Saturday, October 11, 2014

लेखनी ....और फेसबुक ....:))


एक अकेले दिन में हज़ारों भाव आते हैं ...सैकड़ों कल्पनाएँ मन को छू कर निकल जाती है ...उन्ही में से जो कुछ कलम पर बैठ जाती है ...वही एक शुद्ध लेखन बन जाती है ! एक सकरात्मक भाव में डूब कर लिखना एक आनंद है ! अपनी कल्पनाओं को शब्द पहनाना जहाँ एक छोटा सच भी कहीं छुप कर बैठा होता है - परमआनंद है ! जो लेखनी मन से निकलती है वही लेखनी मन में समाती भी है ! हर एक प्लेटफॉर्म की अपनी अलग अलग खासियत होती है ! फेसबुक एक इंस्टैंट स्टारडम भी देता है पर इसकी अपनी आयु भी है ! यहाँ बहुत कम शब्दों में बहुत कुछ कह जाना होता है ! अब इलेक्ट्रोनिक युग में सोशल मिडिया पर अपने आप को लेखक के रूप में देखना कहाँ तक सही है - कहना मुश्किल है - उसी भीड़ में जहाँ हर कोई अपने मन का कह रहा है - तब जब आप अपनी कल्पना को कह रहे हैं ! 
कई बार आप अपनी एक पूर्णता के तरफ होते हैं - तब आप एक ऑर्बिट से दुसरे ऑर्बिट में प्रवेश करना चाहते हैं - तब एक बहुत फ़ोर्स की जरुरत होती है - बाज़ार बहुत बड़ा है और यहाँ हर एक चीज़ की क़द्र है - यह तो मैंने देखा है - महसूस भी किया है ! मैंने पिछले दो - ढाई साल में - अपनी लेखनी में काफी विविधता को लाया - बगैर इस चिंता के - सामने वाला मेरी कैसी छवी बनाता है - जो रंग पेश करूँगा वही रंग लोग देखेंगे - यह तो तय है ! शब्दों से चित्रकारी करना ...मजा आता है ....:)) 
थैंक्स ...!!!


@RR - ११ ओक्टोबर २०१४ 

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