बचपन मे सुनता था कि विदेश मे "ओल्ड एज होम" होता है ! मुझे बहुत आश्चर्य होता था ! भला कोई अपने माता - पिता को क्यों "ओल्ड एज होम" मे डालेगा ! क्या मजबूरी होगी ? ऐसी कौन सी मजबूरी है कि हम अपने माँ बाप से दूर चले जाएँ ! उनको अकेला छोड़ दें !
मेरे "ब्लोग" पढ़ने वाले अधिकतर पूर्वांचल के लोग हैं , जिनको आज कल "बिहारी" कहा जाता है ! सच सच बताएं - आप मे से कितने लोग अपने माँ-पिता जी के साथ रहते हैं ! अगर आपके माँ - पिता जी साथ मे नही रहते हैं तो फिर वह कहाँ रहते हैं ?
सिप्ताम्बर के महीने मे पटना गया था - माँ- बाबुजी के पास ! सड़क पर एक भी युवा नज़र नही आ रहा था ! या तो २० वर्ष से कम आयु वाले या फिर ४५ से ज्यादा वाले ! अजीब हालात है ! जिस राज्य का युवा ही गायब है - वहाँ क्या हो सकता है ? विकास और उत्थान कि बातें करना बेईमानी है !
पटना या बिहार का कोई भी ऐसा गाँव या शहर या फिर यूं कह लीजिए - कोई ऐसा परिवार नही है जहाँ का कोई न कोई बाहर कमाने नही गया हो ! माँ- बाप यूं ही चुप चाप रात के अंधेरों मे दिन गिन रहे हैं और हम यहाँ चका चक दुनिया मे मस्त !
आपको एक सच्ची घटना सुनाता हूँ :-
आपको एक सच्ची घटना सुनाता हूँ :-
सोहन जी मेरे वाले अपार्टमेंट मे रहते हैं - माता जी पटना मे अकेले - बाबु जी नही रहे ! सोहन जी हर रोज अपनी माँ से बातें करते थे - फोन पर ! अचानक एक दिन शाम , फोन तो घडघडा रहा था लेकिन उधर से कोई उठा नही रहा था ! थोडी चिंता हुई - फिर सोने चले गए ! फिर अगला दिन वही हालत ! पटना वाले घर पर कोई फोन नही उठा रहा था ! अब वह सचमुच मे घबरा गए ! किसको फोन करें ? फूफा जी खुद बीमार हैं - मामा जी तो मुम्बई मे बसे हैं ! कोई भी दोस्त महिम पटना मे नही है ! किसी तरह पडोसी का फोन जुगार किया और "माँ" का हाल चाल बताने को कहा ! पता चला घर अन्दर से बंद है ! पुलिस को फोन किया - पुलिस आयी ! दरवाजा तोडी तो पता चला कि - माँ अब नही रही !
पटना के एक प्रख्यात डाक्टर मिले , बोले - हम तो बहुत कमा लिए हैं ! बेटा नालायक निकले तो अच्छा है - कम से कम पास मे तो रहेगा ! 'फलना बाबु' को हार्ट अटैक आ गया - कोई नही मिला जो हॉस्पिटल पहुंचा सके ! तीनो बेटा अमेरिका मे थे - तीन दिन लग गया - आने मे - तीन दिन तक बर्फ पर् पड़े रहे !
हम आम बिहारी के नसीब अजीब हैं ! हम बहुत सपने लेकर जिंदा नही हैं ! कम से कम हैसियत के मुताबिक २ वक़्त कि रोटी मिल जाये - वह बिहार मे नामुमकिन है !
हमारा समाज भी अजीब है - जैसे आप बिहारी होने के नाते - बाहर जा कर कमाना आपका धर्म है ! दिल्ली मे रह कर अगर आप पटना वापस आने का सोचे तो सभी तरफ से उंगली उठने लगेगी - क्या बात है ? अरे मेरे भाई - बात कुछ नही है - बस , अब घर लौटने को दिल कर रहा है !
भांड मे जाये ऐसा नौकरी -
नितीश कुमार भी सात साल हम जैसे लोगों के लिये कोई जगह नहीं बना सके हैं !
नितीश कुमार भी सात साल हम जैसे लोगों के लिये कोई जगह नहीं बना सके हैं !
~ रंजन ऋतुराज
16 comments:
दिल को छू लेने वाली पोस्ट.. मैं भी एक बिहारी हूं और माता पिता पटना में हैं.. किसी मजबूरी के तहत नहीं, अपने रिटायरमेंट के इंतजार में.. फिर उन्हें अपने पास ले आने का इरादा है.. और मैं उस दिन का इंतजार कर रहा हूं..
Delhi se prakasheet ptreekaa Sopan Step ne OLD AGE par ek accha ank nikaalaa hai, aap dekh sake to accha hoga.
