Tuesday, November 30, 2010

मेरा गाँव - मेरा देस - जाड़ा का दिन !!

पिछला हफ्ता देखा की कुछ लोग हाफ स्वेटर पहने हुए थे ! शाम को घर लौटा तो  पत्नी को बोला - ए जी ..अब कोट सोट , स्वीटर इयूटर निकालिए ..कहाँ रखीं है सब ? बोली की 'पलग' के बक्सा में रखा हुआ है - कल निकाल दूंगी !  इस बात पर् 'एक राऊंड बहस' हो गया ! पुर पलंग के बक्सा को 'उकट' दिए ! फिर देखे की लाल वाला स्वेटर नहीं मिल रहा है - थोडा कड़ा आवाज़ में बोले - 'लाल वाला स्वेटर नहीं दिख रहा है ??' पत्नी बोली - 'हमको , क्या पता' ! अब फिर एक राऊंड बहस हुआ ! फिर , माँ को फोन लगाया - माँ बोलीं - वहीँ पटना में है ..पापा के आलमीरा में !! 

खैर , पटना याद आ गया ! छठ पूजा खत्म  होते ही माँ लालजी मार्केट जाती थीं ! उन का गोला खरीदने ! साथ में 'काँटा' ( सलाई ) ! ठण्ड शुरू होते ही छत पर् चटाई बीछ जाता - दिन भर माँ - चाची - फुआ - मामी जैसा लोग स्वेटर बुनता था ! हर चार दिन पर् - हमको बुलाया जाता और आधा बीना हुआ स्वेटर  मेरे ऊपर नपाता ! कभी कभी पुराना स्वेटर को 'उघार' दिया जाता - फिर उस रंग का उन खोजने जाओ - यहाँ जाओ - वहाँ जाओ :( हम लोग तबाह हो जाते - साईकील चलाते चलाते :( "मनोरमा" नाम की एक मैग्जीन होती थी - उसमे 'स्वेटर' के तरह तरह के डिजाईन ! पुर मोहल्ला में एक ही मनोरमा - सबके घर घूमता :) 

मौसी लोग बाबु जी के लिये कोट के नीचे पहनने वाला हाफ स्वेटर बून कर भेजता ! कई महिलायें काफी फास्ट - चार दिन में स्वेटर बून के तैयार ! कुछ लोग पुर सीजन लेता और नवंबर से जो प्रोजेक्ट शुरू होता वो जनवरी में खत्म होता ! हाथ से बुने हुए स्वेटर की खासियत यह थी की - स्वेटर की प्रशंषा होते वक्त 'बुनने वाले' की भी बडाई होती या  बताया जाता की कौन बुना है ! 

हाल फिलहाल तक मेरी छोटी फुआ जो मुझे 'चिंकू' के नाम से पुकारती हैं - मेरे लिये स्वेटर बुन कर भेजती थी ! बहुत प्यार से ! पत्नी को फुर्सत नहीं है या मेरे लिये स्वेटर बुनने का मन नहीं है  और मेरे बच्चों की  कोई छोटी 'मौसी' नहीं है :( 

कॉलेज तक लाल और ब्लू वाला 'ब्लेज़र' का फैशन था ! अब तो बहुत कम लोग पहनते हैं ! मफलर का क्रेज होता था ! थ्री पीस सूट जो बियाह में सिलाता था ..लोग पहनते थे ! इंग्लिश जैकेट भी ! ओवर कोट भी ! आज कल तो चाईना वाला जैकेट का फैशन है ! वूडलैंड के मालिक चाईना से जैकेट माँगा के यहाँ बेच रहे हैं :(  मैंने बचपन में कई लोगों को देखा है  'थ्री पीस कोट' और साईकील :)) अब वैसा सीन नहीं दिखता ! 

बचपन में खेल भी सीजन के हिसाब से होते थे ! देर शाम तक लाईट जला के 'बैडमिंटन' खेलना ! उसके पहले क्रिकेट ! बाबु जी बैडमिंटन खेलते थे और जब वो घर लौट जाते तो हम लोग टूटे हुए कॉर्क के साथ :) शाम को स्कूल से आता तो 'चुरा - घी - चीनी ' - मनपसंदीदा ! स्कूल जाने के पहले भर पेट 'कूकर से तुरंत निकला हुआ - गरम गरम भात - दाल भुजीया और धनिया का चटनी ' ! मजा आ जाता ! लाई बनता था ! एकदम बज्ज्जर लाई - लोढा से फोड के खाना पड़ता था ! :) अमीर रिश्तेदारों के यहाँ से 'बासमती का चिउरा' आता था - झोला में :( एक किलो - दू किलो :(( माँ के एक ही मामा जी थे - बहुत अमीर - हर साल खुद आते थे ' बासमती चिउरा - गया वाला तिलकूट' लेकर ! जब तक जिन्दा रहे आते रहे ..! ऐसे कई सम्बन्ध थे ! मालूम नहीं वो सभी लोग कहाँ खो गए :( 

