Sunday, December 5, 2010

मेरा गाँव - मेरा देस - मेरे बिजनेस

अभी कुछ दिन पहले की एक बात है ! एक बिहारी मित्र के यहाँ दोपहर में बैठा हुआ था वो खुद बहुत ही बड़े व्यापारी हैं - तब तक दो सज्जन आये ! मेरे मित्र ने मुझसे भी उनका परिचय कराया ! मैंने बात ही बात में पूछ दिया - आप दोनों क्या करते हैं ? उनमे से एक ने बोला - अजी , मेरा 'बाल्टी' चलता है ! मै कुछ समझा नहीं - तो दुबारा पूछा - 'क्या ???' वो फिर बोले - ' अजी , मेरा 'बाल्टी' चलता है' ! इस बीच मेरे मित्र मंद मंद मुस्कुराने लगे - वो समझ गए - बात मेरी समझ में नहीं आई है ! मेरे मित्र ने मुझे समझाया की हर शनीवार दिल्ली / एनसीआर के सभी रेड लाईट पर् आपको पीतल का बाल्टी मिलेगा - लोग उसमे 'सरसों का तेल' और पैसा डालते हैं - सो , ये दोनों भाईसाहब का दिल्ली में हर शनीवार करीब 'दो तीन सौ' बाल्टी "लगता" है ! पुर टीम है ! वर्कर है ! टेम्पो है ! शनीवार सुबह टेम्पो पर्  तीन सौ 'बाल्टी' लदा जाता है - हर चौक चौराहा पर् उसको रख दिया जाता है -दिन भर लोग उसमे पैसा डालते हैं और कई सरसों का तेल भी 'शनी भगवन' को खुश करने के लिये !  शाम को उसको उठा लिया जाता है ! मै एकदम से भौच्चक रह गया ! फिर खुद को संभाला और पूछा - टर्नओवर कितना है ? दोनों ने बोला - करीब महीना में साठ हज़ार से एक लाख के बीच काट छांट कर बच जाता है ! 

कॉलेज के ज़माने का एक जिगरी दोस्त होता था - चन्दन ! हमसभी उसको 'पंडीत' कहते थे ! कहता था - 'देखो  , नेता - पैसा सड़क पर् गिरा पडा है - उठाने का कुब्बत और दिमाग चाहिए ! 

पिछला दस साल छोड़ दीजिए तो हम बिहारी या जिस समाज से हम आते हैं - वहाँ 'बिजनेस' का अलग मायने था ! कुछ बिजनेस जो मुझे याद हैं और पसंद भी - उनके बारे में कुछ लिखता हूँ ! 

