Saturday, August 21, 2010

तनखाह .....

देश के 'संसद' की क्या हैसियत है ? अगर मै गलत नहीं हूँ तो शायद इससे शक्तिशाली कोई और दूसरी संस्था नहीं है - फिर वहाँ के लोग जिसमे से करीब ५२३ हमारे द्वारा ही दिए गए वोट से जीते जाते हैं , क्यों न एक बेहतर तनखाह लें ? जब 'हरी - हैरी और हरिया' भी मेट्रो में रह कर २-४ लाख झार लेता है फिर जिस संस्था के ऊपर पुरे देश की जिम्मेदारी है  अगर उसके सदस्य को पचास हज़ार मिल ही रहा है तो क्या गुनाह हो गया ?

एक छोटा सा सवाल है ? हम में से कितने लोग  संसद के दौरान 'लोकसभा टी वी या राज्यसभा टी वी ' देखते हैं ! मुझे जितना वक्त मिलता है - मै देखता हूँ और इसी दालान पर मैंने चौदहवीं लोकसभा में पटना के सांसद 'श्री राम कृपाल यादव' को सर्वश्रेष्ठ सांसद बोला था - बाद में उनको लोकसभा ने उनके कार्यों को देख सर्वश्रेष्ठ सांसद का सम्मान दिया था ! मैंने 'बाहुबली पप्पू यादव' को लोकहित में बोलते देखा हूँ !

जिस आदमी को राजनीति का क , ख , ग भी नहीं पता वो भी राजनेता को 'भ्रष्ट' बोल देता है ! आज के दिन में बिहार जैसे गरीब प्रदेश में भी 'विधायक' का चुनाव जितने लायक लडने के लिए कम से कम एक करोड चाहिए ! एक उम्मीदवार क्या करता है इन पैसों से ? जी , आपके और हमारे जैसे लोग बिना पैसे दिए वोट नहीं डालते ! फिर 'भ्रष्ट' तो हम ही हुए ! दस साल पहले तो इस तरह पैसा नहीं बहता था !

"लोकतंत्र" में सबसे शक्ती शाली जनता होती हैं ! अगर ऐसा नहीं होता तो एक चपरासी का भाई - बेटा किसी प्रदेश पर २० साल तक राज नहीं करता ! अगर ऐसा नहीं होता तो इंदिरा गाँधी जैसी शक्तिशाली नेत्री चुनाव नहीं हारती !

 बहुत कम ऐसे 'लोकप्रतिनिधि' हैं जिनके बाल बच्चे आपकी तरह एक 'एम एन सी ' की नौकरी करते हैं ! उनका बचपन और जवानी दोनों बर्बाद हो जाता है ! अगर वो थोडा खुद के लिए ले ही लिया तो इतना हंगामा ? आप और हम 'बेईमान' रहे और सामनेवाला 'ईमानदार' क्योंकि उसने 'समाज सेवा ' का प्रण लिया है ! इट्स नोट अ फेयर गेम !

देखिये , पैसे की जरुरत अब सबको है ! अगर आप उचित तनखाह नहीं देंगे फिर उसकी नज़र आपके 'तिजोरी' जायेगी ही जायेगी - आप कुछ नहीं कर सकते ! 'पावर' से पेट नहीं भरता ! आज जिसको 'कम्यूटर' का थोडा भी ज्ञान है वो ४०-५० पा लेता है ! फिर , 'लोकप्रतिनिधि' के साथ ऐसा व्यवहार क्यू ? भूखे पेट वो आपके लिए कितना सोचेगा ? इंसान है - उसके भी बाल बच्चे है - कुछ इधर उधर की सोचेगा ही ...!

यही हाल 'अधिकारिओं' के साथ भी है - आप संघ लोक सेवा आयोग के द्वारा सबसे तेज लोगों को चुनते हैं और उनको देते हैं क्या ? और समाज उनसे अपेक्षा रखता है की वो अपने पद के अनुसार जीवन शैली रखें ! अगर कोई 'सिविल सर्वेंट' यह घोषणा कर दे की वो जीवन में कभी घुस नहीं कमाएगा - उसके यहाँ कोई अपनी बेटी का बियाह नहीं करेगा ! इसका सिर्फ और सिर्फ एक ही वजह है की - कम तनखाह !

कल रवीश की रिपोर्ट देख रहा था - एक शिक्षक की शिकायत बच्चे कर रहे थे ! अब पांच हज़ार में आप कैसा 'शिक्षक' चाहते हैं ? इससे ज्यादा तो मेरे फ़्लैट के सामने 'गुटखा' बेचने वाला कमा लेता है ! 

