Monday, December 24, 2007

ई साल भी जा रहा है !

देखते देखते २००७ भी बीत गया ! अभी सोचने बैठा की इस साल मैंने क्या क्या किया ? सोचते सोचते ऐसा लगा की साल भर दालान मे खटिया पर बैठ कर सिर्फ सोचा ही हूँ ! सोचना भी एक कला है - हर कोई नही सोच सकता है ! गदहा - बैल को कभी किसी ने सोचते देखा है ?
चिंतन करना स्वाभाविक है ! मनुष्य मे जनम लिए हैं तो चिंतन करना जरुरी है ! लेकिन चिंतन करने मात्र से पेट नही भरता है ! लेकिन कर्म का मतलब भी यह नही की आप - हम गदहा - बैल बन जाएँ ! लेकिन युग ऐसा आ गया है की बिना गदहा - बैल बने हुए कोई गुजारा नही है !
अब क्या किया जाये ?
रुकिए , खटिया को थोडा झार दें ! बहुत खटमल हो गया है ! रात भर सुते नही देता है !
२२ दिसम्बर को दिन सबसे छोटा होता है - लेकिन इसको "बड़ा" दिन क्यों कहते हैं ?
रंजन ऋतुराज सिंह , नॉएडा

4 comments:

उन्मुक्त said...

क्योंकि आजकल इसी दिन से, सूर्य उत्तरायर्ण और दिन बड़ा होना शुरू होता है

munnalal blogspot.com said...

जानवर भी सोचते हैं, उनमें विवेक भी होता है, तभी तो वे अपने और पराए को पहचान लेते हैं। भला-बुरा भी समझते हैं।

munnalal blogspot.com said...

जानवर भी सोचते हैं, उनमें विवेक भी होता है, तभी तो वे अपने और पराए को पहचान लेते हैं। भला-बुरा भी समझते हैं।

Fighter Jet said...

Kabhi Gadhe ko dekha hai...bechara kitna dhyan se man laga kar sochta hi rahta hai....dhyanpurwark manan karta rahta hai..kutch bolta nahi..sirf chintan manan aur apna kaam..chup chap :)
mai to kahta hun gadha se bada chintan manan karne wala koi prani nahi is duniya me :)