Thursday, June 3, 2010

मेरा गाँव - मेरा देस ( राजनीति ) - भाग छह

प्रकाश झा साहब की फिलिम 'राजनीति' रिलीज होने वाली है ! सन १९८४-८५ में उनकी 'दामुल' दूरदर्शन पर देखी थी ! एक सांस में देख लिया था :)  उनकी लगभग सभी फिल्मे देख चूका हूँ ! 'राजनीति' भी देख लूँगा :) मै 'फिलिम्ची' नहीं हूँ - सिनेमा देखते वक्त 'निर्देशक' की भूमिका में खुद को पाता हूँ तो और भी दिक्कत होती है :(  इसलिए सिनेमा और टी वी के रिपोर्टस को लगभग कोशिश करता हूँ - ना देखूं !

खैर , एक पोस्ट में आप सभी ने पढ़ा होगा - कैसे मै पहली दफा 'श्रीमती गाँधी' को रांची में देखा ! तब से उनका मै फैन हो गया :) १९७७ का चुनाव याद नहीं है पर उनका चुनाव चिन्ह 'गाय और बछड़ा' के बैच कई सालों ताक मेरे 'दराज' में मेरे खिलौने के पार्ट हुआ करते थे ! सन १९८० के आम चुनाव के वक्त मै मुजफ्फरपुर में हुआ करता था - 'राजनीति' खून में थी ! कॉंग्रेस जेहन में थी ! मुजफ्फरपुर के सब से बड़े व्यापारी 'श्री रजनी रंजन साहू' कॉंग्रेस के उम्मीदवार हुआ करते थे ! बड़े दादा जी से जिद  किया तो कॉंग्रेस के कुछ झंडे घर' के छत पर टांग दिए गए :) इंदिरा गाँधी से प्रभावित होकर - मैंने भी अपनी एक 'वानर सेना' बना ली थी ! :) मोहल्ले के ही सभी थे ! जॉर्ज साहब भी चुनाव लड़ रहे थे ! जॉर्ज साहब एक चुनावी सभा को संबोधित करने वाले थे - हम सभी ने प्लान बनाया की वहाँ हम पत्थर फेंकेंगे :) खैर , अब याद आती है तो बहुत हंसी भी छूटती है :) मोहल्ले के कुछ लोगों ने 'जॉर्ज साहब' के पक्ष में एक छोटा सा प्रदर्शन टाईप का करने वाले थे - मुझे जब पता चला - मै बेचैन हो गया था - बड़े बाबा के पास गया और रोने लगा :) शाम को वो प्रदर्शन हमारे घर के सामने से ही होकर जाने वाला था - मै शाम को ही तीर धनुष लेकर उनको रोकने को तैयार था :) मेरी 'वानर सेना' गायब थी - राजनीति का पहला सबक :)

वोट कैसे गिराते हैं - नहीं पता था ! बाबु जी और बड़े बाबा - चाचा सभी लोग पास के ही एक महिला कॉलेज जो की मतदान केंद्र हुआ करता था - वहाँ जाने वाले थे - जिद पर अड् गया - बाबु जी के लैम्ब्रेटा पर पहले से ही जा कर बैठ गया :) वहाँ गया - तब तक एक 'जीप' आई और उससे एक दूसरी पार्टी के उम्मीदवार उतरे - बाबु जी ने मुझे इशारा किया की "प्रणाम' करो !मैंने नहीं किया ! बाद में पता चला की वो वहाँ से लगातार चार बार जीत चुके और 'लंगट सिंह' के पौत्र 'दिग्विजय' बाबु थे और हमारी जाति के ही थे - शायद मेरे घर वालों ने उनको ही वोट दिया था - रात भर नींद नहीं आयी - विश्वास टूट चूका था - राजनीति का दूसरा सबक :)

