Saturday, December 20, 2008

महबूब कैसा हो ? पार्ट -४

तेरी बाहों में है जानम , मेरे जिस्म-ओ-जान पिघलते !
काफी दिनों के बाद शायद वर्षों बाद कल शाम "सिलसिला" देखी ! अमिताभ की कुछ चुनिन्दा फिल्मों में से एक ये भी है जिसके गीतों को मै कई हज़ार बार गुनगुना चुका हूँ ! १९८१ में जब यह रिलीज़ हुई उस वक्त शायद फ्लॉप हो गयी थी - पर संदेश और प्रेम के अनेक रूप इसमे देखने को मिलते हैं ! अमिताब गजब के स्मार्ट दिख रहे हैं वहीँ रेखा एक परफेक्ट "महबूबा" ! कुछ भी कहिये - अमिताभ की पेर्सोनालिटी के सामने बॉलीवुड के कई अभिनेता फीके नज़र आते हैं ! इस सिनेमा में कश्मीर की वादियों में अमिताभ जब रंग बिरंगे स्वेटर पहने अपनी भरी आवाज़ और लंबे कदमों से चलते नज़र आते हैं तो सिनेमा देख मज़ा आ जाता है !
कहानीकार के रूप में ख़ुद को विख्यात बनाने वाले "जावेद अख्तर " साहब इस सिनेमा में पहली बार "गाना" लिखे जिसे अमिताभ और लता दीदी ने अपनी आवाज़ दी है - " यह रात है .........यह कहाँ आ गए हम ..यूँ ही साथ चलते चलते ...." प्रख्यात संतूर वादक और वान्सुरी वादक श्री शिव और हरिप्रसाद चौरसिया जी ने संगीत क्या दिया - ये संगीत आज भी जवान है !
रेखा अमिताभ से १०-१२ साल छोटी हैं और इस सिनेमा को बनते हुए वक्त उन दोनों का प्रेम अपने चरम सीमा पर रहा होगा ! सिनेमा देख ऐसा लगता है - जैसे अमिताभ के लिए वक्त ठहर गया हो ! 36-37 वर्षीय अमिताभ सचमुच में एक मर्द नज़र आ रहे हैं - जिससे कोई भी "रेखा" निकल आए !



रंजन ऋतुराज सिंह , इंदिरापुरम

Friday, December 19, 2008

नीतिश कुमार ने "ललकार" दिया है !

नीतिश ने ललकार दिया है ! कुब्बत है तो चुनाव लड़िये ! राजनेताओं को गाली मत दीजिए ! बात में दम है ! लेकिन नीतिश बाबु - नेतागिरी को आपलोगों ने भले आदमी के लिए कहाँ छोडा है ? अब कौन राजेन बाबु आएगा ? आप लोग धर के उसको जात पात में ऐसा लपेटियेगा की वोह बेचारा बाप बाप कर के भाग खडा होगा ! आपको तो एक इमानदार ऑफिसर तक बर्दास्त नहीं होता है फिर भला कैसे आप राजनीती में अच्चे लोगों को बर्दास्त करेंगे ??
आप बिहार में क्या खेला खेल रहे हैं - सबको पता है ! मंत्री की क्या अवकात है वोह मंत्री से बेहतर कोई नहीं जानता होगा ! सवर्णों को लालू का भूत का किस्सा सुना सुना पर भूखे पेट सोने को मजबूर कर देते हैं ! कभी आस पदोश से आपके ऊपर चढ़ बैठा तो बन्दर बिल्ली वाला खेल शुरू हो जाता है ! 'पसना' में कभी भूमिहार तो कभी कायस्थ तो कभी राजपूत तो कभी बाबा जी लोग ! ई खेला में बहुत आराम से आप दूसरा चुनाव जीत जायेंगे !
अछ्छा , नीतिश बाबु , एक बात बताएं - ई चोर ऑफिसर सब आपको क्या 'नज़र' आता है ? या ये सब खाली हल्ला है ? जेतना बड़का बड़का ऑफिसर सब है सब का नॉएडा - दिल्ली में हर महिना एक कोठी ख़रीदा रहा है - आपको नज़र नहीं आता है या फेर आप आँख बांध कर बैठे हैं ?

