मूछें ...फिर से उग आयी हैं ...घनी और चौड़ी मूछें ...देर तक ...बाएं हाथ में वो छोटा वाला सीसा ...और दाहिने हाथ में एक छोटी कैंची ...मूछों को दोनों तरफ से छांटना ...बालकोनी में खड़े खड़े ...कब सुबह गुजर जाती है...पता ही नहीं चलता ...वहीँ बालकोनी के रेलिंग पर रखे चाय के कप को बार बार कहता हूँ ...थोडा रुको ..मूछ को दाहीने और बाएं से थोडा बैलेंस कर लूँ ...फिर तुम्हे अपने लबों से सटाऊं ...और वो गरम चाय ...तुरंत मुह बिचका ..ठण्ड हो जाती है ....
सफ़ेद कुरता और पायजामा के ऊपर वो क्रीम कलर का शाल ...कुछ कुछ 'गुलज़ार' सा दिखने लगा हूँ ...ये गुलज़ार भी अजीब हैं ...उनको पढना ...खुद को महसूस करना होता है ...उनको सुनना ..खुद को महसूस करना होता है ...अब तो उनको देखना भी ...खुद को महसूस करना जैसा होने लगा है...ये उम्र भी कहाँ कहाँ ले जायेगी ...न जाने किस किस गली में घुमाएगी ...
मूछें ..फिर से उग आयी हैं ...घनी और चौड़ी मूछें ...थोड़ी सफ़ेद ...थोड़ी काली ...
@RR - १ जनवरी २०१५
2 comments:
Mujhko bhi tarkeeb sikha de....
Mujhko bhi tarkeeb sikha de yaar julahe....
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