Sunday, October 5, 2014

हैदर ....विशाल भारद्वाज

हैदर ....विशाल भारद्वाज


कल शाम विशाल भारद्वाज की हैदर देखा ! विशाल भारद्वाज ने कई सिनेमा बनाए - पर यह मेरी पहली सिनेमा थी - फिल्मची नहीं हूँ ! 
सबसे बढ़िया लगा - विशाल ने अपने पिता स्व० राम भारद्वाज की तस्वीर भी दिखाई - संस्कार ज़िंदा है ! पर एक सवाल विशाल से - यार ...औरत की बेवफ़ाई और उस बेवफ़ाई से बिखरते घर क्यों दिखाते हो ? कोई ख़ास वजह ? खैर ...मैंने शेक्सपीयर नहीं पढ़ा है बस तुम्हारा सिनेमा देखा !

कश्मीर के कई सच से रूबरू कराती यह सिनेमा कई बार डॉक्युमेंट्री जैसी भी लगती है - तीन घंटे की यह सिनेमा कई बार स्लो भी दिखती है ! तब्बू अपनी उम्र से ज्यादा दिख रही है - हमें आपका विजयपथ का वो गाना 'रुक रुक' का पहला वर्सन आज भी जेहन में है - दिल मत तोडिये ...:)) तब्बू के पति बने अपने बिहार के नरेन्द्र एक आदर्श डॉक्टर की छवी को बखूबी निभाये हैं - उन्हें विशाल को धन्यवाद देना चाहिए - पुरी फिल्म में नरेन्द्र बहुत कम समय के लिए दिखे हैं पर कहानी ऐसी है की दर्शक उन्हें तीन घंटे नहीं भूल सकते ! के के मेनन हमेशा की तरह - लाजबाब ! इरफ़ान विशाल की मजबूरी से दिखे हैं ! शाहीद कपूर और श्रद्धा कपूर ठीक ही हैं - सिनेमा का सबसे ज्यादा फायदा उनको ही मिला ! 

हर सिनेमा की तरह यह भी एक सिनेमा - स्त्री पुरुष के सम्बन्ध के इर्द गिर्द घुमती ! छल , चाहत और प्रेम में डूबी यह सिनेमा और इसके माध्यम से यही समझ में आया - शेक्सपीयर के जमाने से लेकर अभी तक के जमाने में - मानव स्वभाव में कोई अंतर नहीं आया है ! पुत्र दुनिया में सबसे ज्यादा पवित्र अपनी माँ को ही मानता है - वो किसी भी अन्य पुरुष को अपनी माँ के नज़दीक नहीं देखना चाहता - भले ही उसका बाप क्यों न हो ...और जीवन में आकर्षण / रोमांस / छल के आगे भी एक ख़ूबसूरत चीज़ इंतज़ार करती है और वो है - प्रेम ! छल को प्रेम समझ उसे अपनाने वाले सिर्फ अपनी ही ज़िंदगी नहीं बल्की कई और ज़िंदगी भी बर्बाद करते हैं ! 


@RR - 5 October 2014 

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