पत्रकार लोग से इमानदार ऑफिसर को धमकी भेज्वाते हैं ! वाह ! भाई वाह ! चमचागिरी सब राजा को पसंद है ! कहे की मतलब की आप राजा हो ही गए ! बधाई हो ! ई सब खेला १,अन्ने मार्ग का है - जो वहां जाता है - राजा बन जाता है !


रंजन ऋतुराज सिंह , नॉएडा

Wednesday, December 17, 2008

महबूबा कैसी हो ? पार्ट - ३

अब जरा इनसे पूछिये की महबूबा कैसी हो ? चंदर से चाँद बन गए और फिजा को अपना लिया ! साली , मुहब्बत चीज़ ही कुछ ऐसी है ! वोह वाला गाना याद आ गया - 'ये दुनिया ये महफिल मेरे काम की नहीं ' ! जब स्वप्नसुंदरी मेनका सामने हो फिर 'विश्वामित्र' की क्या औकात ? पर , विश्वामित्र बनने को कौन बोलता है ? चंदर बन जाईये ! एक से मुक्ति पायें और दुसरे को अपना लें ! सिनेमा में मुहब्बत बहुत अच्छा लगता है और हकीकत में समाज गाली देता है ! "शिल्पा शेट्टी" और कंगना राउत वाला "लाइफ इन मेट्रो " देखा है , न ! बेहद ख़ूबसूरत और दिल के करीब ! पर हकीकत में ऐसा कुछ हो जाए तो मेरे जैसा "बिहारी" को फांसी पर लटका दिया जाए ! समाज न तो जीने देता है और न ही मरने ! बहुतों की फिदरत में घुट घुट के मरना नहीं लिखा होता है - सो वोह अपना रास्ता खुद ही बना लेते हैं !
"बुढाऊ" धर्मेन्द्र में दिव्यसुन्दरी हेमा आंटी को कुछ न कुछ तो जरुर नज़र आया होगा ! बस , यही "कुछ नज़र आना " सब बवाल का जड़ है ! कहते हैं ३२ वर्षीय राम को १४ वर्षीय सीता से धनुष तोड़ने के पहले ही वाटिका में "नज़र" मिल गयी थी ! वोह ! क्या जालिम घड़ी होगी ! रामायण लिख गया ! खुद से कई वर्ष बड़ी राधा के प्रेम में वंशी बजाते कृष्ण को हम सभी अपने घर में पूजते हैं !
पर असली आनंद तो नज़र मिलाने में ही है ! मिलाते रहिये ! बस स्टाप से लेकर ऑफिस तक ! नज़र से दिल का रास्ता को 'ब्लाक' कर दीजिए - आप खुश रहेंगे वर्ना पेट पर लात लगते देर नहीं लगेगा !
खैर , इंशाल्लाह ! चाँद और फिजा की मुहब्बत - चाँद के पैसे ख़तम होने के बाद तक भी बरक़रार रहे - हम तो बस यही दुआ कर सकते हैं !
तभी तो - 'रब ने बना दी जोड़ी " !


रंजन ऋतुराज सिंह , इंदिरापुरम !

Tuesday, December 9, 2008

मतवाला हाथी !

यूँ तो हम भी एक ब्राह्मण है ! लेकिन दादा- परदादा खेती बारी कराने लगे और छोटे मोटे खेतिहर बन गए ! बड़े बड़े जमींदारों को देख दरवाजे पर उनलोगों ने एक हाथी रख लिया ! हम सभी बचपन की हाथी की सवारी करते थे ! कभी कभी हाथी का महावत खेतों से उसको ले कर जाता था ! जिसके खेत की घुस गया - १०-२० किलो अनाज खा जाता था ! कभी गाली सुनने को मिलता तो कभी किसान चुप चाप ही रहते ! "कभी किसी खेत की हाथी अपना 'लीद' छोड़ दिया करता था - तब वही किसान खुश भी हो जाते , क्योंकि मुफ्त का 'खाद' मिल जाता था ! "
हमारे महावत होते थे - "अल्शेर मियां' ! उनका दो काम होता था - पहला - हाथी का देख भाल करना और दूसरा घर की बन्दूखों की नली को साफ़ करना !
एकबार हाथी पगला गया और "अल्शेर मियां' को पटक दिया ! ऐसा लगा की आज तो 'अल्शेर मियां ' की मौत आ ही गयी ! खैर , किसी तरह उनकी जान बची !
तो भाई लोग , आप लोगों को पता चल ही गया होगा की - इस बार के चुनाव की उत्तर प्रदेश का "हाथी" किसका खेत चार गया और किसके खेत की 'लीद' दे गया ! यह तो देश की प्रमुख राजनितिक हस्तियों को पता होगा !
पर महावत के रूप की हाथी की sawari कर रहे पंडित लोगों को हाथी के पागल होने के पहले ही सावधानी से रास्ता बदल लेना होगा !

