कभी कभी कोई सुबह बड़ी फीकी सी होती है - बिलकुल बड़े बाबा की चाय की तरह - बिना शक्कर वाली ! सूरज भी उगता है - पर अपने फीकेपन के साथ -दिन भर वो सरकता है ..एक एक इंच - पर अपने फीकेपन को साथ लिए - अखबार है - पर उसी फीकेपन के साथ जैसे सबकुछ तो छपा है पर कोई 'खबर' नहीं छापी गयी ....सबकुछ तो सही है - फिर ये फीकापन - बेहतरीन चाय है , दूध है ...पर एक चम्मच शक्कर नहीं है - आ गया फीकापन !
इस फीकेपन में एक इंतज़ार सा रहता है - जैसे कोई एक चम्मच शक्कर मिला दे ...और अपने शक्कर वाले चम्मच को यूँ ही मेरे दिन के प्याले में छोड़ जाए .... :))
@RR - २० जून २०१३
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