अब किसी पेशा में इज्जत नहीं है ! एक जमाना था - जब लोग पूछते थे की आपको कितना पढ़े लिखे हैं - अब पूछा जाता है 'कितना माल' ( पैसा ) है ? यह दबाब कौन पैदा कर रहा है ? बचपन याद है - पटना के विधायक क्लब जाता था - बाबा के ३-४ दोस्त मंत्री - विधायक हुआ करते थे ! वहाँ 'टोनी' जी से दोस्ती हो गयी ! उनके पास गाड़ी होती थी - वहीँ बगल के फ़्लैट में 'पालीगंज' के विधायक रहते थे ! टोनी जी के यहाँ भीड़ होती थी - 'पालीगंज' के विधायक के यहाँ कोई नहीं ! "समाज भी चाहता है की आप झमका कर रहे" ! आज नेता बोले तो ..एक बड़ा गाड़ी ..२-४ चेला चपाती ...कौन देगा खर्चा ? बिना चेला चपाती वाला को आप नेता भी नहीं मानेंगे !

कल शाम बगल के 'शिप्रा मॉल' में चला गया ! एक राज्यसभा सांसद दिख गए - अपनी पत्नी के साथ थे - मै अपने दो दोस्त के साथ ! मैंने 'राज्यसभा सांसद' को अभिवादन किया और रुक कर उनकी पत्नी से उनके बच्चों की पढाई - लिखाई के बारे में पूछने लगा ! फिर वो लोग बाहर निकल गए और मै उनको गाड़ी तक छोडने आ गया ! मेरे दोनों दोस्त थोडा परेशान हो गए - बाद में पूछा - कौन थे ये लोग ? मिने बोला एक संसद सदस्य - वो चौंके - विश्वास नहीं होता - बिना वजन वाला संसद सदस्य होगा - वरना ऐसे ही बिना 'चेला चपाती - सुरक्षा ' का कोई कैसे चलेगा ? यह सवाल ऐसे लोग कर रहे थे - जो बिहार के सबसे बढ़िया इंजिनीअरिंग कॉलेज से पास एक बेहतरीन कंपनी में नौकरी कर रहे हैं - फिर बाकी की जनता तो अपने 'प्रतिनिधि को अवश्य की "शक्तिशाली" और 'झमकते' हुए देखना चाहेगी !

फिर 'बाज़ार' में  झमकाने  के लिए - पैसा चाहिए - अगर संविधान उनको नहीं देगा तो अवश्य ही उनकी नज़र 'तिजोरी' पर रहेगी ! यह मनुष्य का स्वभाव है !


खैर ..बहस जारी रहेगा ...

"दालान" से

रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !

3 comments:

गजेन्द्र सिंह said...

ये देश एक दुर्भाग्य की और बढ़ रहा है , नेताओ को चुनने वाली जनता को सडा अनाज भी उबलब्ध नहीं हो पा रहा है जबकि नेता अपना वेतन पांच गुना बढ़ाना चाहते है ............. इसका नुकसान देश को ही उठाना पड़ेगा ..

Virus said...

काम के हिसाब से वेतन का अधिकार सबका है, अगर हम अपने आप को पढ़ा-लिखा और काबिल बताकर हर साल २० से ३०% की वृद्धि चाहते हैं, तो हमारे जन प्रतिनिधि अगर ज्यादा वेतन चाहते हैं तो इसमें कोई बुराई नहीं है. लेकिन हम सिर्फ उनके वेतन को ही क्यों देखते हैं, बाकि के भत्ते भी तो मिलते हैं, उनका क्या?

संक्षेप में मैं यही कहना चाहूँगा की जो वृद्धि उन्हें मिली है वो बहुत है, उन्हें चाहिए की वो अपने वेतन का तुलनात्मक अध्ययन बंद करें और अगर करते हैं तो ये तुलना अच्छी तरह से होनी चाहिए.

Manoj said...

Ranjan ji,
इस बात से कभी इनकार नहीं किया जा सकता है कि इन तमाम लोगों को बेहतर वेतन मिलना चाहिए. पर यदि इससे ये लोग अपना काम इमानदारी से करने लगेंगे, ये तो कोई भी नहीं सोच सकता. यदि अंतर सिर्फ वेतन का होता तो फिर ये इतनी ही बेईमानी करते कि अपने से कम "talented" लोगों से बेहतर तरीके से रह लेते. ३०० - ४०० करोड़ कमाने के बाद भी यदि भूख बची हुई तो फिर कितने salary देनी होगी भारत सरकार को , ये आप ही बताइए.

मनोज