रंजन ऋतुराज सिंह ,

Wednesday, December 3, 2008

बस यही अपराध मैं हर बार करता हूँ !

देखिये ! आप देख सकते हैं ! आप देख सकते हैं कि कैसे हम अपनी जान पर खेल कर आपको वह सब कुछ दिखा रहे हैं जो आप घर बैठे देख रहे हैं.जो आप देखना नही चाहते वो भी दिखाने को हम मोर्चा खोले बैठें हैं. इस देश का हम चौथा स्तभ हैं ,और जब स्तभ जमीं पर लुढ़क -लुढ़क कर मजबूत आधार दे रहा हो तो खतरों के निशान से ऊपर खतरा बह रहा है .ऐसा समझा जाना चाहिए . हम आपको बता दें कि वही सबकुछ हम अभी तक दिखा रहे थे जो आप आँख बंद करके देखना चाहा था .अब बात अलग है कि अभी सेना -पुलिस के मना करने पर वो सब कुछ हम नही दिखा पा रहे जो मेरा कैमरा अभी भी देख रहा है .हम नही चाहते कि आतंकवादी को हमारे जरिये कुछ मदद मिले .हम सेना पुलिस के साथ हैं हम उनकी कारवाई में खलल नही डालना चाहते. इसलिए लाइव दिखा कर आतंकी का लाईफ नही बढ़ाना चाहते.हम आपको साफ़ कर दें कि फिलहाल न तो हम "सबको रखे आगे " टी.वी. न "सबसे तेज टी.वी.'' हैं हम आपको बता दे फिलहाल दिल में इंडिया लिए मचल रहा हूँ मन तो कर रहा है कि सूचना के अधिकार के तहत आपको वो सब दिखा दूँ .पर ऐसा मैं नही करने जा रहा . हम आपको बता दे कि केवल दिखाने को मना किया गया हैबताने को मना नही किया गया है . हम आपको वह सब कुछ बताते रहेंगे .जो हम और हमारे कैमरे देखते रहेंगे. पर दिखायेंगे नही . जो दिखाया गया वो अनजाने में गलती से मिस्टेक हो गया. हम आपको बता दे कि हम “लाईव” नही दिखाते तो हमारे "फाइव" नही जाते . फाइव कहीं फिफ्टी न हो जाय इसलिए दिखाना बंद . हम आपको साफ़कर दें आतंकवाद से भिड़ने के तरीके में लोकतंत्र का हर स्तम्भ का मिस्टेक ,एक दुसरे के मिस्टेक को ओवरटेक करता गया है. हम आपको बता दे कि मिनट से ही घंटा बनता है . मेरे दिखाने से ५९ मिनट का काम ५९ घंटे तक चलेगा . पर आपको हम यकीं दिलाते हैं कि हमारा कैमरा नही चलेगा.आप देख सकते हैं कि अपने जांवाज कमांडो चारो तरफ़ से घेरे खड़े हैं .निचे कहीं आतंकी उतरे तो रेपिड एक्शन फोर्स के गोली का शिकार बनेगे , उनसे बचेगे तो ऐ टी एस ,ऐ टी एस से बचेंगे मुंबई पुलिस कि गोली से बच नही सकते .मतलब कि आतंकी पुरी तरह घिर गए हैं. गोलिया मेरी जुबान से भी तेज चल रही है . दहशत का माहौल हैदेखिये फ़िर से दो ग्रेनेड फेंक दिया है .एक कमांडो बुरी तरह घायल हो गया है अम्बुलेंस बुलाया गया है. देखिये ये सब हम आपको इसलिए नही दिखा रहे हैं कि हम नही चाहते कि आतंक का सहयोग हो. हम आपको बता दे आतंकी को लगातार फ़ोन पर पाकिस्तान से गाइड लाईन मिलने से आतंकी को लगातार लाईफ लाईन मिलती जा रही है .