Thursday, September 16, 2010

अखबार में नाम - "हिंदुस्तान दैनिक" में अपना दालान !!

बिहार में चुनाव के घोषणा होते ही मैंने 'फेसबुक' पर् लिखा की - चुनाव की हलचल को 'दालान' पर् लिखूंगा - रवीश भी कम्मेंट किये की - 'इंतज़ार करूँगा' ! मैंने लिखा भी - फिर डिलीट मार दिया ! अचानक दो दिन पहले - रवीश का एस एम एस आया की - अपने दालान का लिंक दीजिए ! उस वक्त मै अपने एक बेहद जिगरी दोस्त से गप्प मार रहा था - उसको भी बोला - शायद 'रवीश अभी फुर्सत में दालान पढ़ना चाह रहे होंगे ! फिर अगले दिन रवीश को मैसेज भेजा - "दालान कैसा लगा ?" उन्होंने जबाब दिया - "मेरा गाँव - मेरा देस " काफी पसंद आया !  बात आयी गयी हो गयी !

कल सुबह अचानक संजय भैया का फोन आया ! बोले की "दालान" के चर्चे "हिंदुस्तान दैनिक" में छपा है ! आम इंसान हूँ - खुशी हुई ! नेट पर् लिंक खोजा और चार बार पढ़ा ! फिर रवीश को थैंक्स एस एम एस भेजा ! कई नजदीकी दोस्त खुश हुए ! डरते डरते बीवी को भी बताया - एक छोटी सी सच्ची कहानी के साथ ! वो मुस्कुरायीं और हम थोड़े निश्चिन्त हुए :)

आम  इंसान हूँ ! खुश हूँ और खुशी से लिखने की तमन्ना बढ़ी है ! "पत्रकारों" की बेहद इज्जत करता हूँ ! पर् 'पत्रकार' बनना पसंद अब नहीं होगा - हिंदी पत्रकारिता में बहुत ही गंदी राजनीति है ! बहुत ही करीब से देख लिया ! प्रतिभाएं कैसे पनप जाती है - आश्चर्य होता है ! यहाँ "भ्रूण हत्या" होती है ! दुःख होता है ! शायद रवीश मुझसे सहमत होंगे !

खैर , राजनीति भी ज्वाइन नहीं करना ! इस बार करीब बीस लोग फोन किये होंगे - चुनाव कहाँ से लड़ रहे हो ? :) कई वरिष्ठ लोग बोले - राहुल जी से एक बार और मिल लो - टिकट मिल जाएगा ! मेरा जबाब स्पष्ट था - 'इगो' डाउन कर के राजनीति नहीं करनी ! राहुल जी चाहेंगे तो 'राज्यसभा' भेज सकते हैं ;) ( हवा )

खैर ...चलिए देखते हैं ...रवीश ने क्या लिखा

"जातिगत समीकरणों का ऐसा ही विश्लेषण पिछले चुनावों के दौरान भी था। बहुत समीकरण बनाए गए, लेकिन नीतीश का जातिगत समीकरण और एक पार्टी के लंबे शासन से निकलने की पब्लिक की चाह ने नतीजे बदल दिये। जातिवाद की मजबूरी बिहार की राजनीति की आखिरी सीमा नहीं है। इसे समझने के लिए दालान ब्लॉग पर जा सकते हैं।

http://daalaan.blogspot.com/ पर रंजन ऋतुराज लिखते हैं कि उनके गांव में एक ब्राह्मण को पोखर दान कर दिया गया। मरने के बाद एक ठेकेदार ने उसकी विधवा से पोखर अपने नाम करा लिया, लेकिन लोग कई साल से पोखर का सार्वजनिक इस्तेमाल भी करते रहे। छठ पूजा का घाट बन गया। रंजन के परिवारवालों ने मुसलमानों से चंदा करा कर पोखर के एक किनारे मस्जिद बनवा दी। जब ठेकेदार ने कब्जा करने की कोशिश की सब ने उसे भगा दिया। गांव के हर घर ने चंदा कर मुकदमा लड़ा। अदालत का फैसला हुआ और पोखर को सार्वजनिक घोषित कर दिया गया।

इस छोटी-सी सत्यकथा में बिहार के लिए सबक है। रंजन लिखते हैं कि मैंने समाजशास्त्र किसी किताब में नहीं पढ़ा है। समाज के साथ रहा हूं सो जो महसूस करता हूं लिखता हूं। लोग किस-किस अवस्था में कैसे सोचते हैं, इसका पता किसी को नहीं चलता। रंजन अपने फेसबुक पर स्टेटस में लिखते हैं कि दलसिंहसराय के विधायक राम लखन महतो को जदयू में लाने की बात पर उपेंद्र बाबू गुस्सा गए। जहानाबाद के दलबदलू अरुण बाबू भी कहने लगे कि दूसरी पार्टी के लोगों की पूछ नहीं बढ़नी चाहिए। भूल गए कि वे बिहार के सब दलों में घूम कर वापस आए हैं।

वाकई बिहार एक फैसले के मोड़ पर खड़ा है। सब एक ही सवाल कर रहे हैं कि बिहार विकास के नाम पर वोट करेगा या जाति के नाम पर। कोई इन दोनों के कॉकटेल की बात नहीं कर रहा है। जो कॉकटेल बना लेगा जीत का नशा वही चखेगा। रंजन लिखते हैं कि जाति की राजनीति बिहार या भारत या विश्व के लिए नयी नहीं है।
बिहार पोलिटिक्स पेज है - फेसबुक पर् ! वहाँ की बातें भी मेरे नाम से कोट की गयी हैं - पर् उसमे ज्यादा योगदान "सौमित्र जी और सर्वेश भाई " का है - दोनों बंगलौर में ही रहते हैं !


लिंक है "हिंदुस्तान में दालान"  



रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !

4 comments:

Sarvesh said...

Aapki lagan aur ees vishay se lagaao ka fal hai. Aap aise hi dil se likhate rahiye.
Shubhkaamana!!

प्रवीण त्रिवेदी said...

बधाई जी बधाई !!!
...चलिए .अब हम भी मौक़ा पाकर आपके "दालान" में सुस्ता लिया करेंगे !

प्रवीण त्रिवेदी said...

...केवल जिज्ञासावश पूँछ रहा हूँ ...यह लखनऊ वाला इंदिरा नगर है ...या कोई और ?

प्रवीण त्रिवेदी said...

इंदिरापुरम !