१. दवा का दूकान :- आप मिडिल क्लास से हैं ! चश्मा वाले पढ़ाकू हैं ! कम्पीटिशन देते देते थक गए ! पहले मेडिकल का दिया , फिर बिहार सरकार का क्लास वन , फिर पीओ , फिर बैंक क्लर्क - कहीं कुछ नहीं हुआ ! थोड़ा ठीक ठाक परिवार के हैं ! एमएससी , एमए कर  के किसी प्राईवेट कॉलेज में बहाल हो गए - तनखाह नहीं मिल रहा ! शादी में भी दिक्कत ! तब तक आपके कोई 'फूफा-मामा' सलाह देंगे 'दवा के दूकान' का ! आपको बिहार के अधिकतर दवा के दुकानदार इसी पृष्ठभूमि से नज़र आयेंगे ! आज ही अपने एक छोटे फुफेरे भाई से पूछा - जो की गोपालगंज में दवा का व्यापार करता है - कितना का टर्नओवर हुआ - बोला , चिंकू भैया - अमकी एक करोड 'ठेक' जायेगा :) ! 
२. किताब का दुकान :- मेरा यह पसंदीदा व्यापार है ! पटना के अशोक राजपथ पर् आपको कई पुराने बंगाली दादा लोग मिल जायेंगे - बेहद मीठे बोलने वाले - मै बंगलौर के गंगा राम और सपना बुक शॉप  में घंटों बिताया हूँ ! किताबों से भी ज्यादा बढ़िया मुझे 'मैग्जीन' के दूकान लगते हैं ! नाला रोड के मैग्जीन कॉर्नर पर् मै एक पाँव पर् खड़े होकर कई शाम बिताएं हैं ! मालूम नहीं इस तरह के दुकान कितने फायदे के रह गए हैं - पर् ये कुछ बेहतरीन बिजनेस में से एक है ! पिछले तीस साल में इसके स्वरुप बदले हैं ! पर् जेंटलमैन का बिजनेस आप इसे कह सकते हैं ! 
३.ठेकेदारी : - समाज के जिस वर्ग से मै आता हूँ - वहाँ हर परिवार में आपको एक 'ठेकेदार' जरुर मिल जायेंगे !   एक से बढ़ कर एक 'ठेकेदार' ! एक शादी में गया - पूछा लड़का क्या करता है ? पता चला एक सिनेमा हॉल में 'साईकील स्टैंड' का "ठीका" है ! पिछले आठ साल से नॉएडा - इंदिरापुरम इलाके में हूँ - मुझे बहुत कम बार 'पार्किंग' देना पड़ा - क्योंकी यहाँ के सभी ठेकेदार 'बिहारी' ही हैं :)) आज़ादी के बाद देश निर्माण के समय दो काम हुआ - उत्तर बिहार में हर घर में लोग सड़क निर्माण के 'ठीकेदार' बन् गए - जो ठेकेदार नहीं बने वो 'शिक्षक' बन् गए ! लालू राज में सब ठेकेदार गायब हो गए - अब नितीश राज में 'शांती' का एक वजह यह भी है की - सभी के सभी छोटे बड़े गुंडे 'सड़क निर्माण' के ठेकेदार बन् अब 'स्कोर्पियो और पजेरो' से नीचे बात ही नहीं करते हैं ! 
४.कोचिंग :- याद है मुझे बंगलौर से बाबु जी को फोन किया था - बोला की 'अब ई नौकरी न होई' ;-) बाबूजी पूछे -त का करोगे - मेरा जबाब था - "कोचिंग" ;) लालू राज में बिहार के सभी शहरों में हर गली की बात छोडिए - हर घर में - एक कोचिंग सेंटर खुल गया था ! जिसको देखिये वही एक चौकी लगा के - दू चार विद्यार्थीओं को पढ़ा रहा है ! अरबपति कोचिंग वाले से लेकर तुरंत का मैट्रीक पास किया हुआ - कोचिंग मालिक तक ;) हर वेरायीटी का कोचिंग मालिक और पढाने वाला ! आई आई टी टॉपर से लेकर घींच घांच के मैट्रीक पास तक ! आज भी बिहार के कई कोचिंग वाले हैं जिनकी सलाना आय करीब पांच करोड से लेकर पन्द्रह करोड तक है ! अगर आप इन् कोचिंग मालिकों की तरफ उंगली उठा दिए तो 'पत्रकार' आपको पटना में जिन्दा जला देंगे :)) जी , मै सच कह रहा हूँ ! सम्राट कामदेव सिंह के जमाने में बिहार के पुलीस अधिकारीओं को एक तनखाह सरकार देती थी दूसरी तनखाह - सम्राट देता था ! ;-) 
५. नर्सिंग होम : अगर आप उत्तर बिहार से गंगा ब्रीज से पटना में घुस रहे हैं तो आपको हर दूसरे मकान में एक नर्सिंग होम मिल जायेगा ! :) खासकर कंकडबाग में ! एक कमरे का नर्सींग होम भी है ! तिलक से मिल रहे पैसे से एक कमरे वाले 'नर्सिंग' होम खुल रहे हैं ! हनुमान मंदिर से लेकर एनआरआई तक इस धंधे में अपना पैसा लगा रहे हैं ! 
पर् , नितीश आगमन पर् इस बिजनेस को बल मिला और पटना में कई पुराने नर्सिंग होम खुद को अपग्रेड किये ! इससे सबसे ज्यादा सहूलियत एनआरबी ( अप्रवासी बिहारी ) को मिला - जिनके माता पिता पटना में रह रहे हैं और बेहतर स्वास्थ्य सेवा उनको मिल सकती हैं ! पटना के डॉक्टरों में एक बीमारी होती थी - खुद को आगे बढ़ाते थे - अपने नर्सिंग होम को नहीं - लेकिन अब ऐसा नहीं है ! 

मै आपको पटना के प्राईवेट हॉस्पिटल के अंदर की एक तस्वीर दिखाता हूँ - जो सन १९८६ में खुला था ! पर् नितीश राज के दौरान यहाँ के प्रोमोटर ने इसको एक नया रूप दिया ! "तारा हॉस्पीटल " - बिस्कोमान के ठीक पीछे - मेरे पिता जी भी यहाँ कार्यरत हैं ! 





रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !

4 comments:

डॉ .अनुराग said...

सच कहूँ तो कंप्यूटर इसलिए कमाल की चीज़ है .....एक आदमी अपने नजरिये से दुनिया को देखता है .ओर बयान करता है ....ओर क्या कमाल से.......

ब्लोगिंग का असल इस्तेमाल है दोस्त ....

Sarvesh said...

patna ka ye hospital wakai saaf suthara hai. Bahut badhiya. Bahut saare oportunities hain bas explore karna hai. Waise wo balti wala kuchh signal outsource karega kya?

निर्मला कपिला said...

हमे तो बाल्टी वाला धन्धा सब से अच्छा लगा। हींग लगे न फटक्री----

Sheeba Aslam Fehmi said...

मज़ा आ गया रंजन जी.