Sunday, September 11, 2016

दो दुनिया - भाग दो

ईश्वर / प्रकृति जब इंसान का सृजन करती है - उसे दो हाथ , दो पैर , दो आँख इत्यादि के साथ इस धरती पर भेजती है ! लाख में किसी एक इंसान को ईश्वर दिव्यांग / विकलांग बना कर भेजता है ! लेकिन सभी इंसान एक जैसे ही होते हैं ! उसी में कोई लम्बा , कोई मोटा तो कोई दुबला ! 
यह तो है शारीरिक दुनिया जिसे हम बाहर की दुनिया कह सकते हैं ! ठीक इसी तरह हर एक इंसान की एक अन्दर की दुनिया होती है - जिसे हम मन या स्वभाव या उस इंसान की प्रकृति कह सकते हैं ! मैंने अपने इस उम्र तक यही पाया है की - स्वभाव के जितने गुण या अवगुण होते हैं - लगभग सभी गुण या अवगुण हर एक इंसान के अन्दर होता है ! हर एक इंसान के अन्दर प्रेम , छल , लालच , क्रोध , वासना , त्याग , भोग इत्यादि जितने भी गुण या अवगुण संसार में होते हैं - सभी के सभी एक इंसान के अन्दर होता है ! 
लेकिन दिक्कत तब होती है जब इन गुणों या अवगुणों के मिश्रण का अनुपात ज़माना या स्थान के हिसाब से  गड़बड़ा जाए ! उदहारण के लिए आपके कान जरुरत से ज्यादा बड़े हो जाएँ फिर आप भद्दे दिखेंगे और अगर कान नहीं हो तो भी आप अजीब दिखेंगे !
वैसा ही कुछ अन्दर की दुनिया या स्वभाव के साथ भी होता है ! आपके अन्दर क्रोध न हो - कई बार सामने वाले को बढ़िया लगेगा लेकिन कई बार आपके साथ वाले या आप स्वयं मुश्किल में फंस जायेंगे ! आपको सीमा पर लडाई लड़नी है और आपके अन्दर क्रोध नहीं पनप रहा - आप लड़ाई हार जायेंगे !
ठीक उसी तरह आपके अन्दर प्रेम नहीं है - या बहुत ज्यादा है - दोनों में मुश्किल है ! अगर नहीं है तो कोई करीब नहीं आएगा और अगर बहुत ज्यादा है तो वह छल का रूप ले लेगा क्योंकि ये सभी गुण या अवगुण बहुत एक्सक्लुसीव होते हैं - प्रेम हर किसी पर वर्षाने का चीज नहीं है ! क्रोध हर किसी को दिखाने का नहीं है - फिर आपके क्रोध का कोई महत्व ही नहीं देगा - आपका प्रेम किसी को सुख नहीं दे पायेगा !
आप खाना हाथ से ही खायेंगे - पैर से खायेंगे तो अजीब लगेगा ! जिसे आपको देखना है उसे आप सुन कर कोई निर्णय नहीं ले सकते ! कहाँ कान का महत्व है और कहाँ आँख का - यह समझना होगा  !
वासना को लेकर समाज हमेशा नकरात्मक रहा है लेकिन क्या हम वैसे लडके या लड़की से अपनी बेटी / बेटी की शादी कर सकते हैं जो बिलकुल वासनाविहीन हो ? कतई नहीं ! लेकिन यही वासना अनुपात से ज्यादा हो जाए फिर खुद को भी दिक्कत और समाज को भी दिक्कत !
समाज कहीं से भी किसी गुण या अवगुण को नकारता नहीं है बल्कि उन्हें नियंत्रण में रख सही जगह और सही समय पर - सही अनुपात में दिखाने या उपयोग करने को कहता है !
भय गुण है या अवगुण - कहना मुश्किल है ! भयमुक्त इंसान क्या क्या गलती कर बैठे - कहना मुश्किल है ! और भययुक्त इंसान के लिए एक कदम भी आगे बढ़ना मुश्किल है !
