Monday, January 23, 2012

दलाली कहाँ नहीं है - पार्ट वन

दलाली कहाँ नहीं है ! किस धंधा - पेशा में नहीं है ! समाज ने इसको स्वीकार किया है ! हाँ , इस् दलाली में इतने जल्द पैसे बनते हैं - वो भी बहुत कम मेहनत में - जिसके कारण इसको इज्जत नहीं मिल पाती है ! चलिए ...कुछ कहानी सुनाता हूँ - आराम से पढियेगा - बिना किसी द्वेष के - मैंने भी दलाली दिया और कमाया है - सभी किस्से यहाँ मिलेंगे - :) 

दस साल पहले नोयडा आये थे - कुछ दिन बैचेलर दोस्तों के साथ रहते हुए - नौकरी करते हुए - किराया का मकान खोजने लगा - कॉलेज के आस पास ही ! एक दोस्त है - उनदिनो वो एक पब्लिक सेक्टर कंपनी में थी - कदमकुआं का खांटी पटनहिया ! कॉलेज में मेरा रूम पार्टनर भी होता था - उसका अपना फ़्लैट नॉएडा में था  - कार थी - पत्नी भी इंजिनियर ! सुखी संपन्न छोटा परिवार ! एक शाम उसके घर पहुंचे - बोले , भाई मेरे ..एक किराया का फ़्लैट खोज दो - अपने मोहल्ले में ही ! झल्ला गया - बोला , एक तुम ..ऊपर से भूमिहार ! हम रिस्क नहीं ले सकते .कब कहाँ 'मार्' करवा दोगे कोई ठीक नहीं - उसकी बातें सुन मुझे बहुत गुस्सा आया - पर् वो सही था ! फिर एक दूसरा दोस्त - बोला , काहे घबराता है - 'ब्रोकरेज दोगे ? तो एक चीफ इंजिनियर है - वो फ़्लैट के किराया का काम करते हैं - फलाना नंबर फ़्लैट में रहते हैं ! अंधा को और क्या चाहिए - मै भागा - भागा उस चीफ इंजिनियर के पास गया - उन्होंने मुझे एक फ़्लैट चार हज़ार  रुपैया महीना किराया पर् दिलवा दिया - रेंट अग्रीमेंट भी बनवा दिए - मै खुश था - अंत में उन्होंने मुझसे दो हज़ार रुपैये लिये ! मै हैरान और परेशान था ! चीफ इंजिनियर और किराया का काम और दलाली ! मैने तो पटना - कंकरबाग में कई चीफ इंजिनियर के मकान और गाड़ी देखे थे ! एक दोस्त जो उम्र में थोडा बड़ा था - बोला - नेता , पब्लिक सेक्टर का चीफ इंजिनियर है - बिहार सरकार का नहीं - और अगर वह ये सब नहीं करेगा तो ...फिर वो चुप हो गया ..मै समझ गया ! पर् मै आज तक उस चीफ इंजिनियर को शुक्रिया अदा करता हूँ ! 

