Monday, November 19, 2007

ढोल बाजे !!!!

छठ पूजा के शुभ अवसर पर दिल्ली के बिहारिओं ने अपने लोक कलाकारों को बिहार से बुलवाया ! कई जगह इस तरह के कार्यक्रम हुए ! एक जगह पर मुझे जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ ! "मगही" सांस्कृतिक मंच ने "मगध" से कई कलाकार बुलवाये ! आयोजन बहुत बड़ा तो नही था - लेकिन यह शुरुआत अपने आप मे प्रशंशिये हैं ! बिहार के मगध से आये इन कलाकारों को राष्ट्रिये राजधानी क्षेत्र मे एक अवसर देना - काबिले तारीफ है ! करीब ३० लोक कलाकारों को लाना और उनके कला को समान्नित करना ! "गौरवशाली बिहार" के संयोजक श्री संजय शर्मा और संजय साही कहते हैं - "घर तो छुट ही गया - हम अपनी संसकृति बचा लें - यही हमारी कोशिश रहेगी " !
इन लोगों ने आम्रपाली ग्रुप के मुखिया श्री अनिल शर्मा को आमंत्रित किया था - जो खुद मगध से आते हैं ! उन्होने ने कहा - "मैं हर वक़्त आपके साथ हूँ - घर से कोसों दूर अपने लोगों के बीच अपनी संसकृति और लोक गीत का आनद उठाना - अपने आप मे एक सौभाग्य है " !
सभ्यता और संसकृति हमारी पहचान है ! अभी हाल मे ही इंटरनेशनल एअरपोर्ट पर गया था - वहाँ एक जोडा को सिंगापुर से आते हुए देखा - पाया की वह दोनो अपनी मत्री-भाषा मे बातें कर रहे थे ! मुझे उनकी मीठी बोली "मैथली " बहुत अछ्छी लगी और मैंने टोक दिया - पता चला वह "मनागेमेंट कांसुल्तंत" है - और अमरीका से वाया सिंगापुर आ रहे हैं ! अमेरिका मे ही पढ़ाई लिखाई हुई है ! धन्य है वह माता पिता जिसने ऐसे संस्कार दिए जिसके कारन आपके निजी जिन्दगी पर दूसरों का लेप नही चढ़ सका !
कल देखा - मेरा बेटा भी बाथरूम मे एक भोजपुरी गाना गा रहा था !


रंजनऋतुराज सिंह , नॉएडा

Saturday, November 17, 2007

हे ! छठी मैया !



ऊपर वाले फोटो को सिएटल टाईम्स ने अमरीका मे प्रकाशित किया है ! यह हमारी श्रद्धा , बिस्वास , शुद्धता को बयां करता है ! खबरिया चैनल वालों ने भी कल कुछ खास प्रोग्राम भी दिखाया ! दोपहर मे जी न्यूज़ वालों का स्पेसल प्रोग्राम आ रहा था ! देखते देखते ही आंखों से आंसू आने लगे ! सहारा समय भी दिखाया !
एक खास चॅनल जिसको बिहार मे सिर्फ गूंडा तत्व ही नज़र आते हैं और उनके स्पेशल संपादक जो खुद बिहार के रहने वाले हैं और नीतिश काल मे वह बिहार नही गए हैं , ने छठ पूजा को भरपूर नज़र-अंदाज़ करने की कोशिश की !
खैर - सबकी अपनी अपनी श्रद्धा है ! अब वह दिन दूर नही है जब मन्हात्तन की गलियों मे बिहारी भाई - बहन अपने माथा पर "डाला" उठा कर , नंगे पाँव निकलेंगे !
एक पंजाबी अमेरिका जाता है - पुरा गाँव चला जता है !



