Saturday, June 13, 2015

Bihar Assembly Election - 2015 / बिहार विधानसभा चुनाव - २०१५


ये राजनीति नहीं आसां , इतना तो समझ लीजिये 
एक आग का दरिया है , और डूब के जाना है ...:)) 
मामला फंस गया है ! लालू कमज़ोर हुए या उनको गठबंधन में कम सीटें चुनाव लड़ने के लिए मिली , यादव वोट बिदक कर 'भाजपा' के पास चली जायेगी , जब अपना नेता मुख्यमंत्री के लिए नहीं है फिर क्यों वोट बर्बाद करना ! अगर लालू को गठबंधन में बराबर की सीटें मिली , फिर लालू चुनाव के बाद नितीश को निगल जायेंगे , बराबर के गठबंधन में किसी भी हाल में लालू के ज्यादा उम्मीदवार जीत के आयेंगे - फिर लालू किसी सोनिया / राहुल की नहीं सुनेंगे बहुत बार्गेन हुआ तो अपनी बेटी को वो उपमुख्यमंत्री बना कर ही मानगे ! इस हाल में प्रशासन का क्या होगा , भगवान् ही मालिक है ! इसमे कोई शक नहीं की मांझी के मुख्यमंत्री बनने के बाद सिर्फ और सिर्फ लालू की ही चली जिसका नतीजा यह हुआ है की लॉ - ऑर्डर बुरी तरह चरमराया हुआ है , नितीश को मांझी का फैलाया हुआ रायता साफ़ करने में दम निकल गया है , बहुत कोशिश के बाद अब कुछ बढ़िया सरकारी मुलाजिम काम कर रहे हैं ! मुस्लिम के शत प्रतिशत वोट नितीश वाले गठबंधन को मिलेगी ! 
मांझी को लाकर नितीश गलती किये , मांझी को हटा कर नितीश गलती किये ! कमज़ोर दलित वर्ग बुरी तरह आहत है ! वोट बर्बाद हो जाए तो हो जाए लेकिन नितीश को नहीं देंगे वाली तर्ज़ पर वर्तमान में हवा है ! अगर मांझी भाजपा के साथ चले गए फिर ब्रह्मा भी नितीश को हारने से नहीं रोक सकते ! 
नितीश को एक ही आदमी मदद कर सकता है वह हैं सुशील मोदी ! आरएसएस में अपनी पकड़ के बदौलत नितीश के पक्ष में भाजपा के अगर बीस भी कमज़ोर उम्मीदवार खड़े हुए फिर तो नितीश की बल्ले - बल्ले होगी ! भाजपा के लिए बेहतर होगा वह अभी ही सुशील मोदी को केंद्र का रास्ता दिखा दे , वरना ये आदमी कुछ भी बेच देगा ! नेटवर्किंग के उस्ताद सिर्फ और सिर्फ 'दलाली' कर सकते हैं - नेतागिरी नहीं ! 
नितीश कितना भी कर ले , किसी भी मंझे हुए दरबारी / स्तुतिगान करने वाले को ले आयें एक बात याद रखें - 'दरबारी' किसी का नहीं होता है , कल किसी और के साथ था आज आपके साथ है और कल किसी और के साथ रहेगा ! लोकसभा के तर्ज़ पर विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा जाता ! दिल्ली के बड़े पत्रकारों को धर्मनिरपेक्षता के आधार पर उनके हर हर एक शब्दों को अपने लिए खरीदने को जो मुहीम चला है - उसका कोई फायदा नहीं होगा ! वोट अप्रवासी बिहारी नहीं देंगे , वोट यहाँ के लोग देंगे !
जब नेतृतव मजबूत होता तब राजनीति कमज़ोर होती है ! जब राजनीति हावी होती है जब नेतृतव कमजोर हो जाता है ! जब तक नितीश का नेतृतव मजबूत था , उनके उपमुख्यमंत्री भी उनसे मिलने के लिए घंटो इंतज़ार करते थे ! सबकुछ सही था ! यही हाल केंद्र में है - नरेन्द्र मोदी मजबूत है सो वहां केन्द्रीय भाजपा में कोई राजनीति नज़र नहीं आ रही ! सब कुछ कमांड और कंट्रोल में है ! 
गठबंधन की तरफ बढ़ते हुए 'मांझी जी ' भाजपा के साथ हाथ मिला लिए हैं ! कल लालू जी के जन्मदिन पर नितीश जी उनसे मिलने गए और भरत मिलाप के दौरान कई पत्रकार इस कदर भावुक हुए की 'भोंकार पार' कर रोने लगे ! पूरा शहर भाव विह्वल हो गया ! पत्रकारों के साथ दिक्कत यह है की वो राजनीति को देखते तो जरुर हैं पर राजनीति और उनके बीच एक पारदर्शी ग्लास / सीसा होता है - नज़र सब कुछ साफ़ साफ़ आता है लेकिन महसूस नहीं कर सकते और जब तक आप किसी चीज़ को महसूस नहीं करेंगे - वह चीज़ आपको समझ में नहीं आयेगी ! पत्रकार जनता के बीच जाते हैं , घुल कर मिलते हैं तो कई बार वो सच लिखते - बोलते हैं ! अगर आपको राजनीति समझनी है तो राजनेताओं को सिर्फ खबर नहीं समझें , उनके अन्दर प्रवेश करें ! कोई कितना बड़ा पद पर पहुँच जाए - अन्तोगत्वा वह एक इंसान ही होता है जो अपने आंतरिक व्यक्तित्व से संचालित होता है ! 
कई पत्रकार और अफसर अक्सर मुझसे पूछते हैं - राजनेता कैसे सोचते हैं , पता ही नहीं चलता ! कब उनका अहंकार जाग जाता है और कब उनका अहंकार ख़त्म हो जाता है ! दरअसल - एक राजनेता असल मुहब्बत सिर्फ और सिर्फ अपनी राजनीति से करता है और जहाँ असल मुहब्बत है - वहीँ उसके लिए अहंकार का विशार्जन है और वहीँ उसकी रक्षा के लिए अहंकार जागृत है ! यह मामला पुरी तरह ह्यूमन साईकोलोजी से जुड़ा हुआ है ! 
दुर्भाग्यवश , आज के दिन बिहार में नेतृतव कमज़ोर हुआ तो राजनीति हावी हो गयी है ! नेतृतव शेर होता है और राजनीति लोमड़ी और इस जंगल में सभी साथ होते हैं ..वक्त का तकाजा है ..कौन कब मजबूत है ....:)) 
फिलहाल बिहार की जनता मौन है ...!!! 


