Thursday, August 30, 2007

आज के पत्रकार : कुछ सवाल

बात सन १९८९ कि होगी ! मैं +२ मे था ! अखबार मे एक खबर आयी कि भारत के सबसे प्रतिष्ठित रोजगार मे 'चिकित्सा' प्रथम स्थान पर और 'पत्रकारिता' दुसरे स्थान पर ! मेरे मानस पटल पर यह बात अंकित हो गयी ! 'पत्रकारों' को मैं एक विशेष नज़र से देखता था ! पर भ्रम टूटते ज्यादा देर नही लगी ! दिल्ली के डाक्टर समाज को मरीजों को लुटते देखा था पर पत्रकार तो पुरे देश को ही दावं पर लगा देते हैं ! अधिकतर तो वैसे लोग है - जिनके अन्दर 'कलक्टर ' नही बन पाने कि कुंठा है ! और उनके अन्दर कि यह 'कुंठा' हमारे लिए 'अभिशाप' बन जाती है ! 'कलम' कि ताकत को आतंकवादी कि राइफल के बराबर खड़ा कर दिए हैं !

अभी हाल मे ही एक 'पत्रकार' महोदय का 'ब्लोग' पढ़ रह था ! अजीब लगा ! देखा कैसे वोह कहानी के द्वारा 'बिहारी' समाज को गाली दे रहे हैं ! उनको 'बिहारीयों' को गाली देने मे एक अलग आनंद मिलता है ! खुद को 'दिल्ली वाला' कहलाने मे और राजदीप जैसे "बिहार विरोधीओं' के साथ फोटो खिंचवाने के उनकी आदर बढती है !

"चक दे इंडिया' मे और भी बहुत कुछ है ! मुस्लिम के अलावा और भी बहुत सारे संदेश हैं ! पर पत्रकारों को 'कबीर खान' का मुस्लिम होना जैसे एक तोहफा है - जिसमे वोह अपना एक 'पाठक-वर्ग' और 'बाज़ार' देखते हैं ! और पत्रकारों का यह बाज़ार , भारत को बाँट रहा है !

इलेक्ट्रोनिक मीडिया तो और 'बरबाद' है ! बिल्कुल सडे और गले हुये टमाटर कि तरह ! एक दो को छोड़ - किसी मे भी मेरिट नही है ! 'बिहारी पत्रकारों' के बीच एक होड़ है - कौन कितना बिहार को और गंदा दिखा सकता है ! आप एक सवाल puchhiye तो - खुद को समाज का आईना बताने लगेंगे ! यह कौन सा आईना है जिसमे सिर्फ और सिर्फ गंदी तस्वीर दिखाई देती है ! अब मेरे जैसे कई लोग हैं जिनको लगने लगा है कि यह आईना ही गन्दा है ! और गंदे आईने मे कौन अपनी तस्वीर dekhana पसंद करेगा ? शायद मैं तो नही !

रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा

5 comments:

Gyan Dutt Pandey said...

और गंदे आईने मे कौन अपनी तस्वीर dekhana पसंद करेगा ? शायद मैं तो नही !

सही कहते हैं, अपनी तस्वीर के लिये बाहर नहीं अपने अन्दर देखना चाहिये. बाहर के लिये या तो इग्नोर करें या क्षमा करें. लोग तो जैसे हैं, बदलने वाले नहीं!

संजय शर्मा said...

Kya miliye aise logon se jinaki fitrarat chhupi rahe Naqli Chehra
saamane aaye Asali surat Chhupi Rahe !!
1-2-3 hi nahi Bahut saare sahi hai"Patrakarita me jo khoob sundar likhate hain,khoob sundar reporting karte hain par unko side kar diya jata hai kyonki ve jhukte nahi hain.jo na jhukega wo to Toot-toot kar bikhar gaya hai.

Ham ta kaha taani ki Ye log Bharat-Darpan bekaare me nu banal baa jabki jaroori ba Patrakar Darpan me apan Patrakarita dekhe ke.
Barahm Baba agar aise Babua ko D.M. chahe S.P.bana diye hote to Khaali Zila hi kharaab karta abhi ye to pura "Countryiye" Lapet raha hai.
Rahal-sahal apana blog par bhi dhoye ke vichaar baa.

Sanjay "Sarpanch"

TV said...

यह कौन सा आईना है जिसमे सिर्फ और सिर्फ गंदी तस्वीर दिखाई देती है ! अब मेरे जैसे कई लोग हैं जिनको लगने लगा है कि यह आईना ही गन्दा है !

Wow. This is fantastic. Apt description of the media vis a vis its coverage of Bihar - from Nalini Singh to Royal Lantern (Raj deep)

Ahmad Rasheed said...

WAH BHAI MUKHIYA JEE KYA KHOOB LIKHE HAIN. BHAI MAINE TO AAJKAL YEH KHABRIYA CHANEL DEKHNA HI BAND KAR DIYA HAI ABHI BHI SAB SE ACHI NEWS DD KI HI KOI MASALA NAHI. WAISE JIS PRAKAR SE PATRKARITA KA SATAR NECHE GIRA HAI USKA TO BHAGWAN HI MALIK HAI.
AAPKA BHAI
AHMAD RASHEED

खुश said...

अधिकतर पत्रकारों का रोल माडल दरोगा ही होता है। लेकिन पत्रकारिता की इस दशा के लिए जिम्मेदार कौन है, इसपर नजर डालें तभी असलियत सामने आ पाएगी।

वैसे मैं आज भी मानता हूं कि दूसरे क्षेत्रों के मुकाबले तुलनात्मक रूप से पत्रकारिता बेहतर स्थिति में है। लेकिन यह स्थिति 20 से 25 फीसदी लोगों की वजह से ही है, बाकी तो जुगाड़कार हैं।