नॉएडा आने के पहले - पटना - कंकरबाग में खुद का एक छोटा कंप्यूटर सेंटर होता था - जिसको मेरी पत्नी 'पान के दूकान' से ज्यादा दर्जा नहीं देती थी :( खैर ...शुरुआत तो मैंने सॉफ्टवेयर डेवेलोपमेंट से की थी - पर् बाद में वो इंस्टीच्युट बन् गया ! इग्नू के विद्यार्थी आते थे ! एक दिन जान पहचान एक हम उम्र लडकी का फोन आया - हमारे बैच की सर्वोत्तम और भारत के सबसे बेहतरीन संस्था से इंजिनियर फिर एमबीए ! फोन की - आर् आर् , क्या कर रहे हो ? बड़ी मुद्दत बाद बात हो रही थी - हम बोले - क्या करेंगे - 'पान का दूकान' चला रहे हैं - वो हंसने लगी - बोली - मुझे अमरीका जाना है - 'जावा' सिखा दो - हम पूछे कब जा रही हो ? बोली - देखो ...एक ब्रोकर से बात चल रही है ! 'ब्रोकर' सुन मेरा कान खडा हुआ ...माथा धर लिये ...देश के बेहतरीन संस्था से पढ़ कर अमरीका में नौकरी के लिये - ब्रोकर ? :( फिर वो समझाई - आई आई टी के बूढ़े - बूढ़े अलुम्नी आज कल यही काम कर रहे हैं - इसको 'बौडी शौपिंग' कहा जाता है ! फिर मैंने उसको पटना के एक बढ़िया कंप्यूटर इन्स्टिच्युट का पता बता दिया - बात शायद 1999 की है ! वो अमरीका गयी - और विश्व के बेहतरीन स्कूल से एमबीए की दूसरी डिग्री भी ली ! पर् ..अमरीका जाने के लिये उसको 'बौडी शॉपर' (( बुढा आई आई टी अलुम्नी ) का ही सहारा लेना पड़ा था ! 

नॉएडा में फ़्लैट लेने के एक महीना बाद मैंने परिवार को बुला लिया - जिस दिन मेरा परिवार नई दिल्ली स्टेशन पर् आया - सभी दोस्त वहाँ पहुंचे हुए थे - कॉलेज के दिनों में दोस्त' प्यार से मुझे 'नेता' कहते थे -  ठसक भी वही थी ! मैंने सभी फर्नीचर एक दिन में ही खरीद लिया ! पर् 'सोफा' पर् पत्नी से सहमती नहीं बन्  पाने के कारण - गुस्सा में प्लास्टिक की चार कुर्सीयां मैंने खरीद ली ! कुछ दिन बाद - मूड ठीक हुआ तो नॉएडा से ही एक ख़ूबसूरत सोफा खरीदा ! सर मुडाते - ओले पड़े ! सोफा खरीदने के कुछ दिन ही बाद - ससुराल से कुछ लोग आये - खांटी पटनहिया - सोफा पर् लेट कर ही 'टीवी' देखेंगे ! सोफा और सेंटर टेबल पर् ही खाना खायेंगे ! गेस्ट लोग चले गए ! एक दिन देखा तो - सोफा 'हिल' चूका था ! बहुत दुःख हुआ ! बजाज चेतक पर् सपरिवार दुकानदार के पास गए - क्या कहूँ ..गिडगिडा रहे थे ..पर् वो दुकानदार कुछ भी सुनने को तैयार नहीं ! मात्र एक महीना में सोफा 'हिल' गया था ! बहुत कष्ट से पैसा जमा किये थे फिर सोफा  ख़रीदे थे ! मुह लटका के घर वापस हो गए ! बिहारी होने पर् बहुत गुस्सा आ रहा था - क्या मजाल की पटना के नाला रोड वाला कोई दुकानदार ऐसा कर पाता - पूरा सैदपुर होस्टल मेरे पीछे खडा होता ! फिर थोडा गुस्सा ससुराल वाले गेस्ट लोगों पर् भी आ रहा था - पत्नी के सामने खखर कर बोंल तो पाता नहीं हूँ - शिकायत तो बहुत दूर की बात है ! इसी बीच ..पत्नी ने कहा ...रुकिए ..'झब्बू चाचा' को फोन करती हूँ ! हम बोले - ई 'झब्बू चाचा' कौन हैं ? पत्नी बोली ..चाचा लगते हैं ..क्या काम करते हैं ..पता नहीं पर् ..पर् बहुत बड़ा - बड़ा गाड़ी से घुमते हैं ! झब्बू चाचा को फोन लगाया गया - झब्बू चाचा बोले - दोदिन बाद 'सोफा दुकानदार खुद फोन करेगा - मेहमान , आप घबराईये मत ! सच में ऐसा ही हुआ ..दो दिन बाद सोफा दुकानदार खुद फोन किया !इस् बार हम लोग फिर से बजाज स्कूटर पर् सवार - पर् बहुत ही कनफिडेंस के साथ - सोफा दूकान गए ! अपने बजट में जो सबसे बढ़िया सोफा था - उससे अपना पुराना सोफा बदले ! पर् ..मै हैरान था ...'झब्बू चाचा' कौन हैं ? हिम्मत कर के खुद ही फोन लगाया ...प्रणाम और थैंक्स बोला ..वो उधर से बोले ..मेहमान ..ई हमलोग का कर्तव्य है ..जब तक दिल्ली में हूँ ..आप निश्चिन्त रहिए ! बड़ी हिम्मत कर के मैंने उनसे पूछा - आप करते क्या है ? वो बोले - कुछ खास नहीं - 'आई आर् एस ' अफसर लोग के साथ उठना - बैठना है ..बस - इनकम टैक्स - सेन्ट्रल टैक्स कमिश्नर लोगों के साथ - आगे का कहानी मै समझ गया ! एक दो बार झब्बू चाचा से मुलाकात हुई - एक दिन टीवी में उनको शरद यादव के बगल में खडा देखा - मैंने सोचा - झब्बू चाचा का प्रोमोशन हो गया है ! खैर ..वो जब भी मिलते हैं ..मै उनको   पैर छू कर ही प्रणाम करता हूँ ! 

