Saturday, August 2, 2008

सावन से सावन, एक साल हो गए !

पिछले सावन में ही "दालान" का निर्माण हुआ था ! सोचा था - दिल की बातें होगी ! हमजोली और बेफिक्र इन्सान एक जगह बैठेंगे ! चाय चलेगा - शरबत चलेगा ! खटिया होगा ! वैभवशाली चंपारण कुर्सी होगी ! सभी विषयों पर गप्प होगीं ! थोडा प्यार और थोड़ा तकरार ! भाग दौड़ की इस जिंदगी से मुक्त - दो चार कुछ फुर्सत के क्षण भी होंगे !
जिंदगी इतनी आसान नही है ! सब कुछ पा लेने की तमन्ना में , बहुत कुछ हाथ से निकल जाता है ! जिंदगी एक सफर है - रास्तों में मिले भटकाव , मंजिल से बहुत दूर ले जाते हैं और अंत में जो मिलाता है वही पा कर आदमी संतोष कर लेता है !
मजबूत इरादा साधारण से साधारण व्यक्तित्व को असाधारण बना देता है ! छोटी छोटी खुबिओं को इकठ्ठा कर कोई भी महान बन सकता है ! पर , सब से जरुरी यह है की हमें जानना होगा की हमारे लिए क्या महतवपूर्ण है ! किस कार्य को पहले करना जरुरी है ! हम में से कई लोग भटकाव को ही मंजिल मान लेते हैं ! फ़िर दर्द से बेचैन हो जाते हैं ! अपने कदमों की दिशा को दोषहीन बताते हुए रास्तों और राहगीरों पर इल्जाम लगा देते हैं ! वर्तमान में हमारे लिए सबसे जरुरी क्या है - यह समझना सबसे जरुरी है ! बेवजह बेचैन होने से कुछ नही होगा !
हाल में ही एक ८० वर्षीय वैज्ञानिक से मिला - इस उम्र में भी वोह बड़े ही आराम से अपने विद्यार्थों को पढ़ते हैं ! वोह कहते हैं - जिंदगी में कई उतार चदाव देखे पर विचलित नही हुए !
रंजन ऋतुराज सिंह , नॉएडा

5 comments:

admin said...

सुन्दर वर्णन।

नीरज गोस्वामी said...

"जिंदगी इतनी आसान नही है ! सब कुछ पा लेने की तमन्ना में , बहुत कुछ हाथ से निकल जाता है ! "
बहुत सही लिखा है आपने...इसी बात को मैंने अपने एक शेर में कहा है सुनिए:
"ना संभाला जो पास है अपने
जो नहीं उसका ही मलाल रहा"
नीरज

Sarvesh said...

बहुत बढिया मुखिया जी. दलान मे राह, मंजिल, भटकाव पर भी खुब चर्चा होती है.
ऐसे भाग दौड मे मल्लुक दास की बहुत याद आती है.

L.Goswami said...

badhayi ek saal pure hone ke liye.jari rahe yah ytra..dalaan me log jutate rahen.

संजय शर्मा said...

कई बार मंजिल रास्ते पड़ी सुस्ताते हुए मिल जाती है .मजिल कहाँ है क्या ठिकाना.