Monday, December 24, 2012

संगमरमर में तेरे... वो निशाँ मेरे हैं ...


तन्हाईओं में तेरे... अब सारे सवाल मेरे हैं ...

चाहतों में तेरे ...सारे ख्याल मेरे हैं ...
संगमरमर में तेरे... वो निशाँ मेरे हैं ...
पिघलते रूह के ...चश्म - ए - सैलाब में 
... जब तुम देखते हो...मुझे यकीन है....

...वहां सिर्फ हम ही हम हैं .........
 ~~ RR

१६ दिसंबर - २०१२
 
कभी पूछना चाँद से 
वो पिघलता क्यों है ...
कभी पूछना आसमान से 
वो झुकता क्यों है ..
कभी पूछना गुलाब से 
वो महकता क्यों है ...
कभी पूछना सूरज से 
वो तपता क्यों है ...
कभी पूछना रात से 
वो इतना जागता क्यों है ...

कभी पूछना अपने दिल से
उसमे बसता कौन है ..
कभी पूछना अपने ख्वाबों से
उसमे आता कौन है ...

कभी पूछना अपने खुदा से
वो रहता कहाँ है ... :))
~~ RR



१४-१५ अक्टूबर , २०१२
ऐरावत से न पूछना ....तुम इतने विशाल क्यों हो ...
शिव न पूछना ...तुम नीलकंठ क्यों हो ...
दुर्गा से न पूछना ...तेरी शक्ती कहाँ से आयी ...
मुझसे न पूछना ...मेरी भक्ती कहाँ से आयी ...
~~RR


१ अगस्त - २०१२

उस चाँद को कैसे आदाब करूँ ...
जो पास आकार भी बादलों की ओट में छुप गया ....
उस चांदनी में कैसे खुद को जगमगाऊं....
जो पास आकार भी बादलों में बिखर गयी .....
~~RR

१ अगस्त - २०१२ 

कब माँगा तुझको तुझसे 
कब माँगा तुझको रब से 
माँगा तो ...कुछ 
तेरे एहसास खुद के लिए 
तेरी धडकन खुद के लिए 
तेरी चाहत खुद के लिए 
कब माँगा तुझको तुझसे 
कब माँगा तुझको रब से 
माँगा तो ...कुछ 
तेरी वफाई खुद के लिए 
तेरा जागना खुद के लिए 
तेरे ख्याल खुद के लिए 
बोलो 
कब माँगा तुझको तुझसे 
कब माँगा तुझको रब से 
~~ RR




शब्द चोट देते हैं ! शब्द मरहम लगाते हैं ! शब्द तुम्हारे पास खिंच लाते हैं ! शब्द तुमसे दूर ले जाते हैं ! लाल सूरज से लेकर चमकते चाँद तक मेरे शब्द ....अमावास की रात सितारों से जगमाते हमारे शब्द ... ...जो शब्द तुम्हे पसंद हो खुद ही चुन लेना ..कुछ मैंने भी चुने हैं ...कुछ तुम भी चुन लो ...

~~ रंजन 

Friday, December 21, 2012

सारी रात मेरे शब्द जलते रहे ...तुम पत्थर से मोम बनते रहे


२२  फरवरी - २०१२ 

इश्क एक ख़ूबसूरत एहसास है ! मन एक शांत झील की तरह है – तुम्हारी खुबसूरत निगाहें उस पत्थर की तरह हैं जो झील में जाते ही ‘इश्क’ की तरंग पैदा करती है – मै झील के किनारे से उन तरगों को देख खुश हो जाता हूँ – फिर वो तरंग खुद ब खुद शांत हो जाती है – फिर झील के दूसरे किनारे से किसी और ने एक पत्थर फेंक दिया ..ये क्या हुआ ..कह कर झील से दूर चला जाता हूँ .....बहुत दूर ..उस पर्वत पर् ..जहाँ से कोई झील नज़र ना आये ....

२३ फरवरी - २०१२

किसी सुनसान जगह पर् बनी एक मंदिर के बड़े चबूतरे पर् सो जाने को मन करता है ! नीचे से हल्की ठण्ड मिलती रहे और ऊपर से सूरज की गर्मी ! धूप जब आँखों को बर्दास्त न् हो फिर बगल के बरगद के नीचे बेफिक्र होकर सुस्ताने को जी चाहता है ! फिर अचानक उठ उन खेतों की हरियाली के बीच बिना किसी सफर के भी चलते जाने को मन करता है ! 
इस् अन्जान शहर में अन्जान चेहरों के बीच अपनी एक पहचान बनाते बनाते थक गया हूँ ! अजीब शहर है ! सुबह से शाम हो जाती है - उन अन्जान लोगों से एक रिश्ता बनाने में - फिर अगली सुबह वो फिर से अन्जान नज़र आते हैं ! यह खेल रोज का हो गया है - अब इस् खेल से मन घबराता है !

२३ फरवरी - २०१२ 

सारी रात मेरे शब्द जलते रहे ...तुम पत्थर से मोम बनते रहे .....

२५ फरवरी - २०१२ 

जाओ ..सितारों से कह दो ..आज पूनम की रात है ...

२५ फरवरी - २०१२

चमकते चाँद के घमंड को देख - सूरज रात में क्या सोचता होगा ?? करवटें बदल बदल सुबह का इंतज़ार करता होगा :-)

७ मार्च - २०१२

आज चाँद बेहद ख़ूबसूरत नज़र आ रहा है - एक बार देखा तो देखता ही रह गया ! सफ़ेद - सफ़ेद ! दिल कहता है - उस सफ़ेद चाँद को रंग में भिंगों दूँ ...हरा - नीला - पीला - लाल - गुलाबी ..कल होली है ...कल चाँद सतरंगी हो जायेगा ..