@RR

Monday, June 8, 2015

नितीश कुमार / Nitish Kumar - कल , आज और कल


बिहार में नितीश राज के दस साल होने वाले हैं ! कुछ नौ महीने श्री जीतन राम मांझी के भी रहे , जो की उनके अनर्गल बयानों , विवादित कुंठीत सरकारी कर्म कर्मचारीओं के प्रोमोशन और परदे के पीछे कई कांडो के कारण बदनाम रहा ! 

अब सवाल उठता है - नितीश ने क्या किया और क्या नहीं किया ! नितीश ने जो कुछ भी साढ़े सात साल किया या नहीं किया , उसमे भाजपा भी शामिल रही है ! 

मुझे अपने एक दोस्त संतोष के द्वारा वर्षों पहले कही गयी एक बात याद आती है - ' किसी भी राष्ट्र , राज्य , इलाका , धर्म , जाति या परिवार के फॉरवर्ड / एडवांस होने का एक मात्र पैमाना है - वहां की औरतों / बेटी / बहु को कितने अधिकार मिले हुए हैं या उनका सामाजिक स्तर क्या है ' ! 
नितीश जिस इलाका / समाज / जाति से आते हैं , वहां के मिडिल क्लास में औरतों को लगभग पुरुषों के बराबर का अधिकार मिला हुआ है ! और इंसान जब शक्तीशाली होता है तब वह जिस समाज से आता है उसकी विशेषताओं को फैलाना चाहता है ! नितीश ने लगभग यही किया ! 
आज पटना का कोई ऐसा मिडिल क्लास का परिवार नहीं है , जहाँ बेटी को स्कूटी / स्कूटर नहीं मिला हुआ है ! आप किसी भी गली मोहल्ले में चले जाईये आपको किसी कोचिंग से ठहाका लगाते , अपने कंधे पर झोला लटकाए और अपने सपनों को उड़ान भरते हुए लड़कियाँ मिल जायेंगी ! यह परिवर्तन 'बॉटम - अप ' हुआ ! नितीश ने गाँव के हाई स्कूलों में पढ़ने वाली हर बेटी को साईकिल दिया ! जो बाप अपनी बहन को स्कूल जाने से रोकता था , वही बाप अपनी बेटी को साईकिल सिखाते नज़र आया ! 
सुबह नौ बजे गाँव की सडकों पर जब एक साथ बीस पच्चीस लड़कियाँ साईकिल पर सवार होकर स्कूल के लिए निकलती हैं , कोई भी संवेदनशील प्राणी का ह्रदय भर आएगा ! सपने पुरे होंगे या नहीं वो बाद की बात है , सपने आये तो सही ..यह एक जबरदस्त सामाजिक क्रांती थी , जिसका भरपूर फायदा नितीश कुमार - भाजपा की सरकार को नवम्बर 2010 में मिला ! जैसा की मैंने कहा - यह क्रांती ' बॉटम - अप ' था सो गाँव से शहर में भी आया ! कल तक जो सपने समाज के अभिजात वर्ग के महिलाओं के लिए थे , वो सपने धरातल पर फ़ैल कर हर किसी के लिए हो चला था ! 
बिहार बदलने लगा ...अखबार सकरात्मक होने लगे ...नितीश ने दूसरा एक बहुत बढ़िया काम किया , वो है 'सड़क निर्माण' ! गाँव गाँव सड़क बनवा दिया ! उदहारण के लिए , पटना से मेरा गाँव मात्र सौ किलोमीटर के एरियल डिस्टेंस पर है , लेकिन गाँव जाने में छः - सात घंटे लग जाते थे ! आज के तारीख में मुझे अपने गाँव पहुँचने के कई रास्ते हैं ! 
नितीश का स्लोगन ही था , राजधानी पटना से बिहार के किसी भी जिला मुख्यालय में पहुँचने में मात्र - पांच घंटे लगाने चाहिए और बहुत हद तक उनका सपना साकार नज़र आ रहा है ! 

इसके कई फायदे हुए , समाज का मिडिल और अपर मिडिल क्लास शहर के साथ साथ गाँव में भी बढ़िया घर बनाने लगा ! आप अपनी कार उठा , किसी भी मुख्या सड़क पर निकल जाईये , सड़क किनारे आपको कई गाँव और उन गाँव में एक से बढ़कर एक बढ़िया मकान नज़र आयेंगे ! हर एक बढ़िया गाँव में पचास लाख , एक करोड़ तक के घर नज़र आ जायेंगे !
इस सड़क निर्माण का दूसरा असर यह है की - अब हर घर में 'महिन्द्रा' के जीप नज़र आ जायेंगे ! पंचायत सदस्य से लेकर लोकसभा सांसद तक , सबके पास महिंद्रा कंपनी की 'स्कार्पियो' कार है ! बिहार के कोने कोने से औसतन हर दिन पटना में लगभग पांच हज़ार स्कार्पियो प्रवेश करती है ! पटना ठसमठेल रहता है !
ग्रामीण विकास का नतीजा यह है की जिला मुख्यालय भले ना पनप पायें हों पर छोटे मोटे कसबे में बहुत पैसा हो गया ! पिछले दस साल में सिर्फ केंद्र सरकार से बिहार के विभिन्न योजनाओं में करीब डेढ़ लाख करोड़ रुपैये आये ! यह पैसा विकास के साथ साथ , जिस जिस हाथों से गुजरा - उन उन हाथों को मजबूत बनाया 
smile emoticon
 अब यह आपका नसीब - आपके हाथ कितना आया लेकिन धरातल पर भी काम हुआ ! छोटे - मोटे कस्बे / प्रखंड में कई करोडपति नज़र आयेंगे , ठीकेदार से लेकर डॉक्टर तक ! सेमी अरबन इलाकों के प्रमुख डॉक्टर / फिजिसियन की कमाई लगभग पांच लाख रुपैये प्रतिमाह से ज्यादा है , जो पटना - मुज़फ्फरपुर इत्यादी प्रमुख शहरों के डॉक्टर्स की औसत कमाई से बहुत ज्यादा है ! यही हाल अन्यों का है ! सरकारी 'कर - कर्मचारी' भी फिल्ड पोस्टिंग के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार थे / हैं ! ( फिल्ड पोस्टिंग - छोटे शहर में पोस्टिंग ) क्योंकी सारा मलाई उधर ही बह रहा था !
बढ़िया सड़क और नए सड़क के चलते कई खेत सड़क किनारे हो गए जिसके चलते अचानक से कई खेतों का दाम भी बहुत बढ़ा , लेकिन उसी रफ़्तार में अन्य विकास नहीं होने से दाम घटा भी !
एक और बढ़िया चीज़ हुई , उद्योग / बिजनेस के नाम पर - हर बड़े शहर से लेकर छोटे शहर तक - ऑटोमोबाईल्स की एजेंसी खुल गयी और आज बिहार में यही ऑटोमोबाईल एजेंसी वाले नए 'कुबेरपति' है ! पेज थ्री आइटम से लेकर , हर कोई इनसे दोस्ती करना चाहता है ! अधिकतर चालीस / पैंतीस से कम उम्र के लडके हैं , जिनके बिजनेस में सरकारी कर कर्मचारी के पैसे लगे होते हैं ! पर , विकास नज़र आता है ! हर शहर के बाईपास पर बड़े बड़े शो रूम ! अब पचायत सदस्य भी अपनी बेटी को शादी के बाद किसी बड़े चार पहिया में विदा कर रहा है !
टैक्सपेयर का गाढ़ी कमाई ...हर तबके में बराबर बंट रहा है ...थोडा सड़क निर्माण हो रहा है ...थोडा इंजिनियर / ठीकेदार साहब का छत भी ढला रहा है ...:))
बिहार बदलने लगा ...अखबार छपने लगा ...

इस सीरिज के पहले हिस्से के पहले पैरा में ही कुछ बातें हैं , ध्यान से पढियेगा ! मै कोई भाजपा - नितीश - लालू नहीं कर रहा , बल्की चीज़ों को अपनी नज़र से देख रहा हूँ ! इसमे कोई दो राय नहीं की अगर बिहार की राजनीति एक दुल्हन है तो नितीश से बढ़िया कोई दुल्हा नहीं ! अब येन सिन्दूर दान के वक़्त दुल्हा बेवडा होकर भाग जाए तो यह एक दुर्भाग्य ही है , ऐसे मौकों पर बाराती में से ही किसी अन्य को खोज दुल्हन का सिंदूरदान करवा दिया जाए तो यह कोई मेल भी नहीं ! 
नितीश ने ग्रामीण विकास पर जोर तो दिया पर शहर बुरी तरह नेगलेक्ट हो गए ! शहर विकास के नाम पर इनके पास कुछ नहीं था ! हर चुनावी घोषणा पत्र में 'ग्रेटर पटना' की बात हुई पर हुआ कुछ नहीं ! मिडिल और अपर मिडिल क्लास को देने के लिए इनके झोली में कुछ नहीं था ! कुछ एक ओवरब्रिज बना देना ही विकास नहीं होता है !
समाजवादी और कम्युनिस्ट नेताओं का यह जबरदस्त भ्रम रहता है की जो कल गरीब था वो आज भी गरीब है और वो कल भी गरीब रहेगा ! जबकी पिछले पच्चीस साल में देश के हर तबके , जाति , समाज के जीवन स्तर में जबरदस्त सुधार आया है और जो कौमें मेहनतकाश हैं वो तो आसमान छू रही हैं ! हर जाति के लोग मिडिल क्लास / अपर मिडिल क्लास में प्रवेश किये हैं ! और आप जैसे ही एक ऑर्बिट से दुसरे ऑर्बिट में प्रवेश करते हैं , आपकी कई जरूरते और आदतें बदल जाती है ! यही वो क्लास है जो सबसे ज्यादा टैक्स पे करता है !
उदहारण के लिए , पटना में कहीं भी , कोई भी एक कॉफ़ी हॉउस नहीं है जहाँ कुछ बुद्धिजीवी वर्ग एक जगह बैठ कर कुछ बहस कर सकें ! मिडिल क्लास की बहुत सारी जरूरतें होती हैं - बच्चों के लिए बढ़िया स्कूल , पार्क से लेकर एक बड़ा मॉल तक ! उसको अपनी कार पार्किंग के लिए भी जगह चाहिए ! इस क्लास को बहुत कुछ चाहिए !
नितीश यहाँ बुरी तरह फेल हैं ! जिस बाज़ार से मेरी नानी अपने लिए चूड़ी खरीदती थीं , उसी बाज़ार से मेरी बेटी भी अपने लिए चूड़ी खरीद रही है - यह एक जबरदस्त दुर्भाग्य है ! देश के दुसरे राजधानी मसलन रायपुर , रांची , भुवनेश्वर कहाँ से कहाँ पहुँच गए पर पटना वहीँ खडा है - कंकडबाग में ! हद हाल है !
और यही वजह है की बिहार से पलायन नहीं रुका ! आज भी ट्रेन / प्लेन पकड़ के बाहर कमाना एक स्टेटस सिम्बल है ! आदमी वही है , जगह बदल गया तो वो राजा बन गया , बिहार में रह गया तो गर्त में समा गया !
कुछ नहीं करना था , बस पटना के आस पास एक हज़ार एकड़ ज़मीन एक्वायर कर के , वहां आधा में आईटी पार्क बना देना था और आधा को बिल्डर में बाँट देना था ! बस आईटी पार्क में देश के कोने कोने से लोग आते , अपने साथ अपनी सभ्यता लाते , कुछ कमाते - कुछ खर्च करते और वहीँ से बिहार में एक 'सिविक सेन्स' शुरू होता !
मालूम नहीं ये सामाजिक क्रांती के नाम पर चलने वाली राजनीति में और कितने पीढी बर्बाद होंगे ....

शक्ती अंधा बना देती है ! इंसान अपने कानो पर ज्यादा भरोसा करने लगता है ! पर यह गलत है , कई बार देश , राज्य , परिवार या किसी रिश्ते के हित में अपने अहंकार को झुका देना होता है ! इंसान तो इंसान ही है - गलती करेगा ही करेगा ! 
और यहीं नितीश मात खा गए ! शेर के इर्द गिर्द भेड़िये बैठे होते हैं , पहले वो शेर के जूठे खाते हैं और एक दिन शेर को ही खाने के फ़िराक में होते हैं ! यही कुछ नितीश के साथ हुआ ! एक गलती कर बैठे - राज्य के विकास को रोक भाजपा से अलग हो गए ! फिर दूसरी गलती मांझी जैसे मंझे हुए खिलाड़ी को मुख्यमंत्री बना कर ! फिर तीसरी गलती लालू से दोस्ती ! पिछले दो साल में पूरा बिहार चरमरा गया , लड़की लोग का शिक्षा - सड़क निर्माण - प्रशासन सब का सब बैठते चला गया !
पिछले लोकसभा चुनाव में कुछ एक जगह मै घुमा ! लोगों का यही कहना था - लोकसभा में नरेन्द्र मोदी को वोट देंगे और विधानसभा में नितीश कुमार को ! नितीश भय में चले गए - लोकसभा चुनाव में भाजपा की जबरदस्त जीत ने उनके कॉन्फिडेंस को हिला कर रख दिया और आस पास 'भेडिये' बैठे ही हुए थे - हाथ मिलवा दिया लालू से !
आज के दिन में लालू के पास अपनी जाति को छोड़ कोई वोट बैंक नहीं है , मुझे यह भी शक है की उनकी खुद की जाति के नौजवान भी उनको वोट नहीं देंगे ! नितीश खुद को ज़िंदा करने के चक्कर में लालू को ज़िंदा करने लगे !
अकेला रहना कहीं भी गलत नही है - कई बार आपके अकेलेपन को भी इज्जत मिलती है पर किसी गलत से हाथ मिला लेना , यह गलत है ! लोग आपके व्यक्तित्व पर ही सवाल उठाने लगते हैं !
लालू और मांझी ने प्रशासन का जो हाल किया है वो किसी से छुपा नहीं , नितीश को इसको संभालते - संभालते देर हो गयी ! भाजपा विपक्ष में है - वो तो चाहेगी ही की नितीश से गलती हो ! हर कोई संजय नहीं होता जो बंद कमरे से भी महाभारत का हाल देख ले ! नितीश जिस जुबान पर भरोसा किये वो सारी जुबाने उन्हें कुएं में धकेलने के लिए बैठी थी !
भाजपा के साथ वो शेर थे , लालू के साथ वो दरिद्र बनते नज़र आ रहे थे !
अभी भी वक़्त है - अगर वो अकेले चलेंगे - बिहार की जनता उनको चुन सकती है ! रवि शंकर प्रसाद , सुशील मोदी से काफी बेहतर नेतृतव देने की क्षमता नितीश के पास है !



"इश्क और राजनीति में यही होता है - दुनिया घात लगा कर बैठी होती है , जहाँ आप कमज़ोर दिखे वहीँ आप पर हावी होकर आपको अन्दर से तोड़ देती है " ! 

जो कुछ भी खबरें आ रही हैं , नितीश कुमार बुरी तरह फंसे हुए नज़र आ रहे हैं ! समय का कुचक्र है या नितीश के खुद के निर्णय लेकिन अन्तोगत्वा नितीश फंस चुके हैं ! अखबारों में छपी तस्वीरें , नितीश के मनोदशा को दिखा रही है ! अब इस मोड़ पर , नितीश भाजपा के साथ जा भी नहीं सकते हैं , वह स्वीकार नहीं करेगी ! लालू के साथ खुल कर जायेंगे , चुनाव बाद लालू ऐसा पलटेंगे , जिसका पूरा अंदेशा है ! 'वोट हमारा - ताज तुम्हारा' नहीं होगा कह कर लालू अपनी बेटी को कुर्सी पर बैठा देंगे ! नितीश इस भविष्य को पुरी तरह भांप चुके हैं ! सोनिया / राहुल के दरबार से लालू को समझाने का प्रयास होगा , लालू अभी मान भी जाएँ लेकिन इसका कोई गारंटी नहीं है की चुनाव के बाद लालू सोनिया की बात भी मानेंगे , ऐसा नहीं होगा - लालू अपना गमछा उठा निकल पड़ेंगे ! राजनीति में कोई त्याग नहीं होता , सत्ता ही सबकुछ होती है !
ऐसी परिस्थिती में , या तो फिर से दुबारा जल्द ही चुनाव होंगे या जनता अकुता कर इसी बार भाजपा को पूर्ण बहुमत दे देगी ! ऐसा लग रहा है , नितीश अपनी जिद में , खुद ही तस्तरी में सता भाजपा को सौंपते नज़र आ रहे हैं !
पर भाजपा में भी सबकुछ आसान नहीं है ! सुशील मोदी को मुख्यमंत्री पद शायद ही नसीब हो , नन्द किशोर यादव को बहुत तेज़ी से आगे बढ़ाया जा रहा है ! अब इस हाल में सुशील मोदी खुद भाजपा को सत्ता के नज़दीक आनी से कितना रोक पाते है , यह समय बताएगा ! वो मुख्यमंत्री पद से कम कुछ भी नहीं के आधार पर राजनीति करते नज़र आ रहे हैं !
कहने के लिए - राजनीति में लड़ाई बाहर वालों से होती हैं - पर असल लडाई तो अन्दर होती है , कब कौन आपके पीठ में खंज़र घोंप दे ...:))
अगला एक महिना ..तराजू का पलरा ..कभी इधर तो कभी उधर नज़र आएगा ...पर जनता सारे खेल को देख रही है ...और नरेन्द्र मोदी / अमित शाह के लिए बिहार ही सबकुछ होगा वाली तर्ज़ पर राजनीति करनी होगी ...किसके घर में क्या पाक रहा है ...सबकुछ परदे के भीतर ही है ...! जुबान चुप है ..मन अशांत है ! यही राजनीति है ...इश्क से भी घटिया ..:))