गाँव में 'घूर' ( घूरा , आग ) जलता था ! माल मवेशी के समीप ! वहाँ पुरा गाँव आता ! शाम साढ़े सात बजे का प्रादेशीक समाचार फिर बी बी सी - हिंदी  :) वहीँ हम बच्चे भी :) अलुआ पका के खाते थे :) उफ्फ़ ....आँगन में बोरसी जलता था ...खटिया के नीचे रख दीजिए और सूत जाईये .. :) बाहर बरामदा में ..चौकी से घेर के ..धान के पुआल पर् चादर बिछा दिया जाता ...जो सो आकार सोता ...! वो एक व्यवस्था थी ! खुद का खुद होता ! अब सब कुछ बदल गया ! अब हमारे बरामदा पर् कोई सोने नहीं आता :(  

बचपन में बिना रजाई जाड़ा जाता ही नहीं :( सफ़ेद रंग के कपडे से रजाई का खोल ! कम्बल में भी खोल लगता था ...हम तो आज भी कम्बल ओढ़ के नहीं सो सकते :( ....एकदम से रजाई चाहिए ..! अब तो रूम हीटर आ गया है ..तरह तरह का ! कार में भी हीटर :) "गांती" भी बच्चे बांधते थे ..हम आज तक नहीं बांधे ! 

दिन भर ईख ( उख  ) चूसना ! मैट्रीक का परीक्षा का तैयारी भी ! 'सेन-टप' एग्जाम देने बाद ..इसी जाडा में दिन भर छत पर् 'गोल्डन गाईड' के अंदर हिंदी 'उपन्यास' पढते रहना ;) दोस्त लोग भी आ जाता था ! एक सुबह दस बजे से शाम चार बजे तक गप्प ;) बीच बीच में पढाई भी ! कई दोस्त ऐसे होते जो कार्तिक पुर्णीमा के दिन नहाते फिर 'मकर संक्रांती ' दिन ! हा हा हा ......एक से बढ़ कर एक आइटम होता था ! 

क्या लिखूं :) हंसी आ रही है ..गुजरे जमाने को याद कर !! :)) 

रँजन  ऋतुराज  - इंदिरापुरम !

13 comments:

Shankar said...

इस पोस्ट को लाइक बहुत लोगों ने किया, लेकिन ये सिर्फ लाइक करने वाला पोस्ट नहीं है| इस एक पोस्ट में बचपन से लेकर जवानी से पहले तक की सारी यादें एक साथ छुपी हुई है|

ऐसा कौन सा बदनसीब होगा जिसने पुआल के ऊपर सर्दी की रातें नहीं गुजारी होंगी, हमारी किस्मत में भी ये खुशी आती थी दिसम्बर के आखिरी और जनवरी के शुरुआत के दिनों में|

हाथ से बुना हुआ स्वेटर भाभी के राज में पहना, अब तो पत्नी के पास हुनर भी नहीं और समय भी नहीं| गुड-चुडा और गुड-भूंजा गमछा में लेकर खाना, कुत्ता बच्चा देता था जाड़ा के दिन में और हम सब भई लोग खोज के पूरा गाँव का सबसे सुन्दर और पुष्ट कुत्ता कब्ज़ा करके लाते थे, उसको १५ दिन खूब खिला पिला के मोटा कर देते थे, वो यादें अब तो बस यादें ही बनकर रह गयी है|

सारी यादों को एक बार फिर से ताजा करने के लिए शुक्रिया.... कैसे आपको धन्यवाद दूँ समझ में नहीं आ रहा...

BIBHUTI said...

bahut hi badhiya likhe hain
lag raha tha ki blog khatme na ho

Unknown said...

Ye to bilkul gaon ki mahak hai.
Shankar jee ne kutte ke bachche ko kabjaa karne waali baat kahi...
bahut hi achcha laga.
dasahraa ke aas pass fool ke liye bahut maaraa maaree hoti thi. hamlog raat ke 2-3 baje hi uth ke pados waale ki fulwaaadee se fool churaate the...aur subah hote hi jab us ghar ki mahilayen(jyadatar bujurg) aisee aisee gaaliyaan sunaati thi ki bas majaa aa jata tha.
aisi hi baaten bakariyon ke ghaas charne ko lekar bhi hota tha...
dopahar me charwaahe bhains ki peeth per khane ke baad mast so jaate the aur sham tak wo bhaisen wapas aatee..main unke saath pullee danda kheltaa....shaam ko iske chakkar me papa se bahut pitaayee lagti thi. maar kha kha ke theththar ho gaya main...
chhath me nadee kinare safaai, fir kele ka tamboo gaaraa jata tha..aur nadee ke uspaar waale dhol bajje ko bulaayaa jata..aur ham sab bachche fatinge ki tarah dhol ke gol gol ghumte..