११ मार्च - २०१२

बहुत कुछ लिखने को दिल करता है - पर् मालूम नहीं कब वो शब्द आपस में मिलकर तुम्हारी तस्वीर बना देते है -जैसे मेरे शब्दों को सब कुछ पता है - फिर मेरे शब्दों से बनी तुम्हारी तस्वीर बोंल उठती हो ..कहती हो  ..कुछ देर और मुझे चादर में ही रहने दो ..
१२ मार्च - २०१२ 
ए उम्र थोडा धीरे चलो ना ...तुम्हारे साथ दौड़ते - दौड़ते थक गया हूँ ..तेरी तेज रफ़्तार मुझे बेदम कर देती हैं ..देखो ना ..जीवन के इस् खूबसूरत मोड़ पर् कितना बढ़िया नज़ारा ..तू आगे बढ़ ..मै यहीं थोडा रुक जाता हूँ ..मालूम नहीं तू कब बोंल दे ...सफर अब खत्म हुआ ..ए उम्र थोडा रुक ..न् !

१५ मार्च - २०१२ 

बर्फ पर् वो तस्वीर बनाने चला था ..........पिघल गयी ....

२४ मार्च - २०१२

आदमी विचित्र जानवर है ! जिस प्रकृति ने उसको जन्म दिया - वो ताउम्र उसी प्रकृति से लड़ता है - खुद को खुद में ही कैद कर लेता है - फिर खुद से लड़ता है - फिर एक दिन इसी प्रकृति को खुद को सौंप - विदा हो जाता है - पर् लड़ता जरुर है - बिना लड़े उसे चैन नहीं - लड़ते लड़ते जब दम घूंटने लगता है तो वो अपनी प्रकृति को खोजता है - पर् वो भी क्षण भर के लिये-फिर उस क्षण के लिये अपना सब कुछ दाँव पर् लगा देता है - इस् लड़ाई में जो कुछ जीता - वो एक तरफ और वो क्षण एक तरफ - फिर हर एक क्षण के लिये तरसता है - प्रकृति हँसती है - हँस के आदमी को अपने गोद सुला लेती है - कहती है - आदमी हो - ये लड़ाई तुम्हारे वश का नहीं - आओ ..फिर से उसी प्रकृति में समा जाओ -
कभी आपने जाना ? आपकी प्रकृति क्या कहती है ? :))
~ RR

२५ मार्च - २०१२

पत्थरों को सिर्फ कागजों पर् ही पिघलते देखा है ....
~ RR

" जब हम सितारों से मिलेंगे ...उस तन्हा चाँद को भी याद करेंगे ...." 
~ RR

२९ मार्च - २०१२

यादों के कब्र पर् ....अब तेरे नाम का भी एक दीया जला करेगा ....
~ RR
३१ मार्च - २०१२

"तेरे रूह की खुशबू से तरबतर इस् कलम पर् कुछ हक तो तेरा भी बनता है "
~ RR
८ अप्रैल -२०१२ 
जब कभी जी भर के देखना चाहा ...
एहसास - ए - जुर्म हुआ ..
~ RR

१६ अप्रैल - २०१२ 

एक जागती "भोर" से ज्यादा ताजगी कहीं नहीं है .....और एक ढलती 'सांझ' से खुबसूरत कोई नहीं है ...
~ RR

२२ अप्रैल - २०१२ 

तेरे दिए हुए ..दर्द की स्याही सूख चली है ..अब कलम कुछ और ही लिखते हैं ..
~ RR
२० मई - २०१२ 
एक दीवार कमज़ोर दिखता है ! दरार आ गयी है ! हर सुबह उस दरार पर् नज़र पड़ जाती है ! फिर दिन भर काम धंधे में इतना व्यस्त हो जाता हूँ - उस दरार को भूल जाता हूँ ! फिर शाम वही दरार फिर से नज़र आ जाती है ! उस दरार और दीवार को देखते देखते रात गुजर जाती है !
इस् दीवार पर् एक इमारत खड़ी है और इमारत के छत के नीचे मेरी जिंदगी बसर करती है !

२८ जून - २०१२

पत्थर तो पिघल जायेगा ..लेकिन मोम सा मेरा दिल ..तेरे सीने में जल के राख हो जायेगा ..
@RR

९ जुलाई - २०१२
फकीरी से बड़ी बादशाहत क्या होगी ? 
@RR

१० जुलाई - २०१२
आज भी याद है ...बस की खिडकी से आती ...बारिश की तेज बुँदे ...तुम्हारा खिडकी से हाथ निकाल उन बूदों को महसूस करना ...फिर एक तिरछी नज़र ..और फिर मेरी झुकी नज़र ..जैसे मैंने कुछ देखा ही नहीं ....बस उन बूदों को तुम्हारे साथ मैंने भी महसूस किया था !
आज फिर बारिश हुई है ...जब मैंने अपने तलहटी को बालकोनी से बाहर किया ...दो बूँद टपक पड़े थे ...शायद तुमने भी महसूस किया होगा ..!
@ RR
१० जुलाई - २०१२
जब अपनी मिट्टी पुकारती है ....जब अपना लहू बुलाता है ....दूर ...दूर कहीं बैठा आदमी सारे बंधन तोड़ चला आता है !
@RR