Friday, June 11, 2010

मेरा गाँव - मेरा देस - भाग आठ

आखिरकार वो कैसी घड़ी रही होगी - जब मोहनदास करमचंद गाँधी - सूट बूट में - चमड़े की सूटकेस और अंग्रेजों की चाबुक ! बैरिस्टर साहब की जिंदगी बदल गयी ! उस वक्त 'ब्लॉग' नहीं होता था - वरना वो अपनी बेइज्जती 'ब्लॉग' पर उतार शांत हो जाते ! खैर ...

क्षेत्रीयता क्या है ? जिंदगी की कुछ घटनाएँ याद हैं ! बात करीब १९८० की रही होगी ! मेरे गाँव में रेलवे स्टेशन नहीं था तो बाबा ने तत्कालीन सांसद स्व० नगीना राय को पत्र लिखा ! उन्होंने ने मदद किया और ५-६ साल में रेलवे विभाग ने एक 'हॉल्ट स्टेशन' पारित कर दिया ! पूरा गाँव खुश था ! पर एक दिक्कत आ गयी - बगल के गाँव वाले उस स्टेशन का नाम अपने गाँव पर रखना चाहते थे - जब यह नहीं हो पाया तो वहाँ के सब से बड़े आदमी ने कुछ 'पैरवी' लगा कर अपने दादा - परदादा के नाम पर 'स्टेशन' का नाम रख दिया ! दोनों गाँव में "आग लग गयी" ! जिनके नाम ये स्टेशन रखा गया - वो भी हमारी जाति के थे - पर यहाँ 'क्षेत्रवाद' उभर कर आ गया ! बाबा चुप थे ! आँखें नाच रही थी ! स्टेशन का उदघाटन का दिन आ गया ! 'तनाव' चरम सीमा पर थी ! उनलोगों ने किसी बड़े आदमी को बुला रखा था - उदघाटन के लिए ! और हमारा गाँव इस जीद पर अडा था की - स्टेशन का 'उदघाटन' मेरे बाबा ही करेंगे ! खैर , पहली ट्रेन रुकी और बाबा की उपस्थिती में स्टेशन चालू हुआ ! उस गाँव के लोग जो हमारी जाति ही नहीं एक गोत्र के भी थे - उनसे 'नेवता - पेहानी' काफी दिन तक बंद रहा !

कहाँ गया 'जातिवाद' ???

दूसरी घटना याद है ! मेरे गाँव में एक बहुत बड़ा "पोखर" है ! पूर्वजों ने उसको एक ब्राह्मण को दान दे दिया था ! वो ब्राह्मण नाव्ल्द हो गए ! उनके मरने के बाद उनकी पत्नी अपनी मायके रहने लगी ! बगल के गाँव में एक आदमी 'ठिकेदारी' से बहुत पैसा कमाया और उस विधवा से जमीन अपने नाम करवा लिया ! क्योंकि , वो पोखर करीब २०-२५ एकड़ में था सो मछली उत्पादन और आय का बहुत श्रोत हो सकता था ! पर एक दिक्कत थी - ब्राह्मण के नहीं रहने के हालत में - वो पोखर धार्मिक कामो में प्रयोग होने लगा और माल मवेशी को नहाने धुलाने में ! हिंदू वहाँ 'छट पूजा' करते थे ! पोखर के पछिम दिशा में बाबा ने मुसलमानों को बुला उनसे चंदा दिलवा - एक छोटी मस्जिद भी बनवा दी ! 'दान' दी हुई चीज़ थी - सो परिवार में किसी को कभी कोई लालच नहीं हुआ - अब वो पुरे गाँव का हो गया था ! पर , ठेकेदार एक दिन मछली मारने पहुंचा ! 'मेरा पूरा गाँव' हल्ला बोल दिया ! कागज़ी तौर पर वो मजबूत था - पर गांव को ये मंजूर नहीं था ! कोर्ट - कचहरी शुरू हुआ ! गाँव के हर घर पर उसकी आमदनी के अनुसार चंदा बाँध दिया गया ! सभी मंजूर कर लिए ! और ये 'मुकदमा' हारते - जीतते अंततः "पोखर" सार्वजनिक घोषित हुआ !

