'मेहताना' की आवाज़ मजदूरों ने बुलंद कर दी है ! आपको यहाँ तक ठेल कर लाने वाले - अब , पसीने की कीमत मांग रहे हैं ! आपको ठेल कर गद्दी तक पहुँचाने वाले - आपके चवन्नी और अथ्ठंनी से खुश नहीं हैं - आपके जैसे जिद्दी को ठेलना आसान नहीं था ! आप अकड़ में ही बैठे रहते थे ! रास्ता मुश्किल था - फिर भी आपको ठेल -ठाल के यहाँ तक पहुंचा diya ! पर जब आप अपना 'बटुआ' खोलने लगे तो - 'अशर्फी' और 'गिन्नी' अपने परिवार में बाँट दिए ! वो मजदूर आपके लिए अछूत बन गए ! पसीने से तर-बतर 'थोडा' स्वार्थ में लथ-पथ मजदूर अब आपको 'बेईमान' लगने लगे हैं ! आप भी होशिआर हैं - पहाडी पर खुद को ठेल्वाते वक़्त - कितना प्रलोभन दिया था - बस 'गद्दी' तक पहुँचने दो ! तुम मजदूरों पर 'अशर्फी' लुटाऊँगा ! 'कोहिनूर ' को तेरे ताज पहनाऊँगा ! १५ साल से भूखे गरीब - मजदूर - लालच में आ गए ! फटेहाल वस्त्रों को न देख - 'कोहिनूर' की कल्पना करने लगे ! काश ! काश - एक बार समझ जाते - ये भी बेईमान निकलेगा ! 'अशर्फी' अपने परिवार के नंगों और लंगड़ों को देगा ! पर , अब तो चिडिया चुग गयी खेत !
राज दरबार लगा है ! हुज़ूर , कुछ मजदूर महल के आगे चिल्ला रहे हैं - 'मेहताना' मांग रहे हैं ! राजा मृदुभाषी हैं ! सुना है अब वो 'गदरा' गए हैं ! बोले - अरे भाई , रोज तो चवन्नी दे रहा था ! क्या इससे पेट नहीं भरा ? हुज़ूर , वो अशर्फी की मांग कर रहे हैं ! राजा बोले - बेवकूफ हैं - क्या किसी ने पराये को अशर्फी दिया है ? दरबारी - जय कार करने लगे ! मजदूरों की आवाज़ खो गयी !
राजा शयन-कक्ष में आराम हेतु चले गए हैं ! दरबारी आज का अशर्फी गिनने में लग गए !
रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !
5 comments:
all is well?
is post ke madhyam se bahut hi gahan aur aaj halat ko chitrit kar diya hai.
bahut hi badhiya mukhiya ji
jaari rahe.
Great writing..Awesome..
I know the real connotation but I refrain from delve into it...
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