Thursday, November 15, 2007

ऐतिहासिक धरोहरों को समेटे है देवचंदा का सूर्य मंदिर

बिहार की पावन पवित्र धरती पर एक से बढ़कर एक सूर्य मंदिर है पर तरारी प्रखंड के देव (चंदा) गांव का प्राचीन सूर्य मंदिर न केवल ार्मिक बल्कि ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी काफी महत्वपूर्ण है। जिससे हजारों लोगों की आस्था जुड़ी है। ऐसे में यह मंदिर पूरे शाहाबाद प्रक्षेत्र सहित आसपास के इलाकों में लोगों के बीच प्रसिद्ध है। भोजपुर जिला मुख्यालय से लगभग 50 किलोमीटर दक्षिण कुरमुरी नहर लाइन के किनारे देव गांव में अवस्थित यह प्राचीन सूर्य मंदिर चौदहवीं शताब्दी में निर्मित बताया जाता है। हालांकि इसका लिखित ऐतिहासिक साक्ष्य नहीं है फिर भी मंदिर की बनावट एवं यहां स्थापित मूर्तियों के कलाकृति से यह अनुमान लगाया जाता है कि यह मंदिर सल्तनत काल में ही स्थापित किया गया है। ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण यह सूर्य मंदिर प्रशासनिक उपेक्षा के कारण इन ऐतिहासिक धरोहर की ओर आज तक पुरातत्ववेत्ताओं का ध्यान भी केन्द्रित नहीं हो पाया है। वर्तमान में मंदिर का अवशेष एक आयताकार ऊंचे टीले पर अवस्थित है जिसका क्षेत्रफल लगभग 35 डिसमिल भूमि पर फैला है। टीले के दक्षिणी सीमा पर प्रधान मंदिर अवस्थित है। सतह पर मंदिर की स्थिति लगभग 16 फीट लंबी एवं 16 फीट चौड़ी है। लगभग 30 फीट ऊंचे गुम्बज वाले इस मंदिर का द्वार परंपरानुसार पूरब की ओर है। गर्भ गृह के पश्चिमी दीवार से सटे पांच चबूतरे बने है जो सीमेंट से निर्मित एक सुंदर रथ से जुड़ा है। इस चमकीले रथ पर एक सारथी की आकृति बनी है। प्रधान मंदिर से सटे पूरब तरफ 30 फीट लंबा प्रांगण है जो यहां निर्मित सभा भवन का अवशेष बताया जाता है। यह विशाल प्रांगण ईट की दीवार से घिरा है। इस प्रांगण में दीवार के सहारे कई प्राचीन मूर्तियां टीकाकर रखी गयी है। बालू पत्थर से निर्मित ये मूर्तियां यहां समय-समय पर हुई खुदाई से प्राप्त हुई है। मूर्तियों की बनावट से इनकी प्राचीनता का एहसास होता है। देव गांव स्थित इस प्राचीन मंदिर के साथ कई आश्चर्यजनक तथ्य जुड़े है। मंदिर को बाहर से देखने पर ऐसा लगता है कि मंदिर के निर्माण में प्रयुक्त ईटे परस्पर एक-दूसरे पर बिना किसी जोड़ के रखा गया है जबकि बारीकी से निरीक्षण करने पर इसके अंदर सूर्खी चूना दिखाई पड़ता है। मंदिर के दीवार की इस तरह जुड़ाई तत्कालीन कारीगरों की काबिलियत को दर्शाती है। मंदिर के गर्भ गृह में वृत्ताकार ईट से निर्मित क्रमश: एक-दूसरे से छोटे परस्पर उभरे हुए 23 वृत्त है। बुजुर्गो के अनुसार प्राचीन मंदिर के दरवाजे के पास से ही एक भूमिगत रास्ता यहां से 300 मीटर दूर स्थित विशाल जलाशय तक जाता था, जो अब पूरी तरह ध्वस्त हो चुका है। देव गांव तक पहुंचने के लिए कुरमुरी नहर लाइन के समानांतर बनी सड़क आज भी जर्जर स्थिति में है जिसे पर सफर करना दुष्कर कार्य प्रतीत होता है। सूर्य मंदिर के आसपास पेयजल, बिजली, धर्मशाला आदि की कोई व्यवस्था नहीं है जिससे यहां छठ करने के लिए आने वाले बाहरी लोगों को भारी परेशानी झेलनी पड़ती है। सिकरहटा पंचायत के मुखिया ऋषिदेव सिंह के अनुसार इस प्रसिद्ध तीर्थ स्थल को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए बिहार राज्य पर्यटन विभाग के निदेशक आनंद किशोर के पास सुझाव भेजा गया था लेकिन पर्यटन विभाग द्वारा इसकी अनदेखी किये जाने से अभी तक इसके कायाकल्प की संभावना तक दिखाई नहीं पड़ती है।



रंजन ऋतुराज सिंह , नॉएडा

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