सन १९८० के विधानसभा चुनाव के समय 'गांव' पर था ! बाबा को टिकट मिलने की खबर 'अखबार' में छप चुकी थी - ऐसा ही कुछ उनके साथ १९६२ में भी हुआ था पर वहाँ के तत्कालीन सांसद 'श्री नगीना राय' ऐसा नहीं चाहते थे सो अंतिम समय में 'टिकट' कट गया ! हम सभी बहुत दुखी थी - डॉक्टर जगनाथ मिश्र गाँव पर आये - और कुछ बड़ी चीज़ का वादा कर के गए :) बाबा कॉंग्रेस के थे - कॉंग्रेस ने बहुत ही कमज़ोर कैंडिडेट को उतरा था - बेवकूफ जैसा था - हर सुबह अपनी जीप लेकर हमारे दरवाजे आ जाता था ! हम और हमारे बाबा दिन भर कॉंग्रेस की जीप में घुमते :) पर , अचानक मुझे पता चला की बाबा ने उनदिनो बिहार के समाजवादी नेता 'श्री कपिल देव बाबु ' को चिठ्ठी भेज कर अपने एक आदमी को 'जनता पार्टी' का टिकट दिलवा दिया था ! 'कपिल देव बाबु सम्बन्धी लगते थे ! चुनाव के ठीक पहले अचानक बाबा सक्रिए हो गए - उनके सारे लोग - उस 'अपने आदमी' के लिए काम करने लगे :) पर जीप अभी भी वही 'कॉंग्रेस' की थी ! घर में झंडे 'कॉंग्रेस'   के ही लगे थे ! खैर , न तो कॉंग्रेस जीता और न ही वो अपना 'आदमी' - राजनीति का तीसरा सबक बहुत महत्वपूर्ण हो गया !

फरवरी १९८४ में दिल्ली आया था ! राज्यभर के कॉंग्रेसी आये थे ! मै भी बाबा के साथ 'लटक' गया ! दिल्ली का पहला दौरा था ! २६ , महादेव रोड पर नगीना राय के डेरा पर रुके थे ! हर शाम - पालिका बाज़ार घूमने जाता था ! जिस दिन इंदिरा गाँधी से मिलने जाना था - उसके ठीक एक दिन पहले मैंने 'पालिका बाज़ार' से एक 'कैमरा खरीदा' - अगले दिन मैंने अपनी जिंदगी की पहली तस्वीर श्री मति गाँधी का लिया - सफ़ेद अम्बैस्डर में सवार ! सर पर पल्लू ! कॉंग्रेस के कई दिगज्जों के रूबरू ! ढेर सारे 'आशीर्वाद' समेटा !

१६ अक्टूबर १९८४ , श्रीमती गाँधी से अंतिम मुलाकात ! सत्येन्द्र बाबु उर्फ छोटे सरकार का कॉंग्रेस में वापसी का दिन ! श्री कृष्ण मेमोरियल में ठीक उनके सामने बैठा हुआ - मै :) बिहार के सभी कॉंग्रेसी दिग्गज के बीच में - मै एक टीनएजर कॉंग्रेसी :) ताकत का एहसास होता था ! स्कूल में गप्प देने के ढेर सारे मसाले मेरे पास हुआ करते थे ! पर मेरे मसाले में मेरे किसी दोस्त को 'इंटरेस्ट' नहीं होता था ! :(  अब कोई मुझसे 'राजनीति' पर कुछ पूछता है य बहस करता है - मै सिर्फ मुस्कुराता हूँ !

इंदिरा गाँधी का क़त्ल हो गया ! चुनाव हुए ! हमारी वार्षिक परीक्षा खत्म हो चुकी थी - बाबा ने अपने बौडी-गार्ड को मुझे गोपालगंज बुलाने के लिए - पटना भेजा था ! बाबु जी 'दांत' पीसते रह गए और मै - चुनाव के मजे लेने के लिए 'पटना' से फरार हो गया ! :) नगीना राय के खिलाफ उनके ही शागिर्द 'काली पाण्डेय' चुनाव लड़ रहे थे - राजनीति का यह अजीब सबक था - अवसरवादिता का ! चुनाव प्रचार में ३०-४० गाडिओं का काफिला - हर गाड़ी में - ढेर सारे - रायफल - बन्दूक ! चुनाव का दिन - अजीब सा टेंशन ! नगीना राय बुरी तरह हार गए ! कुख्यात 'काली पाण्डेय' जीत गया !

