बंगालन कामुक और ४१ वर्षीय ( नोबेल पुरस्कार के विजेता अमर्त्य सेन की पुत्री ) 'नंदना सेन' को देखने की इच्छा हो चली है !
राजा रवि वर्मा पर आधारित "रंग रसिया" भारत के किस वर्ग को पसंद आएगी , यह कहना मुश्किल है - पर मेरे विख्यात पत्रकार दोस्त श्री देवब्रत कहते हैं - काम - वासना कला के नोक पर् होती है जिसके बैगर धार नहीं आती !
प्रेम बिना वासना अधुरा है ! और काम बिना प्रेम अधुरा है ! भक्ति और प्रेम में अंतर होता है - शायद यही बहुत लोग समझ नहीं पाते हैं ! भक्ति में काम और वासना नहीं होती ! भक्ति सब से परे और सर्वोत्तम है ! पर काम और वासना का सफ़र बिना प्रेम अधुरा है ! और एक स्त्री और पुरुष ?? :)) खैर , यह मामला सिर्फ मेरे नज़र तक ही नहीं है ! आप सभी "रंग रसिया" देखिये और इस परिचर्चा में शामिल होवें !
रंजन ऋतुराज सिंह , नॉएडा
5 comments:
aapane bahut kuchh ek dum sankshep me likh diya hai. Ek to ye ki Nandana sen Nobel laurette ki putri hain. Dusari ki ye bahut bade kalakar ki kalakriti par adharit hai.
Bahut bahut dhanyavad.
देखनी पड़ेगी ये फ़िल्म...आपने दिलचस्पी बढ़ा दी है....लगने दीजिये.
नीरज
अब मैं फिल्में कम ही देखता हूं, लेकिन आपका आलेख पढ़ने के बाद इस फिल्म को जरूर देखना चाहूंगा।
रंग रसिया कब आ रहा है भारतिय सिनेमा घरों में? देखने के लिए उत्सुक हो रहा हूं।
इस ओर ध्यान आकर्षित करने के लिये धन्यवाद। आप हमेशा लिक से हटकर विषय लातें हैं।
ये मुझे बहुत प्रभावित करता है आपके ब्लाग पर। एक निवेदन है आपसे कि लेखनी की अंतराल (frequency) बढानी चाहिये।
gajab!...
ek ek sabd se sahamt hun.
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