बात वर्षों पुरानी है - मै प्लस टू में था - पढ़ाई लिखाई में ज्यादा मन नहीं लगता था - 'हीरोबाजी' में ही समय कटता था - कभी कोई 'गोयें गोयें करते हुए अपनी इंड सुजुकी से दोस्त ...तो कोई महिंद्रा वाली जीप से ...होयें ...होयें ..करता हुआ ..दोस्त ...मोहल्ला परेशान टाईप ! मौसी पापा की जूनियर होती थीं - और हम लोग लगभग साथ ही रहते थे - मौसी का हमेशा कहना - असली 'हीरो' अपनो के साथ एकदम 'सीधा' रहता है और बाहरी दुनिया को 'हडका' के रखता है ...हा हा हा ! खैर ..एक दिन पापा और मौसी मेरा क्लास ले लिए - पापा वहीँ बालकोनी में बैठे थे - दांत पिसते हुए बोले - 'नहीं पढ़ना है ...मत पढो..." - हम एकदम से खुशी से उछल के आसाम बेंत वाली कुर्सी पर चुकुमुकु बैठ गए और हम जबाब दिए - 'यह बात पहले न बोलना था' - पापा और जोर से अपना दांत पिसने लगे - फिर बोले -' नहीं पढना है ...मत पढो ...लेकिन एक बढ़िया इंसान बनो ..मेरे लिए वही काफी होगा' ...हम तब हंस दिए थे ...ये बढ़िया इंसान बनना कौन सा बड़ा काम है !
आज वर्षों बाद ...यही लग रहा है ...पापा कितना मुश्किल टास्क थमा दिए थे ...आसान नहीं है ..हम इतने छोटे दायरे से आते हैं ...न जाने कहाँ उलझ के रह जाते हैं ...जब ईमानदार बनना होता है ...अपना दिल सामने कर देते हैं...और जब बेईमान होना होता है ...अपना दिमाग चलाने लगते हैं ...ऐसा सबके साथ होता होगा ! खुद के सच को दिमाग कभी स्वीकार नहीं कर पाता है ...वो सबसे शक्तीशाली है ...!
खैर ...पापा का टास्क कितना पूरा हुआ ...यह आनेवाला समय और मेरा समाज बताएगा पर ...अभी भी लोग सबक सिखाने को तैयार हैं ....अभी मेरी उम्र ही क्या हुई है ...:)))
४.१.२०१५ #OldPost
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