Saturday, October 4, 2014

मेरा बेचारा फरवरी ....


सभी महीने जब आपस में मिल जुल कर बैठे होते हैं - फरवरी भी एक कोना में बैठा होता है - हर साल उस पर नज़र पड जाती है - जींस और टी में - दुबला पतला - मासूम सा - मालूम नहीं क्यों - कई बार पूछने का मन करता है - सभी भाईयों में मात्र 28 दिन ही हिस्से में पाकर ..तुम खुश हो न ! वो एकदम मासूम सा मुस्कुरा कर कहता है ..हाँ ..भैया ..मै खुश हूँ ...दो दिन की कमी को अपने सीने में दफ़न कर ! बाकी के भाई कितने क्रूर हैं - दिसंबर को पास बुला कर पूछा - अपने हिस्से से एक दिन फरवरी को दे दो - दिसंबर का अलग रोना - मुझे मालूम नहीं किसका श्राप - साल का अंत मुझसे ही होता है - ऐसे कौन सा दिन और कौन लेना चाहेगा ! जनवरी का अलग ताव - अलग कुर्सी पर मुकुट लगा के बैठा हुआ - हमसे ही साल की शुरुआत ! मार्च का अलग घमंड - फाइनेंसियल ईयर ख़त्म मुझसे ही होता है - मुझे तो 31 दिन भी कम पड़ते हैं ! जुलाई ने साफ़ मना कर दिया - नियम है तो मुझे एक दिन एक्स्ट्रा मिले - जाईये अगस्त से मांगिये ! अगस्त दिखने में ही दबंग - नियम तोड़ अपने हिस्से में ज्यादा दिन लिया है - अब इससे कौन मुह लगाए ! 
थक गया ..हार गया ...भाइयों की लड़ाई ...फरवरी पास आया ..बोला ...भईया हजारों साल से ...इसी 28 दिन को लेकर खुश हूँ ....एक बार काल को भी मेरे ऊपर दया आया था ...उसने एक वरदान दिया ..हर चौथे साल मुझे एक दिन एक्स्ट्रा ...सच पूछिये तो ...एहसान सा लगता है ...हर चौथे साथ ...सर झुका उस एक दिन को अपने दिनों में जोड़ लेता हूँ ...अब और क्या कहूँ ...दर्द में मालूम नहीं क्या क्या कहे जा रहा था ...
मैंने फरवरी को अपने सीने से लगा लिया ...बोला ...अरे बेवकूफ ...तेरे साथ 'ऋतुराज वसंत' रहता है ...तेरे 28 / 29 बाकिओं के 30/31 से ज्यादा सुहाने हैं ...:)))


@RR - २७ फरवरी - २०१३ 

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