कभी - कभी लगता है भगवान् जी हम इंसानों का ज़िंदगी सत्तर - अस्सी साल का देकर एकदम से छूछे रख दिए ज़िंदगी कम से कम दो सौ साल का होना चाहिए था - पच्चीस साल बचपन - पच्चीस साल बुढापा और बीच में डेढ़ सौ साल 'जवानी' - तीन पार्ट में - पचास - पचास साल का तीन पार्ट ! जवानी पहला पार्ट में पढ़िए लिखिए - ऐश कीजिए - गर्ल फ्रेंड / बॉय फ्रेंड घुमाईये - जवानी पार्ट टू में घर गृहस्थी - नौकरी चाकरी / बाल बच्चा और जवानी पार्ट थ्री में - सबकुछ त्याग करके अपना मन का काम - लिखाई पढ़ाई / दर्शन शास्त्र /राजनीति - जे मन उहे कीजिए - कोई दबाब नहीं !
ई ज़िंदगी में एक काम शुरू कीजिए की दूसरा काम घंटी बजाने लगता है कभी कभी लगता है बड़का पलंग पर चश्मा पहिन के बैठल है और ढेर सारा फाईल खुलल है ...:((
हा हा हा हा ...कल्पना कीजिए दो सौ साल की ज़िंदगी और डेढ़ सौ साल का जवानी - पचास पचास साल का तीन पार्ट :)) डबल इंटरवल के साथ ! राजकपूर के संगम सिनेमा जैसा ..:))
एन्जॉय योर वीकएंड ...
~ रंजन ऋतुराज
@RR - २४ मई - २०१४
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