Tuesday, June 1, 2010

मेरा दिल - मेरा बचपन - मेरी जवानी ( भाग - चार )

रांची याद आ गया ! 'नाना जी ' उन दिनों वहाँ 'जिला & सत्र न्यायधीश' हुआ करते थे ! 'डोरंडा' के पास - नेपाल हॉउस में वो रहते थे ! घर में बड़ा ही 'इंटेलेक्चुअल' माहौल था ! सब के आँखों पर चश्मा और सभी के पास वकालत की डिग्री :) हर शाम दिल्ली वाला 'टाइम्स ऑफ इंडिया' सुतरी में लपेटा हुआ आता था ! तब तक मै दोपहर की एक नींद मार चूका होता और अखबार की तरफ टूट पडता था ! आर के लक्ष्मण की कार्टून और इंदिरा गाँधी - शायद उन दिनों 'श्रीमति गाँधी ' रांची आने वाली थीं - मैंने 'नानी' से काफी जिद की - तो 'नाना जी' मुझे पैदल ही श्रीमती गाँधी को दिखने में रोड तक ले गए थे !  यह वक्त था ..१९७६ का ! नाना जी रिटायर हो गए - रांची के अशोक नगर में उन्होंने ने घर बनाया - फिर से दुबारा  हम लोग रांची गए !

ननिहाल में अपने पीढ़ी में सब से बड़ा मै ही था - सभी मामा और मौसी लोग मेरे हर एक जिद को पूरा करने को बेताब ! शायद एक रात मैंने एक जिद कर दी और एक मामू जान ठीक उसी वक्त साइकील से मेरे जिद को पूरा करने के चक्कर में अपना घुटना तुडवा लिए :( हॉस्पिटल में भर्ती हो गए - मै हर रोज एक दूर दराज के मामू के साथ 'बुल्लेट' पर बैठ कर हॉस्पिटल जाता था - बुल्लेट वाले शायद वन पदाधिकारी थे - अब सुना हूँ - बहुत पैसा कमाए हैं - :) हॉस्पिटल में उन दिनों मरीजों को काफी कुछ मिलता था - मामू जान जो मेरे कारण ही घुटना तुडवा चुके थे - मेरे लिए हर रोज हॉस्पिटल से मिले 'सेब' रखते थे ! मुझे सोफ्टी का बहुत शौक था - दूसरे 'हीरो टाईप' मामू जान लोग हर शाम मुझे अशोक नगर से 'फिरायालाल' तक पैदल ले जाते :( मै भी एक सोफ्टी के चक्कर में उनके पीछे 'लटक' जाता था ! बाबु जी नाना जी की बड़ी इज्जत करते थे - जब वो 'रांची' आते ..नाना जी से बहुत कम बोलते थे ! नाना जी 'माँ' को बहुत मानते थे ! बहुत ! नाना जी को सभी घर में 'दादा जी' कहते थे - वो घर में खादी का कुरता - धोती और खडाऊं पहनते थे ! मौसी - मामू लोग के पास एक कैमरा होता था - जिसमे जब कभी भी 'इंदु' फिल्म्स डाला जाता - सब से ज्यादा मेरी ही तस्वीर खींची जाती थी :)

हर शाम 'सौफ्टी' खिलाने के पीछे एक राज हुआ करता था - मामू लोग कभी कभी सिगरेट भी पीते थे - यह बात मै जान चूका था - किसी और को पता नहीं चले - के कारण बेचारे 'मामू जान लोगों ' को मेरी हर बात माननी पडती थी !

नाना जी के घर के ठीक सामने कुछ दूरी पर - अन्धों का एक स्कूल होता था - मै वहाँ जाया करता था - घंटो उनके पास बैठता था ! फिर उदास हो कर वापस लौट आता ! उसमे से कई मेरे दोस्त भी बन गए थे - मालूम नहीं अब वो लोग कहाँ हैं ?

मौसी को नौकरी लगी थी - वहीँ पास में 'ईटकी' नाम के जगह में ! मौसी और मेरे बाबु जी दोनों ने एक ही कॉलेज से स्नातक किया था - जब दोनों मिलते - खूब बहस होती ! एक खासियत थी - नाना जी के यहाँ सब अंग्रेज़ी में ही 'बहस' करने वाले होते थे - हम दोनों बाप बेटा को एक दूसरे का मुह ही ताकते :) खैर , बाबू जी तो बहुत कम ही बार रांची आये ! मुझे याद है - बाबु जी 'स्नाकोत्तर प्रवेश परीक्षा' देने रांची आये थे और मौसी - मामा लोग मेरा 'जन्मदिन' मनाये थे ! केक कटा था :) हम लोग ये 'केक और अंग्रेज़ी' से बहुत दूर रहने वाले परिवार से आते थे :)

१९७९ के जनवरी में चाचा आये थे - हम लोगों को मुजफ्फरपुर ले जाने ! मै दुखी था - नाना - नानी - मामा - मौसी सभी उदास थे ! नानी ने मेरे पॉकेट न जाने कितने पैसों से भर दिया था - रास्ता में सब ..चाचा ने ले लिया था :(

कई वर्ष बाद मेरी दादी ने बताया की ...जज साहब मेरे अपने नाना नहीं हैं ..मेरे नाना के बड़े भाई हैं ...मन बेचैन हो गया था ..मेरे नाना की हत्या को उनके खेतों की रखवाली करने वाले और उनके ही जाति के लोगों ने कर दी थी ..जब मेरी माँ मात्र '४-५' साल की थीं और मेरी नानी की मृत्यु मेरे जनम के ठीक बाद हो गयी  ! कई दिनों तक मै यह जान बेचैन रहता था ... पर वो असीम प्यार कैसे भूल पाता ! पर 'माँ' से या किसी से आज तक नहीं पूछा की ' मेरे नाना ' की हत्या कैसे हुयी ..हिम्मत नहीं हुयी !

अब बहुत कुछ बिखड़ गया ...सब अलग अलग हो गए ...मेरे साथ तो बस कुछ यादें ही रह गयी हैं ..!

हाँ ...लिखना है ..बहुत कुछ !!


रंजन ऋतुराज सिंह - इंदिरापुरम !

4 comments:

माधव( Madhav) said...

nice retrospection of life
carry on

Unknown said...

bahoot jeewant lakhni hai aap ki sir!!!!!!!plz carry on

Unknown said...

sara sansaran jaise jinda ho gaya .. Se sab kahani to thumari mujabani sun chuka hu per Blog per kamal ka likha hai .. Keep writing .. 2 punch was perfect .. Ek camara me Indu FILM and second Chacha sab paisa raste me le leye ...

Ranjeet Kumar said...

"पर 'माँ' से या किसी से आज तक नहीं पूछा की ' मेरे नाना ' की हत्या कैसे हुयी ..हिम्मत नहीं हुयी !" You put all your emotion in this one line....