Wednesday, March 31, 2010

अब 'मंगला' पढ़ेगा !!

गांव याद आ गया ! बचपन में कुछ दिनों के लिए गांव के स्कूल में पढ़ा था ! 'मंगला' नाम था उसका ! मेरे परिवार के लिए माल मवेशी को खिलाने- पिलाने वाले 'फिरंगी' का बेटा ! 'फिरंगी' बहुत गोरे थे इस लिए उनका नाम 'फिरंगी' रखा गया होगा ! हर सुबह दस बजे 'मंगला' अपने घर से मेरे घर आता और हम लोग स्कूल जाते ! और भी कई विद्यार्थी थे ! शादी-शुदा शिक्षिका को हम लोग 'देवी जी ' कहते थे और कुंवारी शिक्षक को 'बहिन जी ' ! 'तिवारी जी माट साहब' , 'सिंह जी माट साहब ' और ना जाने कितने लोग ! कुछ पास के गाँव के रहने वाले तो कोई काफी दूर के रहने वाले ! 'सिंह साहब ' हम लोगों के दालान में ही रहते थे ! शनिवार को वो अपने गाँव चले जाते - साइकील से !

मालूम नहीं कब मै शहर चला आया ! पर , हर छुट्टी में गांव आना - जाना लगा रहा ! कुछ दिनों बाद - गाँव गया तो 'मंगला' को देखा ! वो मेरे घर में बगल वाले मेरे बगीचे में काम कर रहा था ! मै आँगन से उसे देख दौड पड़ा ! उसके हाथ में 'खुरपी' और 'टोकरी' थी ! मैंने बोला - चल , खेलने ! उसका सर नीचा था - खुरपी चलाते चलाते हुए बोला - नहीं , काम करना है ! मैंने - धीरे से बोला - स्कूल जाते हो ?

वोह चुप था !

धीरे - धीरे 'मंगला' के हाथों में खुरपी की जगह 'कुदाल ' ने ले ली ! २ साल पहले गाँव गया तो 'मंगला ' मिला - उसको बोला - चल , दिल्ली - नौकरी दिलवा दूँगा - किसी आफिस में ! वो हँसने लगा - बोला - हम अनपढ़ को कौन नौकरी देगा ! मन दुखी हो गया ! सोचा , अगर 'मंगला' थोडा भी पढ़ा होता तो मेरे साथ दिल्ली में ही रहता - जिंदगी थोड़ी और बेहतर होती !

( यह वर्णन सच्ची है ! भावना में बहने के कारण - पूरी तरह विस्तार से बहुत कुछ नहीं लिख पाया )

आज सुना कल पहली अप्रैल से भारत सरकार ६ से १४ साल के बच्चों के लिए 'शिक्षा' को मौलिक अधिकार बना रही है ! बहुत खुशी हुई ! काबिल कपिल सिब्बल 'शिक्षा' में बहुत परिवर्तन कर रहे हैं - इसका असर क्या होगा ? मुझे नहीं पता ! पर उनकी सोच में इमानदारी है - जिसकी क़द्र होनी चाहिए !

शायद , यह एक बहुत बड़ा कारण है की - मै बिहार में पदस्थापित पुलिस अधिकारी 'श्री अभय आनंद' का एक बहुत ही बड़ा समर्थक हूँ !


रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !

2 comments:

Fighter Jet said...

lekh padh sidhe mujhe mere gavn ka chitra aakhon ke same aa gaya....sirf paatr ke nam alag hai..warna mahul bilkul aisa hi tha..sayd aaj bhi ho...

siksha to har kisi ko milni hi chahiye..aur aaj ke yug me yahi ek aujar hai jo garibo ki garibi dur kar sakta hai...

ashok sharma said...

ab ek yug ke baad sarkar yah kanoon lekar aayee hai,jo shayad sabse jaroori tha.kitne bachche sirf school aur wahan jaane walon ko hi hasrat bhari nazaron se niharte-niharte kab ke buddhe ho gaye aur shayad mar-khap bhi gaye sansar ke kathor chakki mein pis kar.lekin us ya us jaise aur unke yaar-dost,pariwar chup-chaap dekhte aur sahte chale gaye.aadmi ki umra bhale hi badh jaati ho,par uske andar ek wahi bachcha hamesha rahta hai,jo har asamanya baat par aankhen utha kar mook bhav se hi prashna karta rahta hai,
RTE shayad us andar ke bachche ki utkanthaon ka uchit jawab hoga,ab har Mangla,Budhna ityadi padh sakenge,kyonki sarkar unhe padhyegi.aur wah bhi ek achcha jeewan bita sakenge.yahi asli azadi hogi.tab hi banega hamara bharat desh naya vishwa ka neta.