बिहार चलो ! ४ लाठी राज ठाकरे दिया नही की बिलबिलाने लगे की "बिहार चलो" ! कमज़ोर जीन ! मजदूर ! बिहारी को कितना भी पढ़ा लिखा दीजिए - २-४ करोड़ पाकिट मे दे दीजिए ! मानसिक स्तर पर यह मजदूर ही रहते हैं ! समाजवाद इनके खून मे बसा है ! लोहिया , जे प्रकाश नारायण और कर्पूरी ठाकुर की मानसिकता से बिल्कुल जकडे हुए हैं ! जात पात खून के अंतिम लेअर तक है ! रहेगा अमेरिका मे और सोचेगा जहानाबाद की तरह !
हम बचपन मे देखा करते थे की - लोग अमेरिका या ब्रिटेन पढ़ने के लिए जाते थे - कमाने के लिए नही ! समाज का कमज़ोर तबका कलकत्ता , दिल्ली या मुम्बई कमाने के लिए जाता था ! जिसका पेट बिहार मे नही भरता था वह "बेचारा" बन के परिवार से हजारों मील दूर "पेट भरुआ" बन के जीवन चलता था ! क्या पढ़ा लिखा और क्या अनपढ़ सब के सब मेरे तराजू मे एक ही थे ! कोई जनरल bogee मे तो कोई वातानुकूलित मे ! सफर के ट्रेन और मंजिल तो एक ही थी और साथ ही साथ मकसद भी एक ही ! फिर कैसा फरक ? एक जमाना वह भी था जब डाक्टर लोग ब्रिटेन से पढ़ लिख कर सीधे पटना रुकता था या दरभंगा - मुजफ्फरपुर ! अब यह वर्ग दिल्ली मे निवेश करता है !
इन सब के लिए समाज जिम्मेवार है ! मैंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद - पटना मे कंप्यूटर का व्यापार शुरू किया ! साले ससुराल वाले और इर्द गिर्द के समाज वाले जीना मुहाल कर दिए थे ! हुर्केच हुर्केच के मेरे रातों का नींद गायब कर दिए थे ! फलाना का बेटा - मुम्बई मे फलाना कम्पनी मे है - चिलाना का बेटा अमेरिका जा रहा है ! धेकाना का दामाद दिल्ली मे फ्लैट ले लिया है ! अरे मेरे बाप - यह सभी " पेट भरुआ" हैं ! मुझे इस झमेला मे नही डालो ! मुझे "पटना " पसंद है और मुझे "पटना" मे ही रहना है ! मुझे "बड़ा" नही बनाना है ! मुझे द्वितीये स्तर का नागरीक बन के पेट नही भरना है ! पब्लिक कहाँ maanane वाली थी !
बिहारी लोग समाजवाद और सामंतवाद दोनों को आदर्श मानते हैं ! मैंने कई कम्पनी के बड़े अधिकारीओं को डिप्रेशन मे देखा है ! दिल मे सामंतवाद और जुबान मे समाजवाद ! बढ़िया नौकरी - बढ़िया पैसा और पातर पातर अंग्रेज़ी बोलने वाली बीबी फिर भी दिल उदास है - क्योंकि कोई "pahchaan" नही है ! अब मुम्बई और दिल्ली मे आप ५० लाख की गाडी पर चढें आपको कोई सलाम कयों करेगा ? दिल मे तो सामंतवाद है ! बचपन मे दादा - दादी के मुह से जिला जवार के बड़े बड़े सामंती लोगों की जीवन शैली को देखा और सुना है !
दिल्ली के एक बहुत बड़े बिहारी का फोन आया - बेटी का बियाह है - "अपने" लोग आते तो अच्छा रहता ! शादी बियाह के मौके पर लोक गीत का आनंद ही कुछ और है ! अब भाई जी दिल्ली आकर करोड़पति तो बन गए लेकिन अपने लोग "बिहार" मे ही छुट गए - मामा - फूफा की जगह "दिल्ली" के dalalon ने ले ली है !
खैर , जब सब बिहारी "बिहार" चला जाएगा तो ई नीतिश और लालू का क्या होगा ?
6 comments:
सभी सज्जन ससुराल से संचालित होते है.
बढिया लिखें हैं. सचाई है... पर इसको कैसे पार पाया जाए उस पर भी चर्चा होनी चाहिए...
Gajab! :)
well said.
यूं तो जिंदगी में हर पल इंटेलिजेंस की जरूरत महसूस होती है, मगर खासतौर पर उस समय इसकी महत्ता और अधिक बढ जाती है, जब परीक्षा की घडी नजदीक हो। इंटेलिजेंट स्टूडेंट का ब्रेन शार्प होता है और उसकी स्मरणशक्ति अच्छी होती है। जाहिर है, परीक्षा की अच्छी तैयारी होगी और वह कॉन्फिडेंट भी महसूस करेगा। अब सवाल उठता है कि कोई कैसे शार्प करे अपने ब्रेन को? वह क्या चीज है, जिससे आपकी स्मरणशक्ति तेज होती है? एक स्वस्थ मस्तिष्क के लिए दो चीजें बहुत जरूरी हैं - Gundagardi aur Gussa...। ऐसा क्यों?
bihar badal raha hai . bihar ke bare me mansikta badale aur ise aage badhaane me bihaaree hone ke naate har sambhav prayaas kare.
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