एक डाकू से रामायण के रचयिता बनते हुए सब ने "बाल्मीकि" के बारे मे सुना है ! अंगुलिमाल डाकू के बारे मे सुना है ! देश - प्रदेश मे कई ऐसे "लालची" पैदा हुए जिन्होंने आँख खुलने के बाद अपनी सारी सम्पति समाज को दे दी !
यूं मेरा सब कुछ डूबा नही है ! पर तात्क्षानिक लाभ की लोभ ने मुझे बेचैन कर दिया है ! सालाना १२ % से ज्यादा की आशा करना बेवकूफी है ! बेहतर हो हम सभी चक्रवर्धी व्याज की भाषा सीखें ! या फिर धैर्य रखना सीखें ! हम आम आदमी सिर्फ और सिर्फ अपने लिए ही नही कमाते हैं ! मजबूत नींव देना भी हमारा मकसद होना चाहिऐ ! अपने जीवन काल मे - हम सभी कम से कम ५ पीढी को तो देख ही लेते हैं ! अपने दादा जी से लेकर अपने पोता-नाती तक ! जो हम अपने दादा जी - पिता जी से सिखते हैं वह हम खुद पर प्रयोग करते हैं और खुद के प्रोयोग से सीखे हुए संस्कार को अपने आने वाली पीढी को देने की कोशिश करते हैं !
धन संचय भी एक कला और विज्ञान है ! सभी अंडो को एक ही झोला मे ना रखें ! जोखिम अपनी अवकात और उम्र को ध्यान मे रख कर ही लें ! कुछ धन खाने के लिए और कुछ धन दिखाने कभी लिए भी !
रंजन ऋतुराज सिंह , नॉएडा
2 comments:
मुखिया जी बिल्कुल सही कहा है
सभी अण्डे एक थैले में नहीं रखें
टमाटर रखे जा सकते हैं
पर सावधानी से
सावधान रहें तो
रख सकते हैं अण्डे भी
यह मैं कह रहा हूं
पर प्रयोग न करें
बडों से सुना था के " नही है तो कंगाल है | है तो जंजाल है ".
जब नही रहता है तो कोई फ़िक्र नही ..पर आने के बाद ही चिंता सताने लगती है ..इनवेस्टमेंट करने की ...पर यह जान कर खुशी हुई के आजकल इंडिया मे "पेट भरुआ " लोग भी स्टॉक मे पैसा लगाते हैं .
गुस्ताखी माफ़ !!
अबू दानिश
लॉस एंजेलेस , कैलिफोर्निया
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