रंजन ऋतुराज सिंह , नॉएडा

Friday, November 16, 2007

आस्था व भक्ति का केन्द्र नोनार का सूर्य मंदिर

पीरो (भोजपुर)। पीरो अनुमंडल मुख्यालय से सटे आरा-सासाराम मुख्य मार्ग पर नोनार गांव स्थित प्राचीन सूर्य मंदिर क्षेत्र के लोगों के बीच आस्था एवं भक्ति का महत्वपूर्ण केन्द्र बन गया है। प्रकृति के सुरम्य वातावरण में कोलाहल से दूर बसे इस सूर्य मंदिर का महत्व कार्तिक एवं चैती छठ के अवसर पर काफी बढ़ जाता है। इस दौरान यहां आसपास के गांवों के अतिरिक्त सीमावर्ती बक्सर एवं रोहतास जिले के श्रद्धालु लोग भी छठव्रत करने के लिए बड़ी संख्या में जुटते हैं। ग्रामीण बताते हैं कि इस सूर्य मंदिर का निर्माण दशकों पूर्व अयोध्यावासी महात्मा निराला बाबा की देखरेख में स्थानीय लोगों के सहयोग से कराया गया था। यहां मंदिर के गर्भ गृह में स्थापित संगमरमर की बनी भगवान भास्कर की प्रतिमा अपने आप में अद्वितीय है। वही मंदिर के समीप बाबन बीघा का पोखरा लोगों के बीच आकर्षण का केन्द्र होता है। बताया जाता है कि नोनार गांव के लोगों द्वारा दान में दी गयी जमीन पर खुदाई कर, इस विशाल पोखरा का निर्माण कराया गया है जबकि ग्रामीणों द्वारा चंदा में मिली राशि से पक्के घाटों का निर्माण हुआ है। लेागों के बीच ऐसी मान्यता है कि यहां आकर पूरे मनोयोग से छठ का व्रत करने वालों की हर मनोकामना पूरी होती है। कई नि:संतान दम्पतियों द्वारा यहां छठ करने के पश्चात उन्हें पुत्र रत्‍‌न की प्राप्ति होने से इस सूर्य मंदिर के प्रति लोगों की आस्था और बढ़ गयी है। यहां आने वाले छठ व्रतियों की सुविधा को ध्यान में रखकर सभी आवश्यक व्यवस्था नोनार गांव के लोगों द्वारा ही की जाती है। नोनार गांव निवासी बीरेन्द्र राय बताते हैं कि इस साल यहां छठव्रतियों के लिए पेयजल, चिकित्सा एवं प्रकाश व्यवस्था हेतु स्थानीय नवयुवकों द्वारा विशेष तैयारी की गयी है।


