इंसानी रिश्तों की तरह ...शहर से भी रिश्ते बन जाया करते हैं ...रूह की कुछ बूँदें ..किसी गली चौराहे पर टपक जाया करती हैं ....वर्षों बाद भी उनकी खुशबू ..बेचैन करेगी ...कभी कोई गली - मकान सवाल नहीं करेगा ...बस मौन होकर मेरा मुह ताकेगा ....नज़रें झुका हम किसी सड़क पर निकल पड़ेंगे ...मेरी झुकी नज़रों में भी दर्द होगा ...सडकों को एहसास हो न हो ...दीवारों को सब पता होगा ....
@RR - 25 Feb - 2013
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