ये तीनो कहानी सच है ...उम्र के साथ मेमोरी कमज़ोर होने लगी है ...कैसी लगी ..बताएँगे ....

हाँ , दिल्ली और आस-पास के आधे लोग दलाली करते हैं और आधे झूठ बोलते हैं ;) 

क्रमशः ...





रंजन ऋतुराज - इंदिरापुरम !

9 comments:

Krishna said...

जिंदगी के कटु यथार्थ से सामना .....बढ़िया लिखे है रंजन जी....कब तक इस दलाली से बचियेगा.....दिल्ली पूरा शहर ही इस ब्रीड के लोगों से भरा हुआ है....

Arbind Kumar Mishra said...

Ek saans men padh gaye. Biwi ko bhi padh kar sunaya. Bahut maja aaya. Great writing and great presentation!!

Sarvesh said...

आप दिल से लिखते हैं | दलाली भी एक professional पेशा हो गया है |

Arun sathi said...

दादा, बहोत नीमन। दलाली का चक्कर ही ऐसा है। पर इस हाइब्रीड के युग में कुछ पुरनका बसमतिया धान की धमक भी मिल ही जाती है। बचाए महाराज।

Arun sathi said...

पर हां दादा मेरे यहां बरबीघा में एक मीशन चौक पर बड़का भड़कदार मकान बना है, एक दम झकास पर जब भी किसी के साथ उधर से गुजरता हूं तो कोई न कोई पुछ ही लेता है केकर मकान है हो, झकासा। जबाब कोई न कोई दे ही देता है, अरे यार सोनागाछी के पैसा है, रंडी के दलाल है।

Anonymous said...

भूमिहार पर एक कहावत है जो अक्सर हमलोगों को और लोग सुना देते हैं की मटर जात भूमिहार के चलत राह पदाए :)

ajit rai said...

रंजन जी , रोचक और आज के कटु यथार्थ का बेहतरीन चित्रण , पढ़ कर मजा आ गया !

Anonymous said...

Ur mentioning 'Saidpur Hostel' is pretty disturbing.... Wat is meant for bright young lads has been become a den of crime.. And an educated Bihari, feels pride in the fact that he can parade them to threaten someone.. Perhaps an indicator of the malaise that ails Bihar, where knowing a goonda is a status symbol and the longing for them runs even when one is in a far distant land..

The travesty is multiplied many folds when I consider that a teacher is making these comments.. Just imagining a teacher parading Goondas, who have violated a temple of education, to threaten someone makes my stomach churn..

I just hope you are passing on the right set of values to your students..

Unknown said...

सब्द कौशल की दाद देनी पड़े गी ।।
भविश्य अंधकारमय है।