ranJan rituraJ sinh , NOIDA

Thursday, November 15, 2007

ऐतिहासिक धरोहरों को समेटे है देवचंदा का सूर्य मंदिर

बिहार की पावन पवित्र धरती पर एक से बढ़कर एक सूर्य मंदिर है पर तरारी प्रखंड के देव (चंदा) गांव का प्राचीन सूर्य मंदिर न केवल ार्मिक बल्कि ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी काफी महत्वपूर्ण है। जिससे हजारों लोगों की आस्था जुड़ी है। ऐसे में यह मंदिर पूरे शाहाबाद प्रक्षेत्र सहित आसपास के इलाकों में लोगों के बीच प्रसिद्ध है। भोजपुर जिला मुख्यालय से लगभग 50 किलोमीटर दक्षिण कुरमुरी नहर लाइन के किनारे देव गांव में अवस्थित यह प्राचीन सूर्य मंदिर चौदहवीं शताब्दी में निर्मित बताया जाता है। हालांकि इसका लिखित ऐतिहासिक साक्ष्य नहीं है फिर भी मंदिर की बनावट एवं यहां स्थापित मूर्तियों के कलाकृति से यह अनुमान लगाया जाता है कि यह मंदिर सल्तनत काल में ही स्थापित किया गया है। ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण यह सूर्य मंदिर प्रशासनिक उपेक्षा के कारण इन ऐतिहासिक धरोहर की ओर आज तक पुरातत्ववेत्ताओं का ध्यान भी केन्द्रित नहीं हो पाया है। वर्तमान में मंदिर का अवशेष एक आयताकार ऊंचे टीले पर अवस्थित है जिसका क्षेत्रफल लगभग 35 डिसमिल भूमि पर फैला है। टीले के दक्षिणी सीमा पर प्रधान मंदिर अवस्थित है। सतह पर मंदिर की स्थिति लगभग 16 फीट लंबी एवं 16 फीट चौड़ी है। लगभग 30 फीट ऊंचे गुम्बज वाले इस मंदिर का द्वार परंपरानुसार पूरब की ओर है। गर्भ गृह के पश्चिमी दीवार से सटे पांच चबूतरे बने है जो सीमेंट से निर्मित एक सुंदर रथ से जुड़ा है। इस चमकीले रथ पर एक सारथी की आकृति बनी है। प्रधान मंदिर से सटे पूरब तरफ 30 फीट लंबा प्रांगण है जो यहां निर्मित सभा भवन का अवशेष बताया जाता है। यह विशाल प्रांगण ईट की दीवार से घिरा है। इस प्रांगण में दीवार के सहारे कई प्राचीन मूर्तियां टीकाकर रखी गयी है। बालू पत्थर से निर्मित ये मूर्तियां यहां समय-समय पर हुई खुदाई से प्राप्त हुई है। मूर्तियों की बनावट से इनकी प्राचीनता का एहसास होता है। देव गांव स्थित इस प्राचीन मंदिर के साथ कई आश्चर्यजनक तथ्य जुड़े है। मंदिर को बाहर से देखने पर ऐसा लगता है कि मंदिर के निर्माण में प्रयुक्त ईटे परस्पर एक-दूसरे पर बिना किसी जोड़ के रखा गया है जबकि बारीकी से निरीक्षण करने पर इसके अंदर सूर्खी चूना दिखाई पड़ता है। मंदिर के दीवार की इस तरह जुड़ाई तत्कालीन कारीगरों की काबिलियत को दर्शाती है। मंदिर के गर्भ गृह में वृत्ताकार ईट से निर्मित क्रमश: एक-दूसरे से छोटे परस्पर उभरे हुए 23 वृत्त है। बुजुर्गो के अनुसार प्राचीन मंदिर के दरवाजे के पास से ही एक भूमिगत रास्ता यहां से 300 मीटर दूर स्थित विशाल जलाशय तक जाता था, जो अब पूरी तरह ध्वस्त हो चुका है। देव गांव तक पहुंचने के लिए कुरमुरी नहर लाइन के समानांतर बनी सड़क आज भी जर्जर स्थिति में है जिसे पर सफर करना दुष्कर कार्य प्रतीत होता है। सूर्य मंदिर के आसपास पेयजल, बिजली, धर्मशाला आदि की कोई व्यवस्था नहीं है जिससे यहां छठ करने के लिए आने वाले बाहरी लोगों को भारी परेशानी झेलनी पड़ती है। सिकरहटा पंचायत के मुखिया ऋषिदेव सिंह के अनुसार इस प्रसिद्ध तीर्थ स्थल को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए बिहार राज्य पर्यटन विभाग के निदेशक आनंद किशोर के पास सुझाव भेजा गया था लेकिन पर्यटन विभाग द्वारा इसकी अनदेखी किये जाने से अभी तक इसके कायाकल्प की संभावना तक दिखाई नहीं पड़ती है।



रंजन ऋतुराज सिंह , नॉएडा

Wednesday, November 14, 2007

Tuesday, November 13, 2007

महापर्व और घर की याद :- मुखिया के दिल से

बहुत लोग हमको कहे कि " मुखिया जी , दीपावली मे आप कुछ नही लिखे ? " , क्या लिखते ? यही कि यह धनी मनी लोगों का पर्व है ? यही लिखते कि गरीब लोग घर से हजार किलोमीटर दूर - saat समुन्दर पार दीपावली के दिन भी कम्पूटर पर ठुक ठएं कर रहे थे ! यही लिखते कि बाबा-दादी गाँव पर अकेले हैं , माँ- बाबुजी पटना मे अकेले हैं और हम यहाँ "दिल्ली" कि दीपावली मना रहे हैं ?
कल्ह , छठ पूजा का नहाय - खाए है ! बिहार के हर घर मे छठ पूजा का गीत शुरू हो चुका होगा ! ऐसा लगता है यह पर्व हमारे खून मे समां चुका है - मालूम नही क्या है ? श्रद्धा का वातावरण कब और कैसे बन जाता है ! हेमंत ऋतु मे पर्वों का होना और बचपन का याद आना -

कैफी आज़मी साहब के चंद लाईन याद आ रहे हैं -

चंद सीमाओं में, चंद रेखाओं में ,

जिंदगी कैद है , सीता की तरह ,

पता नही ,राम कब लौटेंगे ?

