकास की बात नहीं की - और उन्होंने 'विकास' के नाम पर कभी वोट नहीं माँगा ! उन्होंने हमेशा दबे कुचले की बात की और एक नया सामाजिक समीकरण बनाया - "माई" का ! इसमे ऐसा फेवोकोल लगा की वो १५ साल तक वो हिले दुले नहीं ! 'सवर्ण' की हमेशा खिलाफ करने वाले - नितीश कुमार जब १९९४ में 'कुर्मी' महारैली में गरज रहे थे - तो मुझे याद है - डर से पटना के सभी सवर्ण घर अन्दर से बंद कर लिए गए थे ! सरकार के नाच के नीचे - दहशत का वातावरण ! पूरा पटना में लाउड-स्पीकर लगा था ! नए बिहार में यह सब से पहला जातिगत आधार का 'महारैली' था ! नितीश स्वाभिमानी हैं ! अड़े रहे - सवर्ण से खुद को दूर किये रहे ! सवर्णों के पास कोई उपाय नहीं रहने के कारन - वोह धीरे धीरे भाजपा में घुसने लगे - या फिर निर्दलिये उम्मीदवार ! १९९५ और २००० के चुनाव में नितीश बिना सवर्ण ही लालू से लड़े ! फायदा लालू को मिलाता रहा ! पर 'मुख्यमंत्री' बनाने की चाहत में - २००० में वो १४ सवर्ण निर्दलिये विधायकों की बदौलत ७ दिन के लिए मुख्यमंत्री बने ! इन विधायकों का नेतृतव कर रहे थे - 'मोकामा' से भारी मतों से जीते हुए - महा बाहुबली - "श्री सूरज सिंह " उर्फ़ "सूरजभान" ! कब कोई यह कैसे कह दे की - सूरज सिंह का मनोबल किसने और क्यों बढाया !
पर नितीश अड़े रहे ! सवर्ण से नजदीकी उन्हें किसी कीमत पर मंजूर नहीं थी ! फ़रवरी २००५ में हुए चुनाव का फायदा 'पासवान' ने उठाया ! पर सरकार किसी की नहीं बन सकी ! वो घड़ी कितनी मनहूस रही होगी - जब नितीश बुझे मन से 'पासवान' की पार्टी में शामिल 'सवर्णों' को अपने दल में मिलाने की दल की सहमती पर मुहर लगाई होगी ! कीमत तय हो गया था ! 'सत्ता' में भागीदारी ! 'लल्लन' दल प्रमुख बने ! 'प्रभुनाथ' को कुछ इलाके दे दिए गए - जहाँ सिर्फ और सिर्फ उनके कहेनुसार ही कुछ भी होता था ! नितीश पर दबाब बन रहा था ! लालू की तरह - नालंदा के कुर्मी - खुद को सरकारी जात के रूप में देखना चाह रहे थे ! घर सबको प्यारा होता है और परिवार और ज्यादा ! अब निशाने पर थे - प्रभुनाथ और ललन के प्यादे ! राजनीति की शतरंज चालू हो गयी - एक - एक कर सभी प्यादे गिरने लगे ! लोकसभा में नितीश सभी जगह पर जीत गए - रुढी और प्रभुनाथ जीता हुआ चुनाव हार गए ! छपरा में नितीश ने बड़े भाई की लाज बचा - एक तीर से कई निशाने किये ! मुंगेर में भी वही होने वाला था - पर नितीश वहां कमज़ोर हो गए ! ललन जीत कर भी चुनाव हार गए ! ...
क्रमशः..
रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !