मार्च का महीना "गजब" का महीना होता है ! मुझे लगता है यह महीना बाकी सभी महीनों मे सबसे महताव्पूर्ण होता है ! बिहार और देश भर मे इस महीना मे "मैट्रिक" का परीक्षा होता है ! बिहारी लोग इस परीक्षा को एक "पर्व" की तरह मानते हैं ! घर मे जो परीक्षार्थी होता है - उसको वरती के रूप मे मान लिया जाता है ! एक जमाना था जब पूरे गाँव के हर घर से एक दू वरती होता था ! माँ और बेटी दोनों एक साथ परीक्षा देते हुए देखा गया है ! एक साल पहले से "वरती या परीक्षार्थी" को लोग टोकना शुरू कर देते हैं - " तब , इस बार है , नु " ! मामा - मामी , चाची- चाचा , फुआ - फूफा - बड़ा भाई - छोटा भाई - घर परिवार , आस पड़ोस , पट्टीदार - गोतिया , सभी के सभी आपको ध्यान मे लाते हैं - कभी कभी थोडा बहुत पढे लिखे नौकर भी टोक दिया करते हैं !
मैट्रिक का परीक्षा अपने आप मे एक "प्रोजेक्ट होता है ! कहीं कहीं यह देखा गया है की - जिस शिक्षक से बाप ने पढ़ा - बेटा का मार्ग-दर्शन भी वही शिक्षक करते हैं ! प्रे बोर्ड के बाद - गेस पेपर खरीदना से लेकर - चिट पुर्जा के तकनीक - यह सभी " परीक्षार्थी" की कुशल प्रबंधन और स्टेटस को बताते हैं ! घर परिवार मी कुछ लोग कुशल मैट्रिक परीक्षा प्रबंधक होते हैं - उन लोगों विशेष रूप से बुलाया जाता है ! जहाँ परीक्षा केन्द्र बना हैवहाँ कोई चित परिचित खोजा जाता है - कभी कभार या अधिकतर जगहों पर देखा गया है की परीक्षा केन्द्र के "चपरासी" जितना काम कर जाते हैं - उतना बड़ा से बड़ा अधिकारी भी नही ! परीक्षा केन्द्र पर एक अलग नजारा होता है - बिल्कुल मेला की तरह - होम गार्ड के जवानों के पास साल भर मी कमाने का पहला और अन्तिम मौका होता है ! परीक्षा ख़त्म होते ही वही "चपरासी" बताता है की कॉपी कहाँ कहाँ गयी है ! फ़िर शुरू होता है - जांच केन्द्रों मी अपने आदमीओं की खोज !
आने वालों सालों मे यह एक मील का पत्थर होता है - लोग बात चिट मे कहते हैं - फलाना के बेटा के मैट्रिक के परीक्षा मे मेरा "छाता " खो गया टू कोई कहता है की होम गार्ड के डंडा से मेरा कुर्ता फट गया !
वक्त बदल गया - आज २१ साल हो गए मुझे मैट्रिक पास किए हुए - सब कुछ आंखों के गुजर रहा है - जैसे कल की ही बात है !
खैर ...... क्रमशः