Thursday, May 14, 2015

प्रेम ...


प्रेम का एकमात्र पैमाना - माँ ! हम पुरुष आजीवन इसी पैमाना को लेकर घुमते रहते हैं ! माँ के अलावा जिस किसी भी स्त्री से हम प्रेम करते हैं , हम उसी पैमाने पर उसमे 'पवित्रता' खोजते हैं ! थोडा और पवित्र , थोड़ा और पवित्र ....थोडा और पवित्र ...जब तक वह स्त्री 'माँ' के बराबर की पवित्रता की झलक ना दिखा दे ...
वह स्त्री भी 'माँ' तुल्य प्रेम को तैयार होती है ...पर वह कहती है ..अपने अहंकार को और झुकाओ ...थोडा और झुकाओ ...थोडा और झुकाओ ....जब तक तुम मेरे पुत्र होने की झलक ना दिखा दो ...
हम पुरुष सारी दुनिया में अपने अहंकार को टकराते रहते हैं ...पर दुनिया का एकमात्र जगह वह है ...जहाँ हम अहंकारविहीन होते हैं ...वह है ...माँ का आँचल ! 
कभी किसी पुरुष को माँ के पास अहंकार के साथ जाते देखा है ? कभी किसी माँ को अपवित्र देखा है ?...नहीं ..न .. :)) यही प्रकृती है ...वही एक मात्र पैमाना है ...:))
@RR -१० मई , २०१५ 

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