प्रेम के दरवाजे पर आकर्षण बैठा होता है - यह आकर्षण सौन्दर्य / धन / ताकत / ज्ञान / मासूमियत ...किसी भी रूप में हो सकता है ...यह आकर्षण इतना मजबूत होता है ...जीवन में कई बार हम इसी मजबूत दरवाजे पर रुक यहीं फंस जाते हैं ...फिर थक हार लौट जाते हैं ...अन्दर एक विशुद्ध प्रेम इंतज़ार करता है ....फिर एक जोर लगाते है ....सौन्दर्य / धन / ताकत / ज्ञान को तोड़ उस प्रेम तक पहुँचते हैं ....फिर नज़र आता है - एक प्रेम ....
जैसे एक पूजा के समय ....एक बड़े थाल / परात में खीर ....और उस परात में ...तुलसीदल / तुलसी का पत्ता ....उस खीर में ...केसर ....एक पवित्र खुशबू ....फिर आप वहीँ बैठ जाते हैं ...काल की सीमा को तोड़ ....अनंतकाल तक के लिए...और मंदिर का दरवाजा अन्दर से खुद ब खुद बंद हो जाता है ...अनंतकाल तक के लिए ... :))
@RR - 13 February 2013
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