पहले प्रचार जोर दार ढंग से होता था ! कई लोग ऐसे होते थे जो गाड़ी किसी और उम्मीदवार का , पैसा किसी और उम्मीदवार का और वोट किसी और को ! दुनिया मे सभी जगह जात पात है , चुनाव के दौरान दुसरा जात का वोट पाने के लिए उम्मीदवार बेचैन होते हैं ! अगर आप अपने "जात" के उम्मीदवार के खिलाफ दुसरे जात वाले उम्मीदवार के लिए थोडा भी काम कर रहे हैं तो आपको "दामाद " वाला ट्रीटमेंट मिलेगा ! अधिकतर चुनाव मे , चुनाव के ठीक एक दिन पहले वाली रात मे "निर्णय" होता है ! कहीँ कहीँ एक तरफा मुकाबला होता है - वहाँ मजा नही आता है ! किसी चुनाव मे आप किसी उम्मीदवार के लिए काम कीजिये और देखिए आपको "भारत-पाकिस्तान" वाला क्रिकेट मैच से ज्यादा मजा आएगा !
कई उम्मीदवार समर्थन रहने के वावजूद चुनाव हार जाते हैं - क्योंकि उनमे "चुनाव - प्रबंधन " नही होता है ! कई ऐसे होते हैं - जो पैसा के बल पर चुनाव जीत जाते हैं ! कई पैसा खर्चा कर के भी जीत नही पाते हैं ! कुछ लोग खानदानी चुनाव लड़ने वाले होते हैं - हर चुनाव मे बाप -दादा का २-४ बीघा जमीन बेचने मे हिचकिचाते नही ! मुझे लगता है - आईआईएम जैसे प्रबंधन संस्थान को "चुनाव-प्रबंधन" पर कुछ १-२ साल का डिप्लोमा शुरू करना चाहिऐ !
किसी बडे पार्टी का टिकट जुगार कर लेना भी लगभग चुनाव जितना जैसा होता है ! बहुत दिन तक हमको यह नही पता था कि "टिकट" का होता है ! टिकट कैसा होता है ? एक बार लालू जीं को धोती मे पार्टी का टिकट बाँध कर रखते हुये देखा ! फिर वोही हमको बताये कि - यह पार्टी का स्य्म्बोल होता है - जिसके हाथ मे यह चला गया वोही पार्टी का अधिकृत उम्मीदवार होता है ! कई जगह पैसा वाले टिकट का दाम बढ़ा देते हैं ! और यहाँ पार्टी पेशोपेश मे पड़ जाती है ! कई जगह टिकट कि नीलामी होती है !
नॉमिनेशन वाले दिन भी थोडा हंगामा जरूरी होता है ! २-४ ठो गाड़ी घोडा , किराया पर "जिंदाबाद - मुर्दाबाद" कराने वाले लोग इत्यादी कि जरूरत होती है ! यहीं आपके खिलाफ या पक्ष मे पहला "हवा" तैयार होता है ! अब यह "हवा" आपके साथ कितना दिन तक रहता है - यह आपका नसीब !
कई बार पढे लिखे विद्वान् लोग चुनाव हार जाते हैं ! "जनता" को विद्वान् से ज्यादा उनके दर्द और तकलीफ को जानने वाला ज्यादा "मत" पता है - भले ही वोह बाद मे बेईमान हो जाये !
"मत गिनती" वाले दिन भी बहुत टेंशन रहता है - पहले कई राउंड होते थे ! "दशहरा - दीपावली " जैसा २ दिन तक कोउन्तिंग होता था ! कभी कोई ४००० से आगे चल रहा है तो कभी कोई ५००० से पीछे ! हमलोग टी वी से बिल्कुल चिपके होते थे ! खैर अब तो सब कुछ - २ -४ घंटो मे ही खतम हो जाता है !
खैर , अगर मरने से पहले एक चुनाव नही लड़े तो क्या किये ? हमारे एक कहावत है - अगर किसी से दुश्मनी है तो उसको एक पुराना चार-पहिया खरीदवा दीजिये और अगर दुश्मनी गहरी है तो "चुनाव" लड्वा दीजिये !
रंजन ऋतुराज सिंह , नौएडा
5 comments:
Bahut badhiya Mukhiya jee. Kuchh aur yaade taazi ho gayee. Ek channel doordarshan hua karata thaa. Vote counting ke bahane achchha achchha cinema dekhane ko milata thaa DD par.
Waise chunav ladane kee salah kewal dushmani me hee nahin diya jaata hai, balki doshti me bhee diya jaata hai. Hum to kaab se aapko MLA/MP ke election kee taiyari karane ko kah rahe hain. :)
Ek din ummid hai kee aap Vidhan Shabha yaa Sansad me baithe najar aayenge, aur hum log LOKSABHA tv par prashna kaal me aapko dekhenge.
Mukhiyajee...hame bhi yahi lagta hai...jald hi aap Parliament me honge...!All d best! :)
Mukhiya Jee apke liye hamara Jila sabse achha rahega...decide kar lijiye ...Suraj Da ke Sath baithna hai ya phir Bogo Singh ke sath .
बहुत सटीक विश्लेषण किये है, मुखिया जी
Bahut achha aur ekdam sachha analysis hi sir ji
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