धीरे धीरे राजनीति में हम अस्तित्व खोते गए ....

..........जो कुछ बचा ...लालू ने कुचल - मसल दिया ! थोड़ी सी जो दम अभी सांस गिन रही थी - उस पर 'नीतिश कुमार' ने अंतिम वार कर दिया है ! जान छटपटा रही है ....कोई आस पास भी नहीं है ..जो इस जाती हुयी जान को चुल्लू भर पानी पीला दे ............!

पर 'राजनीति' तो खून में है - अभी हमारा 'अंतिम वार' बाकी है - इन्ही उम्मीदों के साथ ...

रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !

8 comments:

Anonymous said...

Indira Gandhi wali photo scan karke upload karte to aur achcha lagta..

Unknown said...

sir kaise lekhte hoo itna accha aap.ek saans main padh jaata hoon.bahoot accha sir!!!!!!

संजय शर्मा said...

"करारा जबाब मिलेगा " मनोज बाजपेयी डायलाग मारते हैं.
कांग्रेस को छूने का इल्म है ये फिल्म .जो सबके सर सवार
रहती है वो है 'राजनीति' .नया क्या होगा प्रकाश की राजनीति में ?
रोज घटित से हम आँखे फेर ,दूसरी तरफ चल देते है लेकिन
परदे पर अपनी सांस को ढाई-तीन घंटे रोके रहते हैं. सो केवल
प्रकाश झा ही राजनीति नहीं जानते दर्शक भी जानता है .

Anil Kumar said...

To khandani congressi hain aap.. No wonder aapko sari khamian nitish kumar mein dikhai deti hain.
Mweri rajniti ak sadharan siddhant pe chalti hai.. pichhale sath salon mein kendra mein 50 saal tak congress raj raha even states mein kahin 40 kahin 50 kahin 60 sal congres raj raha.. in sabke babzood agar bharat ki ye durdash hai to phir pariwartan ki zaroorat hai aur wo congress se to katai nahin aayegi..banki sabki apni apni rajnitik roti.. kisi ke baba congressi hain to kisis ke chacha congree ke ummidwar hain.. in sab baton mein ulajh keapni rajnitik dristikon tay karnma manushya ke vyktigat shiksha ka apmaan hai.. par kiya kya jaaye mere saale saheb mahabal mishra ( anpadh ganwar) ko vote is liye de aaye pichhale election meinnkyunki wo apni jaati ka tha..

Ranjeet Kumar said...

Bahut achchha likha aapne..khaskar Rajnitik sabak "awsarwadita" jahan lagta hai app kuchchh aur bhi likhna chahte them parantu chhupa gaye.

santhariom said...

mitr log ye sab ese hi hai, film aati hai chali jati hai hum log bhi boilte bahut acha hai bas khani the end ho jata hai , isse pahel bhi kai film aai aur gayi, rajnikant ki dubd film the boss shivaji, anil kapoor ki fuilm naam yaad nahi , dost kuch nahi ho sakta mere desh me jiski lathi uski bheas kahavat sahi hai chahe wo village ho ya city sab ek hi rang me range hai , kab sab thik hoga ????????????????

Unknown said...

The blog is quite good & live.
But, I could sense some "Rajniti" & casteism in the blog name "Dalaan" itself. I could sense from the wording & writings that the writer himself belongs to the some land-owning community of Bihar. And if my assumption/guess is correct, Bihar has a long-long way to trudge for bringing the transformation at mental level in the society...

ashok sharma said...

well,i thought,i saw a glimpse of hope in this Nitish kumar,a hope of seeing Bihar come out of its poverty,backwardness,and a hope for the biharis to live with the same pride like other indians were enjoying,if not more.