ये राजनीति नहीं आसां , इतना तो समझ लीजिये
एक आग का दरिया है , और डूब के जाना है ...:))
मामला फंस गया है ! लालू कमज़ोर हुए या उनको गठबंधन में कम सीटें चुनाव लड़ने के लिए मिली , यादव वोट बिदक कर 'भाजपा' के पास चली जायेगी , जब अपना नेता मुख्यमंत्री के लिए नहीं है फिर क्यों वोट बर्बाद करना ! अगर लालू को गठबंधन में बराबर की सीटें मिली , फिर लालू चुनाव के बाद नितीश को निगल जायेंगे , बराबर के गठबंधन में किसी भी हाल में लालू के ज्यादा उम्मीदवार जीत के आयेंगे - फिर लालू किसी सोनिया / राहुल की नहीं सुनेंगे बहुत बार्गेन हुआ तो अपनी बेटी को वो उपमुख्यमंत्री बना कर ही मानगे ! इस हाल में प्रशासन का क्या होगा , भगवान् ही मालिक है ! इसमे कोई शक नहीं की मांझी के मुख्यमंत्री बनने के बाद सिर्फ और सिर्फ लालू की ही चली जिसका नतीजा यह हुआ है की लॉ - ऑर्डर बुरी तरह चरमराया हुआ है , नितीश को मांझी का फैलाया हुआ रायता साफ़ करने में दम निकल गया है , बहुत कोशिश के बाद अब कुछ बढ़िया सरकारी मुलाजिम काम कर रहे हैं ! मुस्लिम के शत प्रतिशत वोट नितीश वाले गठबंधन को मिलेगी !
मांझी को लाकर नितीश गलती किये , मांझी को हटा कर नितीश गलती किये ! कमज़ोर दलित वर्ग बुरी तरह आहत है ! वोट बर्बाद हो जाए तो हो जाए लेकिन नितीश को नहीं देंगे वाली तर्ज़ पर वर्तमान में हवा है ! अगर मांझी भाजपा के साथ चले गए फिर ब्रह्मा भी नितीश को हारने से नहीं रोक सकते !
नितीश को एक ही आदमी मदद कर सकता है वह हैं सुशील मोदी ! आरएसएस में अपनी पकड़ के बदौलत नितीश के पक्ष में भाजपा के अगर बीस भी कमज़ोर उम्मीदवार खड़े हुए फिर तो नितीश की बल्ले - बल्ले होगी ! भाजपा के लिए बेहतर होगा वह अभी ही सुशील मोदी को केंद्र का रास्ता दिखा दे , वरना ये आदमी कुछ भी बेच देगा ! नेटवर्किंग के उस्ताद सिर्फ और सिर्फ 'दलाली' कर सकते हैं - नेतागिरी नहीं !
नितीश कितना भी कर ले , किसी भी मंझे हुए दरबारी / स्तुतिगान करने वाले को ले आयें एक बात याद रखें - 'दरबारी' किसी का नहीं होता है , कल किसी और के साथ था आज आपके साथ है और कल किसी और के साथ रहेगा ! लोकसभा के तर्ज़ पर विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा जाता ! दिल्ली के बड़े पत्रकारों को धर्मनिरपेक्षता के आधार पर उनके हर हर एक शब्दों को अपने लिए खरीदने को जो मुहीम चला है - उसका कोई फायदा नहीं होगा ! वोट अप्रवासी बिहारी नहीं देंगे , वोट यहाँ के लोग देंगे !
जब नेतृतव मजबूत होता तब राजनीति कमज़ोर होती है ! जब राजनीति हावी होती है जब नेतृतव कमजोर हो जाता है ! जब तक नितीश का नेतृतव मजबूत था , उनके उपमुख्यमंत्री भी उनसे मिलने के लिए घंटो इंतज़ार करते थे ! सबकुछ सही था ! यही हाल केंद्र में है - नरेन्द्र मोदी मजबूत है सो वहां केन्द्रीय भाजपा में कोई राजनीति नज़र नहीं आ रही ! सब कुछ कमांड और कंट्रोल में है !
गठबंधन की तरफ बढ़ते हुए 'मांझी जी ' भाजपा के साथ हाथ मिला लिए हैं ! कल लालू जी के जन्मदिन पर नितीश जी उनसे मिलने गए और भरत मिलाप के दौरान कई पत्रकार इस कदर भावुक हुए की 'भोंकार पार' कर रोने लगे ! पूरा शहर भाव विह्वल हो गया ! पत्रकारों के साथ दिक्कत यह है की वो राजनीति को देखते तो जरुर हैं पर राजनीति और उनके बीच एक पारदर्शी ग्लास / सीसा होता है - नज़र सब कुछ साफ़ साफ़ आता है लेकिन महसूस नहीं कर सकते और जब तक आप किसी चीज़ को महसूस नहीं करेंगे - वह चीज़ आपको समझ में नहीं आयेगी ! पत्रकार जनता के बीच जाते हैं , घुल कर मिलते हैं तो कई बार वो सच लिखते - बोलते हैं ! अगर आपको राजनीति समझनी है तो राजनेताओं को सिर्फ खबर नहीं समझें , उनके अन्दर प्रवेश करें ! कोई कितना बड़ा पद पर पहुँच जाए - अन्तोगत्वा वह एक इंसान ही होता है जो अपने आंतरिक व्यक्तित्व से संचालित होता है !
कई पत्रकार और अफसर अक्सर मुझसे पूछते हैं - राजनेता कैसे सोचते हैं , पता ही नहीं चलता ! कब उनका अहंकार जाग जाता है और कब उनका अहंकार ख़त्म हो जाता है ! दरअसल - एक राजनेता असल मुहब्बत सिर्फ और सिर्फ अपनी राजनीति से करता है और जहाँ असल मुहब्बत है - वहीँ उसके लिए अहंकार का विशार्जन है और वहीँ उसकी रक्षा के लिए अहंकार जागृत है ! यह मामला पुरी तरह ह्यूमन साईकोलोजी से जुड़ा हुआ है !
दुर्भाग्यवश , आज के दिन बिहार में नेतृतव कमज़ोर हुआ तो राजनीति हावी हो गयी है ! नेतृतव शेर होता है और राजनीति लोमड़ी और इस जंगल में सभी साथ होते हैं ..वक्त का तकाजा है ..कौन कब मजबूत है ....:))
फिलहाल बिहार की जनता मौन है ...!!!
@RR