केवल दिखाने से ही उनकी मदद मिलेगी आंखों देखी बताने से मदद नही मिलती है सो हम बताये जा रहे हैं. लेट लेट कर , भाग-भाग कर .ये बात अलग है कि हमारे ऊपर भी ग्रेनेड दागे जा रहे हैं हमें उसकी परवाह नही है .हम सेना का मनोबल बढ़ने में विश्वास रखते हैं. अब ये अनुभव हर लड़ाई को लाईव करने में काम आएगा . देखिये पहले कमेंट्री रेडियो से होती थी अब टी.वी. पर प्रसारण होता है .हमारी टी.वी. को कभी मौका मिलता नही क्रिकेट मैच दिखाने का ,हमेशा सौजन्य से काम चलाता रहा , कोई फ़िल्म वाला अपने फाइटिंग सीन को कभी कवर नही करने दिया .वैसे आप सभी की इच्छा पूर्ति प्रतिबन्ध से पहले कर चुका हूँ .हम इनके प्रतिबन्ध को अनुबंध मानता हूँ .आप संयम और धैर्य धारण किए रहे क्योंकि हम इस बीच एक भी विज्ञापन तो दिखाया नही. फ़िर कहीं जाने की जरूरत नही है ,बने रहिये हमारे साथ . देखिये हम धैर्य और संयम के संगम में डूबे उतावले होकर जिम्मेवार मिडिया दिखाने में कोई संयम रख नही पाये हाँ अलबता देश के दुश्मन को आदर सूचक शब्द से नवाज़ते रहे .मतलब भाषा पर संयम कायम था .हमने आतंकवादी के लिए "वह " की जगह "वे" "ग्रेनेड फेंक रहा है " की जगह "ग्रेनेड फेंक रहे हैं." बोलता रहा .आप देख सकते है न्योता देकर बुलाने के बावजूद दो आतंकी और १०० अपने के ढेर होते ही "रद्दी रिजेक्टेड पाटिल " भारत माता की जय बोल रहे हैं ,जबकि ये अधिकार अबतक भाजपा अपने कोटे का समझ रही थी.उनके मुस्कान से लबरेज जयकारा से आगे की लड़ाई में जीत हाशिल हुई .जितने नेता आते गए अपने थोबडा दिखाने हम आपको दिखाते रहे . कल्ह हम फ़िर दिखायेगे जो सिर्फ़ हम दिखा सकते हैं.अपनी फजीहत कोई और न करे इसके लिए हम आपके सहयोग से नेताओं को कल्ह तरीके से घेरेंगे . हम लगातार ५९ घंटे तक बक-बक करते रहे .पर उनके एक लाईन से उनको लाईन हाज़िर करवा देंगे. आप देख सकते हैं कि क्या हमने जुगाड़ लगाया हैं ,कल्ह आपके घर आऊंगा ,आपको रास्ते में रोक कर पूछूँगाकि कैसा लगा मेरा हिम्मत से भरा लाईव दिखाने की हिमाकत .
अंत में हम आपको बता दें . हम चौबीसों घंटे तीन पाँच करते रहते हैं . क्या दिखाया जाय क्या नही दिखाया जाय उसकी समझ न होते हुए भी लोकतंत्र का सबसे समझदार स्तभ का तगमा अपने गले लटकाय रहता हूँ. और आपको हम ये भी बता दे कि ये देखने की चीज थी इसलिए ही बार बार दिखाया गया ,लगातार दिखाया गया ।
हर बार यह अपराध हमसे हो जाता है । आपकी नज़रें वो सब कुछ नही देख पाती जो मुझमे समाहित है .