Monday, September 29, 2014

जब हमलोग बच्चा होते थे.....


जब हमलोग बच्चा होते थे - बाबु जी के दोस्त महिम टहलते हुए शाम को आते थे - गप्प के लिए - हाथ में एक टोर्च और एक छाता लिए हुए - पैंट का मोहरी ऊपर तक मोड हुए - एक शिकायत के साथ - महाराज ...आपके गली में भर ठेहुना पानी लगा हुआ है ....:)) अलग अलग व्यक्तित्व के मालिक लोग ....कोई एकदम सीरियस टाईप ..कोई खुल कर हंसने वाले ..कोई हमलोगों से तरह तरह के सवाल पूछने वाले - बाबु जी के वैसे दोस्तों के हिसाब से हमलोगों की शाम होती थी - कोई लम्ब्रेटा से तो कोई विजय सुपर से - कोई राजदूत से तो कोई बुलेट वाला - फिर फिएट वाले- तो कोई पैदल - खिड़की से झांक लेते थे - कौन सा गाडी रुका है - उसके हिसाब से हम लोग अपना मूड बनाते थे - पढना है या ऐसे ही लाफाशूटिंग - बज़ट से लेकर स्थानीय कॉलेज का पोलिटिक्स - सब चर्चा ...गप्प सुनने में मज़ा आता था - तब तक कोई टोक दिया - नहीं पढ़ना है तो अभी ही बता दो - तब माथा एकदम से झन्न झन्न करने लगता था ...
कोई कोई बिना छाता के भी आते थे - छाता लेकर उनको घर तक छोड़ने जाओ - रास्ता भर दिल धक् धक् करता था - ऐसा ना 'अंकल' रिज़ल्ट पूछ दें ..हा हा हा हा ...कहाँ गए वो दिन ...:))

@RR  - १० जुलाई - २०१४ 

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