दालान पर , कल्ह कादिरी मियाँ से संक्षिप्त मुलाकात का नतीजा है कई शेर अपनी यादों के जंगल से छोड़ गए मियाँ . इन दो के अतिरिक्त सब मेरे शिकार बने .और मैं इनका शिकार हुआ .दम है क्या इनमे ?
"एक निवाले के लिए मार दिया जिसको हमने ,
वो परिंदा भी कई रोज का भूखा निकला / "
" पत्थर उबालती रही एक माँ तमाम रात ,
बच्चे फरेब खाकर ,फर्श पे सो गए /
8 comments:
वो परिंदा भी कई रोज का भूखा निकला / "
भाई शर्माजी तारीफ़ के लिए शब्द नही है !
शायरी को नमन है !
कुछ और भी लिखिए , इंतजार रहेगा !
शुभकामनाए !
उफ़ !!!!!!!!!!!
इतना दर्द ...............
bhai hame sero shayari to nahi aati hai..pur itna zarror hai..likha bahut hi umda hai...
बहुत ही मार्मिक शेर.सीधे दिल को लगे.
भाई शर्मा जी,
थोडा देर से पढे, इसके लिये क्षमा प्रार्थी हुं. बहुत बढिया.
"एक निवाले के लिए मार दिया जिसको हमने ,
वो परिंदा भी कई रोज का भूखा निकला / "
Wonderful lines; you have narrated Darwin's theory in a very poetic manner.
:-)
I will remeber it complete life ,what a emotion
R.K. Gupta
I will remeber it complete life ,what a emotion
R.K. Gupta
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