Saturday, August 28, 2010

मेरा गाँव - मेरा देस - भाग ११ ( काका )

जब से बाबु जी ने अलग घर गृहस्थी बसाई - बाबा एक काम हमेशा करते रहे - वो था गाँव से 'किचेन हेल्पर' भेजना ! अलग अलग उम्र के ! मालूम नहीं पिछले ३० साल में कितने आये होंगे और कितने कितने दिन रहे होंगे !

शुरुआती दिनों की याद है ..एक था 'धर्मेन्द्र' ! वो चौथी कक्षा तक पढ़ा था ! मुझे याद है - उसे पढने का शौक था - वो मेरी 'नंदन' और 'पराग' लेकर पढता था ! उसका बड़ा भाई दिल्ली में रहता था सो वो जल्द ही दिल्ली चला गया था ! हाल में ही कुछ वर्षों पहले मुझसे मिलने आया था - अब उसकी खुद की फैक्ट्री हो गयी है :) ढेर सारे फल - मेवा - मिठाई लेकर आया था ! अपने फैक्ट्री के बने हजारों के 'बाथरूम आईटम' के सामान मुझे दे गया की मै उसे अपने फ़्लैट में लगा लूँ - पर मैंने वापस कर दिया ! पटना के मेरे घर में बाथरूम आइटम उसकी फैक्ट्री के ही लगे हैं !

कई आते गए - जाते गए ! उन दिनो 'डिम्पल' चूल्हा होता था ! फिर गैस आया ! ३० दिन में वो सभी गैस का चूल्हा जलाना सिखाते और ३१ वा दिन भाग जाते ! हंगामा हो जाता ! कोई साइकील से रेलवे स्टेशन जाता तो कोई बस स्टेशन - कहीं खो गया तो ? फिर अगले ही सप्ताह 'बाबा' किसी को भेज देते ! अंतहीन सिलसिला था ! "छपरा" जिला वालों से घर का काम करवा लेना बहुत मुश्किल था !

एक घटना याद है - बाबु जी बड़ी मुश्किल से कुछ पैसे जमा किये थे - गोदरेज का अलमीरा खरीदने को - एक रात 'भूटिया' उन पैसों और माँ के गहने लेकर भाग गया ! वो एक अजीब सा 'झटका' था ! कई महीनो तक हम परेशान रहे ! खैर किसी तरह कुछ गहने वापस मिले लेकिन एक हीरे का कान वाला टॉप्स नहीं मिला !

सिलसिला यूँ ही चलता रहा ! फिर आयीं 'शांती दी' काफी उमरदराज और काफी कड़ीयल स्वाभाव की ! वो भी हमारे गाँव तरफ की ही थीं - पर काफी वर्षों से पटना में रहती थीं ! कुछ वर्षों तक रहीं फिर अधिक उम्र होने के कारण अपने बच्चों के पास चली गयीं - फिर उनकी कोई खोज खबर नहीं मिली !

फिर आये "काका" ! काका का पूरा 'टोला' हमारा 'आसामी' होता था ! इनके कई चाचा - बाबा हमारे बाबा के काफी विश्वासी होते थे ! काका के खुद के परिवार को हमारे तरफ से कुछ बीघे ज़मीन इस एवज में दिया गया था की वो 'दालान' में लालटेन जलाने का काम करते थे - इनका काम था - हर शाम "दालान" में ठीक वक्त पर "लालटेन" जला के टांग देना या शादी बियाह के मौके पर 'पेट्रोमैक्स" !

वक्त के साथ - ना तो वो "दालान" की वैभव रही और न ही हमलोगों में उतनी क्षमता की सब  का पेट पाल सकें ! सो 'काका' कलकत्ता चले गए - जूट मिल में कमाने ! शायद वहाँ उनको 'टी बी' हो गया ! वापस लौट आये ! शादी हुई पर पत्नी कुछ महीने के बाद मायके गयी तो वापस नहीं आयी - अब वो 'गाँव' के बाज़ार में 'कचरी- बचरी-पकौड़ी' बेचने लगे ! खैर ..बाबा के कहने और अपनी जमीन को बचाने के लिए वो हमारे पास 'पटना' आ गए ! उनके कई भाई - भतीजा हमारे परिवार के साथ गांव में थे सभी उनको 'काका' ही कहते तो हम लोग भी कहने लगे ! धीरे धीरे 'पटना' में उनका मन लगने लगा ! बाबू जी शाम थके हारे लौटते तो वो चाय बना के बाबु जी का देह दबाते ! बात बीस साल पुरानी है ! घर दरवाजा सब साफ़ करना ! घर का सारा काम अपने माथे ले लेते और फिर एकदिन अचानक वो 'गाँव' के तरफ मुह मोड़ लेते ! फिर एक सप्ताह के बाद वापस ! जितना २-३ महीना में कमाते उतना वो 'गाँव' में "पी" पा के खतम ! "पीने " के बाद शुद्ध हिंदी में वार्तालाप :))