काश ! कोई रावण ही आ जाता ॥

पटना का छठ पूजा बहुत धूम धाम से मनाया जाता है ! इस पूजा कि एक सब से बड़ी खासियत है कि - यह समता भाव का पूजा है ! क्या अमीर , क्या गरीब , क्या राजा और क्या रंक ? क्या घूसखोर और क्या इमानदार , सभी के सभी एक साथ डूबते और उगते सूरज को "अरग" देते हैं ! शाम वाले अरग के दिन आपको पटना का पुरा गाँधी मैदान भरा हुआ नज़र आएगा ! मैंने देखा है - बड़ा से बड़ा आदमी भी माथा पर "डाला" उठाए हुए चल रहा है ! ऐसा जैसे सूरज देवता के सामने सभी बराबर है ! सुबह वाला अरग के समय पर पटना के गांधी सेतु से घात का नजारा देखते ही बनता है !


हम लोग बच्चा थे ! गाँव जाते थे - दीपावली के ठीक अगले दिन या आज वाले दिन ! मुजफ्फरपुर मे सुबह सुबह इमली चट्टी से बस पकड़ कर ! रात मे कलकत्ता से एक ट्रेन आती थी और कलकतिया सब बस पर कब्ज़ा जमा लेता था ! "सिवान" वाले बच्चा बाबु का बस होता था सो जगह मिल जाती थी ! अगल बगल मे कलकतिया सब एकदम "चुकु- मुकू " कर के सीट पर बैठा होता था ! साथ मे एक झोला - झोला मे सब से ऊपर एक कियो -कारपीन तेल और दू ठो लक्स साबुन ! सब का देह बसाता था ! गाँव के पास वाले स्टॉप पर पहुंच कर हम लोग बैलगाडी या हाथी या टम-टम पर बैठते थे ! बैलगाडी या टम टम को साडी या चादर से ढक दिया जाता था !परदा वाला जमाना था ! धीरे धीरे जमाना बदलने लगा ! तम तम और बैलगाडी और हाथी की जगह "जीप" आ गया ! हम लोग भाडा पर गाओं तक के लिए "जीप" ठीक कर लेते थे ! रास्ता मी कई लोग मिलते थे ! साईकिल पर ! हाल चाल पूछते थे ! "घर" पर डीजल "जीप" की आवाज़ से आँगन से चचेरे फुफेरे भाई बहन सभी निकल आते थे ! "बाबा" दुआर पर आराम कुर्सी पर खादी वाला हाफ बांह वाला गंजी पहन कर बैठे होते थे ! आस पास ४०-५० आदमी ! "बाबा" के पास जाने पर वहाँ कई लोगों को पैर छू कर प्रणाम करना पङता था ! कोई फलना बाबु टू कोई चिलाना बाबु ! पटना / मुजफ्फरपुर से दीपावली वाला पटाखा बचा कर लाते थे और सभी भाई-बहन को दिखाते थे ! मन नही मानता था तो एक दो छोड़ देते थे ! कभी कभी डांट भी मिलाती थी !


खरना वाले दिन शाम को जम के पटाखा छोडा जाता था ! कभी कभी भाई-पट्टीदार से "शक्ति-पर्दर्शन" भी होता था ! किसके पटाखे मे कितना है -दम ! शाम वाले अरग के दिन "दुआर" पर हम सभी बच्चे लोग नया नया कपडा पहन कर खूब मस्ती करते थे ! उन दिनों होली और छत मी ही सिर्फ़ नया कपडा मिलता था ! वक्त बदल गया - यहाँ "मेट्रो" मे हर महीना "सेल " लगता है और और धर्म-पत्नी जी मेरी गाढी कमाई मे आग लगा कर दीवाली मनाती हैं !
रात मे "लुकारी" बनाया जाता था ! या फिर गैस लाईट के साथ साथ "छठ वरती" लोग सुबह ४ बजे ही घाट पर पहुँच जाते थे ! उगते सूरज को अर्ध्य देकर - हम सभी घर वापस आ जाते थे ! परसाद मिलता था ! दिन भर हम सभी "ईख" चबाते थे !
शाम को माँ- बाबु जी को अटैची पैक करते देख "कलेजा" धक् से कर जाता था ! रात भर यह सोच कर नींद नही आती थी की अब अगला दिन " कसाई -खाना" जाना है ! सुबह सुबह मेरा झूठ मूठ का कभी पेट ख़राब तो कभी उलटी ! बाबा मेरे मन का बात समझ जाते थे और बाबु जी को बोलते - " एक दिन और रुक जाओ " !
मेरा तो मानो लोटरी खुल गया !