Ranjan , Bahut sahi likhe ho, tumahra vaktavya ekdum prasangik hai.. Agar dekha jaya to hum sabhi iss samsya se zhoojh rahe hain. Mere Babujee abhi Patna mein Bimaar hain.. ghar kaa phone kharaab hai.. doston mitro se hi unka haal chaal le pata hun..Man mein ek jung chal rahee hai.. kee aakhir maa-Babuji ke liye mera koi kartvya hai kee nahi.. Dekhate hain kya hota hai.. Bahut Bahut dhanyabaad iss vikat samsya ko ujaagar karane ke liye.
"बेटा नालायक निकले तो अच्छा है - कम से कम पास मे तो रहेगा !" - त्रासदी है भाई। हम तीन भाई भी माँ-बाप से दूर दिल्ली और कोलकाता में रहते हैं। माँ फ़ोन कर रोज़ पूछती है। दुर्गा पूजा में आओ, दिपावली में आओ, छठ में आओ....लेकिन इस दो टकिए की नौकरी में...! त्रासदी है हमारे समय का।
Ranjan Bhaiya,manmamsha diye lekin,
kya kare sab chakkar hai lakshmi ka kahan se kahan aagaye kabhi nahi soche the sab kuchh chhor chharkar.
आप का लिखा पढ़ कर मन व्यथित हो गया. भगवन की कृपा है मैं अपने माता-पिता के साथ हूँ. और सब के लिए यही कामना करता हूँ.
Mukhiya jee, ek dum sach baat likhe hain ... aur dil ko choo leni wali baat.. ham bhi aise hi hain.. 3 bhai bahan... sab ghar se alag.. 1 dilli ek hyderabad .. aur koi ghar nahi ja sakta..
"बिहार :- एक ओल्ड एज होम"..yah article dil ko chu lene wala hai...halanki mujhpe yeh abhi laagu nahii hota aur na hone ki param aasha hai....parantu fir bhi apne aap mein hamein ek kadvi sachhai se avagat karata hai....main shukragujaar hoon Ranjan jee ka, ki mujhe aisa badhiya lekh padhne ko mila...yeh aankhein kholne waala hai.... :)
Yar Rituraj, Mujhe laga ki shayed yeh kahani tumne mujhpe likhi hai. Isi hafte ka ek waqaya sunata hon mere India aane ka program bhaut din se tha lekin maa ko aajkal aajkal karke tarkha raha tha padson mere ja maa se baat hui to unhone dua salam ke bad pehla sawal kiya ghar kab aarahe ho? Maine kaha biwi bachon ko bhej raha hon main next year aaonga. bus itna sunna tha maine pehli bar unko itna gussa mujhe hote huey dekha sirf ek baat bol ke telephone kat diya aana hai to Baqrid me aao nahi to dobara kabhi maat aana or na hi bachon ko bhejna. Bhai itna sunna tha ke maine faisala kar liya ki chahey kuch hojaye is bar chutti me ghar zaror jaonga.
Yeh article itna dil ko chone wali hai ki kya bataon?
Keep writing. apni in sab lekhon ka sanklan karke isko ek kitab ki shakal dedo.
Tumhara bhai.
Ahmad Rasheed.
KSA
This is really sad...but how is this any different from people of other states like WB UP Orissa,Andhra ,MP etc except for those whose entire genration has lived in metros?
बहुत सही लिखा है मुखिया जी आपने। अब सचमें वापस लौटने का मन करता है, लेकिन ये पेट की भूख और समाजिक हालात हमें बेबस बना देती है। लेकिन अब वक्त आ गया है और हमें ही (युवाओं को) कुछ न कुछ करना पड़ेगा इस दिशा में।
दिल को छू लेने वाला आपका लेख है ये...हर दिन लगता है कि मां-बाप थोड़े और बूढ़े हो गए है। लाखों बिहारियों की मजबूरी को आपने आवाज दे दी।
Mukhiyajee - Aisee baaten likh kar aap hum sab ko bahut emotinal kar dete hain
'फलना बाबु' को हार्ट अटैक आ गया - कोई नही मिला जो हॉस्पिटल पहुंचा सके ! तीनो बेटा अमेरिका मे थे - तीन दिन लग गया - आने मे - तीन दिन तक बर्फ पर् पड़े रहे !
abhi bahut kuchh likhna baki hai,
shayad kuchh sath abhi baki hai
Very true said.....Hum sabhi wapas jana chahte hai.....per.......
This is really a touching blog...As because its very real.. But at the same time the Mirror is infront of us and the picture is not what we expected as because we always felt that somebody will come and change things. I decided that I will change and I made the change happen when I requested my Dad to leave his job and come along and live with me as I needed him more than his money. 9 years my parents stay with me. I am very Lucky!!
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