बहन की शादी और मेरे 'नॉएडा' आने के बाद 'माँ - बाबुजी' की जिम्मेदारी उनके ऊपर ही थी ! एक और खासियत है - हमारे यहाँ मेहमान बहुत आते थे - वो ऐसा 'खाना' बनाते की कोई मेहमान ज्यादा दिन नहीं खा पाता :) नॉएडा आया तो - माँ हर ३-४ महीना पर उनको कुछ सामान के साथ भेज देती ! अब वो मेरे लिए 'हेडक' हो जाता ! काका को रिसीव करो - २-३ रुकेंगे तो उनकी विदाई करो फिर लौटने का खर्चा - पता चलता मुझसे कुछ और पैसा लेकर वो दिल्ल्ली से सीधे गाँव का रास्ता घर लेते :)

अत्यधीक खर्चीला ! सब्जी खरीदने के बाद पैसा वापस माँगने पर गुस्सा भी जाते हैं ! हाल में वो बहुत ही ज्यादा पीने लगे ! तंग आकार बाबु जी उनको मना दिया और बाबा को भी बोल दिया की अब किसी को भेजने की जरुरत नहीं है !

जुन में पटना गया तो 'काका' आये थे - फिर वही 'तमाशा' - पी के शुद्ध हिंदी ! घर में चचेरी बहन की शादी और पुत्र का जनेऊ और उधर 'काका' का शुद्ध हिंदी जारी :) खैर , मेरी पत्नी ने उनको थोडा बहुत समझाया और साथ में 'इंदिरापुरम' चलने को तैयार कर लिया ! सुबह सुबह ६ बजे ही नहा लेते हैं - पीते भी नहीं हैं - हाँ , दिन भर में ३०-४० गुटखा जरुर खा लेते हैं - मेरे लिए कभी कभी 'पान' भी ले आते हैं ! "चाय" इतना ज्यादा की ...पूछिए मत ! खाना ऐसा की ..मै बहुत स्लिम हो गया हूँ ;) हाँ , नॉन वेज वो बहुत पसंद से बनाते हैं ! रूठते भी बहुत हैं ! रूठने के बाद १-२ दिन खाना ही नहीं खाते हैं ! भारी फेरा हो जाता है :(

पत्नी कह रही थीं की जितना सरसों का तेल और घी एक साल में खर्च नहीं हुआ वो पिछले २ महीने में हो चूका है - खैर मुझे विश्वास नहीं हुआ ! खर्चीले हैं ..लेकिन विश्वासी :) घर में उनको कोई "तुम" कह के नहीं बुलाता है - सिवाय बाबा - बाबु जी के !

मालूम नहीं कितने दिन तक साथ रहेंगे - पर बच्चे और पत्नी खुश हैं :-|

रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !

4 comments:

Krishna said...

रंजनजी जिस काका नामक समस्या से अभी आप जूझ रहे हैं हम लोगों ने भी झेला है बचपन में सो एक फिर आपने उन दिनों की याद दिला दी. बहुत अच्छा लिखा है आगे भी इसी तरह लिखते रहिये मैंने पहले भी कहा है और फिर कह रहा हूँ की आप में अच्छे लेखक बनने के सारे गुण हैं सो इस दिशा में भी प्रयास कीजिये

Ravi S said...

Thanks for sharing your views on the post
http://hashiya.blogspot.com/2007/09/blog-post_12.html
I agree with you.

sonu said...

hamare yaha v the ek Devi Baba, papa kehte hai unhe ekbaar chuhe ka chokha khila diye khet me,papa ki bht pitai hui thi aur hmare baba ne devi baba k sath kya kiya hoga ye btane ki jaroorat nhi hogi hum v chhapra se hai.......

sonu said...

hamare yaha v the ek Devi Baba, papa kehte hai unhe ekbaar chuhe ka chokha khila diye khet me,papa ki bht pitai hui thi aur hmare baba ne devi baba k sath kya kiya hoga ye btane ki jaroorat nhi hogi hum v chhapra se hai.......