ye to ek silsilaa hai jo jab chal padtaa hai mann ke bhitar to antheen saa chaltaa rahta hai...thik oos kahani waale tyohaar jaisa jisme poore gaon ki daadee aake ''ge bahin sapdaa, ki ge bahin bipdaa'' waali kahani sunti thi...aur ham interest na hone ke baawjood wahi khelte taaki kahani khatam ho prasaad mile..

jyoti mishra said...

mazza aa gaya padhkar.....yaadien kahaniya.....mitti ki khusbhu aur saath hi badalta waqt saab ekk sath .....wah! waqt kitne jaldi badal raha hai ess write up ko padhkar yeh bhi ehsaas hota hai!

jyoti mishra said...

mazza aa gaya padhkar.....yaadien kahaniya.....mitti ki khusbhu aur saath hi badalta waqt saab ekk sath .....wah! waqt kitne jaldi badal raha hai ess write up ko padhkar yeh bhi ehsaas hota hai!

Mayank Mishra said...

Maza aa gaya rituraaj ji..bachpan ki sari yaade taza aa gayi hai..waise gaati hmne bhi bandha hai..

Anonymous said...

Outstanding, Recalled all old days!!! Thanks, Shiv Shukla

Prafull Jha said...

hum aj bhi buna hua sweater rakhe hain or pahante hain. usme jo baat hai wo kisi branded sweater me nahin.or litti chokha ya sattuwa ka roti chokha or saath me gud ki bheli ye shaam ka khana hota tha.
yahan bombay me to sattua milta hi nahin

Rajendra Kumar said...

Old is Gold

Rajendra Kumar said...

Old is Gold

Anonymous said...

BACHPAN KE DIN YAAD AA GAYE . AAJ MAIN PATNA ME HOON. LEKIN GAON ME JITNA DIL LAGTA HAI UTNA TOWN ME NAHI LAGTA. THANDA ME JAB DHAN KAT JATA THA TO KHETO ME CHANA AUR KHESARI KE SAAG KHANE JATE THE HUMLOG. DHAN KA BOJHA AUR PORA PE BAHUT KUDTE THE TO RAAT KO PAIR ME KHUJLI HONE LAGTI THI. AUR JO PURWA HAWA BAHTA THA DIL AUR DIMAG ME GAJAB KA TARANG PAIDA KAR DETA THA. APKI BLOG KO PADHKAR AUR PURANE DINO KO YAAD KAR MERE AANKHON ME AANSU AA GAYD. DIL KARTA HAI ABHI GAON CHALA JAAUN....

Anonymous said...

BACHPAN KE DIN YAAD AA GAYE . AAJ MAIN PATNA ME HOON. LEKIN GAON ME JITNA DIL LAGTA HAI UTNA TOWN ME NAHI LAGTA. THANDA ME JAB DHAN KAT JATA THA TO KHETO ME CHANA AUR KHESARI KE SAAG KHANE JATE THE HUMLOG. DHAN KA BOJHA AUR PORA PE BAHUT KUDTE THE TO RAAT KO PAIR ME KHUJLI HONE LAGTI THI. AUR JO PURWA HAWA BAHTA THA DIL AUR DIMAG ME GAJAB KA TARANG PAIDA KAR DETA THA. APKI BLOG KO PADHKAR AUR PURANE DINO KO YAAD KAR MERE AANKHON ME AANSU AA GAYD. DIL KARTA HAI ABHI GAON CHALA JAAUN....

Sumit Kumar said...

अचानक से फसबूक पर साझा किया एक लिंक मिला और क्लिक्क कर आपके ब्लॉग पर आ गया, एक ही बैठक में न जाने कितने पोस्ट पढ़ गया, रोते, हँसते, पढ़ते, अपनों और अपने शहर को यद् करते कब ६ घंटे बीत गए पता ही नहीं चला, matrik की परीक्षा, जाड़ा और माँ का बीना स्वेअटर, छठ की पूजा, स्कूल के दोस्त और शिक्षक सभी जैसे आँखों के सामने आ गए. सच कहू तो आपके पोस्ट और पाठको के कमेन्ट पढ़ कर लग रहा है जैसे हम सभी बिहारियों की एक ही कहानी है, और सभी महानगरो में बिन पानी की मछली की तरह जी रहे है.
इतने सरे तब्स खुले है सोंच रहा हूँ इससे आपके किस पोस्ट पर जा कर पोस्ट करू, क्यूंकि ये किसी भी पोस्ट सम्बद्ध नहीं है.