इश्क और राजनीति में जुबान का कोई महत्व नहीं होता ! दोनों पक्ष अपना अपना टारगेट फिक्स करता है ! जिसका टारगेट पहले पूरा हुआ , वह अपने जुबान से पलट जाता है ! जो जुबान को महत्व दिया , उसका डूबना तय है ..:)) इसलिए लोग सामने वाले को मजबूर / कमज़ोर बनाए रखते हैं ..या किसी कठोर बंधन के तलाश में रहते हैं ! वरना जैसे ही सामने वाला मजबूत हुआ , अपना टार्गेट पूरा होते ही कमंडल उठा चल देता है ..:))
अभी - अभी मुलायम ने कहा है - नितीश ही गठबंधन के नेता होंगे ! लालू पर निगाहें टिकी हुई हैं ! लालू को 'खखर कर बोलना होगा' ! जब तक लालू 'खखर के नहीं बोलेंगे - वोटर असमंजस की स्थिती में रहेंगे !
अभी तक जो खबर आया रही है - लालू और नितीश 100-100 सीट पर लड़ेंगे ! बाकी के 43 सीट कांग्रेस और अन्य को दी जायेंगी ! चुनाव के बाद लालू या नितीश , किसका दल कितना सीट जीतता है - अगर लालू के उम्मीदवार ज्यादा होंगे फिर लालू किसी भी स्थिती में नितीश को मुख्यमंत्री नहीं बनायेंगे ! अगर भाजपा मौक़ा चुक जाती है फिर वो चुनाव बाद इस खेल में बड़ा भाई बन कर नितीश को आगे कर सकती है !
अभी के स्थिती में लड़ाई कांटे की नज़र आ रही है , खासकर कागज़ पर ! लोकसभा चुनाव के तर्ज़ पर इस बार 'एनआरबी' / अप्रवासी बिहारी का रोल नहीं होगा ! वोट यहाँ के लोग देंगे ! अधिकतर वही देंगे जो पचास - पचपन से ऊपर के हैं और जो सब कुछ जाति देख कर ही करते हैं , ऐसे लोगों की संख्या बहुत ज्यादा है ! नरेन्द्र मोदी का भी वैसा हवा नहीं रह गया है ! नितीश को चाहते हुए भी लोग लालू से भयभीत हैं ! युवा वर्ग जन्मते ही बिहार छोड़ने के जुगार में रहता है !
कुछ भी हो , इस बार चुनाव में जाति / क्लास / उम्र / केंद्र सरकार / लालू / नितीश / मांझी / पीठ में छुरा इत्यादी सारे रंग एक साथ होंगे ! लगभग सौ सीटों पर हार जीत का मामला पांच हज़ार वोटों से कम पर होगा ! तराजू किधर झुकेगा कहना मुश्किल है ! मांझी भी लगभग आठ - नौ प्रतिशत वोट लेकर किसको फायदा पहुंचाएंगे , कहना मुश्किल है !
कई उम्मीदवार वोट रहते चुनाव हार जाते हैं ! हर दल से विद्रोही उम्मीदवार उठेंगे ! कई शौकिया उम्मीदवार होंगे ! कुल मिलाकर अगला नब्बे दिन , हर दिन इम्तेहान का होगा !
अखबार , टीवी , सोशल मिडिया भी अपने रंग में रहेगी !
वोटर चुप है ! उसे पता है ...भविष्य कहाँ है ! बिहार अपने गर्त से एक भविष्य को ताक रहा है ...फिर से गर्त में ना फिसल जाए ...यहीं पर सबकी निगाहें होंगी ...:))
धन्यवाद !



@RR