Monday, February 1, 2010

राजा शयन-कक्ष में आराम हेतु चले गए हैं !

'मेहताना' की आवाज़ मजदूरों ने बुलंद कर दी है ! आपको यहाँ तक ठेल कर लाने वाले - अब , पसीने की कीमत मांग रहे हैं ! आपको ठेल कर गद्दी तक पहुँचाने वाले - आपके चवन्नी और अथ्ठंनी से खुश नहीं हैं - आपके जैसे जिद्दी को ठेलना आसान नहीं था ! आप अकड़ में ही बैठे रहते थे ! रास्ता मुश्किल था - फिर भी आपको ठेल -ठाल के यहाँ तक पहुंचा diya ! पर जब आप अपना 'बटुआ' खोलने लगे तो - 'अशर्फी' और 'गिन्नी' अपने परिवार में बाँट दिए ! वो मजदूर आपके लिए अछूत बन गए ! पसीने से तर-बतर 'थोडा' स्वार्थ में लथ-पथ मजदूर अब आपको 'बेईमान' लगने लगे हैं ! आप भी होशिआर हैं - पहाडी पर खुद को ठेल्वाते वक़्त - कितना प्रलोभन दिया था - बस 'गद्दी' तक पहुँचने दो ! तुम मजदूरों पर 'अशर्फी' लुटाऊँगा ! 'कोहिनूर ' को तेरे ताज पहनाऊँगा ! १५ साल से भूखे गरीब - मजदूर - लालच में आ गए ! फटेहाल वस्त्रों को न देख - 'कोहिनूर' की कल्पना करने लगे ! काश ! काश - एक बार समझ जाते - ये भी बेईमान निकलेगा ! 'अशर्फी' अपने परिवार के नंगों और लंगड़ों को देगा ! पर , अब तो चिडिया चुग गयी खेत !



राज दरबार लगा है ! हुज़ूर , कुछ मजदूर महल के आगे चिल्ला रहे हैं - 'मेहताना' मांग रहे हैं ! राजा मृदुभाषी हैं ! सुना है अब वो 'गदरा' गए हैं ! बोले - अरे भाई , रोज तो चवन्नी दे रहा था ! क्या इससे पेट नहीं भरा ? हुज़ूर , वो अशर्फी की मांग कर रहे हैं ! राजा बोले - बेवकूफ हैं - क्या किसी ने पराये को अशर्फी दिया है ? दरबारी - जय कार करने लगे ! मजदूरों की आवाज़ खो गयी !



राजा शयन-कक्ष में आराम हेतु चले गए हैं ! दरबारी आज का अशर्फी गिनने में लग गए !

रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !

5 comments:

Sarvesh said...
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Sarvesh said...

all is well?

vandana gupta said...

is post ke madhyam se bahut hi gahan aur aaj halat ko chitrit kar diya hai.

संजय शर्मा said...

bahut hi badhiya mukhiya ji
jaari rahe.

cardiac_carnage said...

Great writing..Awesome..
I know the real connotation but I refrain from delve into it...