मैंने समाजशास्त्र किसी किताब में नहीं पढ़ी है ! १९८७ के बाद शायद की कोई किताब इन विषयों की पढ़ी हो ! पर , समाज के साथ रहा हूँ - पला बढ़ा हूँ , सो जो महसूस करता हूँ - लिखता हूँ !

मनोविज्ञान को भी नहीं पढ़ा ! पर इसी छोटी उम्र में हजारों लोगों से मिल चूका हूँ ! लोग किस किस अवस्था में कैसे सोचते हैं - पता है ! 

मैंने पहले भी कहा है - मंगल ग्रह पर कोई भी आदमी 'पृथ्वी' का अपना लगेगा ! अमरीका में बैठा 'पाकिस्तानी' करीबी लगेगा ! बंगलौर में 'यू पी ' वाला भाई लगेगा ! दिल्ली में 'बिहार के किसी भी जिले' का कोई भी अपना लगेगा ! बिहार में अपना जिला वाला प्यारा लगेगा ! अपने जिला में अपना गाँव वाला सब से नजदीकी होगा ! अपने गाँव में अपना घर वाला सब से निकट का महसूस होगा ! और परिवार के अंदर - अपनी बीवी - बाल बच्चों के हित में सोचूंगा और बीवी से झगडते वक्त - अपनी दलील पर कायम रहूँगा :)

इन्ही शब्दों के साथ ....

रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !

9 comments:

Jandunia said...

सुंदर पोस्ट

Unknown said...

ye toe raajniti hai sir ji jo ki apne ya apne padosh mae hone waale parivartan nahi dekhan chahega chahe wo kisi gaon ya kisi sehar ya phir kisi desh ka he kiu na hoe....

aur kash kar kae JAATIBAAD toe sadiyo purani kahani hai ise... chahe wo 5 bi century mae gupta period he kiu na hoe..(Gupta period hindu ka swarn kaal kehlaata tha)

आचार्य उदय said...

आईये पढें ... अमृत वाणी।

Sheeba Aslam Fehmi said...

Mukhiya ji. aapka likha isliye dilchasp lagta hai ki isme ek 'dard' jhalakta hai... ek bahut kuchh na pa sakne ka 'dard' .... ek 'dard' jo itihaas me apni sapeksh bhagidari na nibha pane se paida hua hai.
Is dard ka vistaar hota to aur bhi achha hota....aapke saarvjanik Blogpost me 'mera', 'hamara' aadi ka bada istemal hota hai.... aapke 'dard' ki wajah bhi isme hi dhoondhi ja sakti hai...

उपाध्यायजी(Upadhyayjee) said...

Lekin aisa trend aaj kal chal raha hai ki aap eeske oolta sochiye. America me baithe pakistani se kahiye ki kya kshetravad Asia se oopar socho, Bangalore waale se boliye ki kya UP Bihar Hindustan ke baare me socho, Dilli me Bihari ko boliye ki hamko Bihar Vihar se jyada matlab nahin hai. :-)
Main aapke baat se puri tarah sahamat hun.

ashok sharma said...

bahut sunder prastutikaran hai tumhari,mere bhai.

ashok sharma said...

bahut sunder prastutikaran hai tumhari,mere bhai.

mridula pradhan said...

achchi baaten

सृजनगाथा said...

उत्कृष्ट हिंदी ब्लॉगों को समादरण देने की श्रृंखला में आपके ब्लॉग पोस्टिंग को खास तौर पर छापा गया है सृजनगाथा www.srijangatha.com पर । बधाई । srijangatha@gmail.com