मंदिर तो वहीँ हैं ...जहाँ तेरी रूह बसती है ...जलती है ...उस कमरे को रौशन करती है ...सुगन्धित करती है ...इस जहान में ...सबकुछ तो पत्थर ही है ...बस तेरी 'केफी' की इबाबत ने ...उस आवारे पत्थर को खुदा बना दिया ...
मंदिर तो वहीँ हैं ...जहाँ तेरी रूह बसती है ...
~ RR
1 comment:
बहुत सुन्दर
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