बहुत कुछ लिखना छुट गया है ! आपके कमेंट के इंतज़ार मे -

रंजन ऋतुराज सिंह , नॉएडा

Monday, November 12, 2007

पूर्वांचल का महापर्व : छठ पूजा









घर की याद मे जी भर के रो लीजिए !






रंजन
ऋतुराज सिंह , नॉएडा

Tuesday, November 6, 2007

"चक-दे-बिहार" कब होगा ?

अरे यार ? नीतिश भी गुंडा रखता है , क्या ?
तेरे को कौन बोला ?
मेरे को कौन बोलेगा - तेरे बिहारी ही खबरिया चैनल पर दिखा रहे हैं ?
"हा हा हा " , बेटा थोडा बच के वह मूंछों वाला विधायक मेरी ही जाती का है !
ऐसा क्या - तू तो ऐसा नही लगता है ?
अच्छा ! तेरे बिहारिओं ने खबरिया चैनल पर कब्जा जमा लिया है - फ़िर भी "माँ" ( बिहार) को गाली देते हैं ?
हाँ ! यह सभी - गांधीवाद के शिकार हैं ! "परिवारwaad" मे विस्वास नही रखते हैं !
हाँ ! यह तो वेश्या वाली कहानी हो गयी यार - वेश्या के प्रेम मे एक युवक अपनी माँ का कलेजा काट लाता है और रास्ते मे जब युवक को चोट लगाती है तो माँ का कलेजा रो पङता है !
हाँ ! अगर माँ को गाली देने से इनका पेट भर रहा हो तो माँ को वह भी स्वीकार है !
चल - तेरे साथ रहते रहते मैं भी लगभग "बिहारी" हो जाऊंगा !तुम सभी अपना - अपना "इगो" को छोड़ - सिर्फ़ और सिर्फ़ "बिहार" की भलाई के लिए क्यों नही सोचते हो ? एक बार दिल से "चक-दे-बिहार" बोल को तो देख - तेरा बिहार स्वर्ग हो जाएगा ! देख , कैसे वह राजदीप जैसा पत्रकार भी "चक दे गुजरात" बोलता है ! कुख्यात - मोदी को भावी प्रधानमंत्री बताता है ! कुछ सीख इन लोगों से !
अबे - बिहार स्वर्ग हो जाएगा ! फिर मुम्बई - दिल्ली - बंगलोर मे कौन रहेगा ? कौन अरुण पूरी , राजदीप और प्रनोय रोय के तलवे चाटेगा , कौन अपनी माँ का कलेजा इनको देगा ? कौन श्री भल्ला , श्री चोपडा , श्री साह इत्यादी के यहाँ काम करेगा ! कौन पंजाब , सूरत , हरयाणा , भोपाल ,कलकत्ता को अपना घर से भी ज्यादा चम्कायेगा ? कौन बिहार को गाली दे कर अपना पेट भरेगा ? हम सभी "पेट-भरुआ" मजदूर हैं ! कोई ज्यादा पढ़ लिखा तो कोई कम पढा लिखा - mansik स्तर सभी का एक है ! दिन भर म्हणत करते हैं और रात मे एक दूसरे भाई के साथ गाली गलुज और फिर सो जाते हैं - फिर , अगला सुबह वही मजदूर वाली नौकरी !
भूखे पेट से "चक दे बिहार " कैसे निकलेगा ?
रंजन ऋतुराज सिंह , नॉएडा