Friday, August 3, 2007

कुछ यादें "दालान" की !

अपने गांव वाले "दालान" कि याद आ रही है ! बहुत बच्चा थे त "दालान" मे रखी हुयी कुर्सीयों को रेलगाड़ी बना कर खेलते थे ! बड़ा मजा आता था ! शाम को दादी , भुन्जा दे देती थी और हम लोग गमछी या पाकिट मे भुन्जा भर लेते थे , मकई और चना का भुन्जा घोंसार से आ जाता था ! "चाचा " टाईप आइटम लोग भुन्जा और "पोठिया मछली" खाता था !

थोडा बड़ा हुये त गरमी के दिन मे ही गांव जाना होता था , सो दोपहर को हम सभी भाई बहन लोग "दालान" मे इकट्ठा हो कर ,"वीर कुंवर सिंह" वाला नाटक खेलते थे ! खूब मजा आता था !
गरमी के शाम को बाबा और गोतीया / पट्टीदार के बडे बुजुर्ग सभी "दालान" के सामने खटिया और कुर्सी बिछा कर पुरा ईलाका का राजनीति बतियाते थे ! साढे सात बजे प्रादेशिक समाचार होता था , फिर कुछ लोग जो तनी ज्यादा अदवांस होता था वोह बीबीसी सुनाता था ! सबके घर मे देल्ही वाला "संतोष" रेडियो होता था ! और अन्दर यानी "दालान" के अन्दर चाचा टाईप आइटम लोग ताश मे busy होता था - २९ वाला खेल , जिसमे गुलाम का सबसे ज्यादा प्वाइंट होता है ! हम लोग का भी जीं ललचाता था कि देखें कैसे २९ या ताश खेला जाता है ! हिम्मत नही होती थी उस वक्त दालान के अन्दर जाने कि , फिर भी कभी कभी चले जाते थे , कभी यह बोल कर कि "लालटेन कि जरुरत है - चप्पल भुला गयील बा " तो कभी यह कह कर कि "चाची , बुला रही है " ! ताश जब पुराना हो गया तो चाचा लोग ऊसको फेंक देते थे , और उस फेंके हुये ताश से अगले दिन हम लोग खेल सीखने का कोशिश करते थे ! गांव मे और भी "दालान" होते थे ! कहीँ - कहीँ "दम-मरो दम" का प्रोग्राम होता था !
थोडा और बड़ा हुये त , दालान मे गरमी के दिन मे एक खटिया और उस पर सफ़ेद जजीम और मसनद लेकर , दोपहर मे चाचा के आल्मिराह से "मनोहर कहानियाँ " निकल कर खूब आराम से पढ़ते थे ! खास कर प्रेम अपराध विशेषांक ! बहुत गरमी हुआ त "पूरब वाला " जंगला ( खिड़की) खोल देते थे ! वहाँ से जो ठण्डा हवा आती थी उसके आगे आज का "एसी " फेल है !
दालान का बहुत महत्व है ! घर से थोडा हट के बनाया जाता है ताकी आप "नारी" श्राप से कुछ दूर ही रहे ! अब ता जमाना बदल गया है - दालान कि जगह "ड्राइंग रूम" ले लिया है , बड़ा वाला रेडिओ कि जगह टीवी और कम्पूटर ! दोस्तों कि जगह बीबी कि बकवास :(
मुह मारी अइसन ज़िंदगी के !
ranJan rituraJ sinh , NOIDA

8 comments:

Unknown said...

jabab nahi..mukhiya ji apka,sari yadei taja kar di..aisa laga jaise abhi kal ki hi bat ho..hum log bhi 29 aise hi sikhe hai aur dahla pakr bhi...aise hi likhte rahiyega,roj subah..mai ek bar dallan me jaroor ata hu..ki mukhiya ji ka koi naya taja aya hoga...bahut-2 dhanyavad ek bar phir..
apke daalan ka ek sadasya
Aashish

संजय शर्मा said...

Daalaan ke liye vadhaai !
'Saavan' aur 'kuchh yaadein Daalan ki'jarur safal rachana hai.Bahut saari safaltam rachana ke entejaar me. Shubhkaamanao ke saath

SS

Gaurav Singh said...

Kya likha hai apne mukhiya ji.. Ghar ki yad aa gayi maharaj.. Kya din hua karte teh wo. Ab to jindgi me bas career, paisa aur growth hi dikhai deta hai.. Sochta hun, kis keemat pe ye sab hasil kar raha hun.. abhi abhi ghar se lauta hun.. glani hoti hai jab apne ap ko mitti se door hota mahsoos karta hun.. Man kharab ho gaya barh dekh kar.. crore se jyada log bina ghar bar ke sadak pe hain.. train bus me log bher bakri ki tarah bare hote hain.. Dekh ke lagta hai, kya ho gaya hai apne ghar ko..

Gaurav Singh said...

Kya likha hai apne mukhiya ji.. Ghar ki yad aa gayi maharaj.. Kya din hua karte teh wo. Ab to jindgi me bas career, paisa aur growth hi dikhai deta hai.. Sochta hun, kis keemat pe ye sab hasil kar raha hun.. abhi abhi ghar se lauta hun.. glani hoti hai jab apne ap ko mitti se door hota mahsoos karta hun.. Man kharab ho gaya barh dekh kar.. crore se jyada log bina ghar bar ke sadak pe hain.. train bus me log bher bakri ki tarah bare hote hain.. Dekh ke lagta hai, kya ho gaya hai apne ghar ko..

अनामदास said...

बहुत बढ़िया बा बबुआ, लागल रह. मजा आवता.

Sunil said...

Premchand se tanik hi peeche hain mukiya ji ,bahut hi accha likha hai aapne

cardiac_carnage said...

Bahut badhiya Mukhiya Jee..

आशीष अंकुर said...

अच्छा त अइसन होला इ दालान... :)
बहुते बढ़िया... :)