पूरी ज़िन्दगी इसी को सीखना है - कब और कैसे और किस अनुपात में हम अपने गुण या अवगुण का फायदा ना सिर्फ खुद के लिए या बल्कि परिवार और समाज के लिए उठायें ! जैसे हमें बचपन से ही प्रकृति / परिवार / समाज हमारे अंगों के सही इस्तेमाल को बताता है लेकिन कोई परिवार या समाज हमें अपने स्वभाव के गुण या अवगुण के इस्तेमाल को नहीं बताता है - कई बार हमें खुद के ज़िन्दगी से मिले फायदे या ठोकर से सीखना पड़ता है - कई बार सीखते सिखते देर हो जाती है तो कई बार बहुत जल्द आँखें खुल जाती है !
इस सामाजिक दुनिया में सबसे ज्यादा गाली 'अहंकार' को मिलती है क्योंकि इस अहंकार पर रिश्ते को बर्बाद करने का इलज़ाम लगता है ! लेकिन आप सभी लोग मुझे यह बताएं की - क्या बगैर अहंकार कोई जिंदा रह सकता है ? प्रेम का पहला शर्त ही है - अहंकार का पूर्ण समर्पण ! पर पूर्ण समर्पण के बाद इन्सान सामने वाले की नज़र में अपनी महत्व खो बैठता है - आकर्षण ख़त्म हो जाता है ! यह कैसी विडम्बना / पैराडॉक्स है की आपको रिश्ते में अहंकार नहीं चाहिए और जब कोई अपने अहंकार को ख़त्म कर दे तो आप उसकी महता खत्म कर दें - कुछ अजीब नहीं लगता ?
शायद यहीं से शुरू होता है - छल ! छल बिलकुल प्रेम सा दिखता है , वही आनंद देता है लेकिन छल पर आधारीत रिश्ते में एक झूठे अहंकार को समर्पित किया जाता है , जैसे ही मकसद पूरा हुआ - झूठे और झुके अहंकार की जगह असल अहंकार अपने फन से फुंफकारना शुरू कर देता है ! फिर हम शिकायत करते हैं - धोखा मिला ! धोखा तो प्रथम दिन से ही है बस सामने वाले इंसान के समझ का फेर है ! इसलिए कई बार लोग रिश्ते की बलिदान चढ़ा देते हैं लेकिन अपने अहंकार को झुकने नहीं देते ! कई बार यह अहंकार आत्म सम्मान का शक्ल ले लेता है !
क्या हम अपनी आत्मा के आईने के सामने अपने ह्रदय पर हाथ रख - यह कह सकते हैं की - हमने कभी किसी को धोखा नहीं दिया , हमारी वासना कभी नहीं जागी , हमारे अन्दर कोई लालच नहीं ! अगर हमारी आत्मा ऐसा कहती है तो इसका मतलब की हमरी अंतरात्मा मर चुकी है ! ऐसा हो ही नहीं सकता , क्योंकि ये सारे गुण या अवगुण ईश्वर ने हमें दिए हैं ! साथ में ईश्वर ने हमें अपनी समझ दी है - आप ज़िन्दगी में बगैर लालच किसी ट्रैप में नहीं फंस सकते - लालच अँधा बना देता है ! लेकिन क्या बगैर लालच हम किसी चीज को पा सकते हैं ? लालच भी जरुरी है ! पर सबका अनुपात ठीक होना चाहिए ! यह अनुपात आपका संघर्ष , अनुभव और समझ से ठीक होगा और जिस किसी इंसान के अन्दर यह अनुपात ठीक होगा - वही इंसान पूर्ण होगा ! अगर यह अनुपात गड़बड़ है - आप पूर्ण नहीं है ! एक गुण है - वफादारी ! अगर आप वफादारी से पूर्ण है तो भी यह गड़बड़ है - आप अपनी महता खो देंगे !
जिस तरह हम अपने शरीर की साफ़ सफाई करते हैं - आँखें कमज़ोर हो जाने पर चश्मा पहनते हैं ठीक उसी तरह अपने अपने अन्दर की दुनिया और सारे गुण / अवगुण का आत्म अवलोकन करना होता है ! कई गुण / अवगुण की जरुरत समय के हिसाब से ख़त्म हो जाती है - उन्हें बेवजह भी नहीं पालना चाहिए - जैसे जिद बचपन में शोभा देता है और बुढापा में रुसवाई ...:))
बहुत कुछ है लिखने को ...:))

क्रमशः 

@RR


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