छोटे शहर भी अजीब होते हैं - जिस मोड़ ...जिस रूप में .. हम उन्हें छोड़ के जाते हैं ...वो वहीँ ..उसी रूप में ...वर्षों बाद भी खड़े मिलते हैं ...! वो मेरे गली के चौराहे पर 'चाट वाला' ..आज पचीस साल बाद भी ..उसका ठेला वैसा ही है ..उसके प्लेट और एक तरफ से घिसे हुए चम्मच भी वही हैं ...उसके चाट का स्वाद भी वही है ..आज भी जूठे प्लेट इधर उधर रख देने से ...वो उसी गुस्सा में बोलता है ...जब हम हाईस्कूल में होते थे ....! मेरी गली में वो परचून की दूकान ...जिसके काउंटर पर सीसे के मर्तबान में रखे मोर्टन के टॉफी की जगह नए ब्रांड आ गए पर वो सीसे का मर्तबान वही है ...जिसके ढक्कन में जंघ लग गयी है ...वो जंघ तो पचीस साल पहले भी लगी हुई थी ...उसके दूकान से मरे हुए चूहे की गंध भी वही है ...और वो साव जी ...आज भी गेहूं की बोरी पर बैठ ...महीने का सामान लिखते हैं ...पैसा मिल जाएगा ...'बौउआ' आप घर जाईये ..सामान पहुँच जायेगा ...मै क्यों नहीं उनकी नज़र में 'बड़ा' हुआ ...आज भी 'बौउआ' ही हूँ ...हर बार सोचता हूँ ...अगली बार उनके लिए भी कुछ लाऊंगा और हर बार भूल जाता हूँ ...! और एअरपोर्ट पर खडा मेरे पापा का ड्राईवर 'सोनेलाल' ...फ्लाईंग शर्ट को ऊपर से पहने ...पीछे हाथ ...प्रणाम कह ...तुरंत मेरे सामान को ले लेना ...तीस साल हो गए उसको ...दस साल में हमने कई नौकरी बदल ली ....वो क्यों हमारे परिवार से चिपका हुआ है ...क्यों सोनेलाल को देख एक निश्चिंती मिलती है ...पापा सुरक्षित हैं ..'सोनेलाल' हर बार एअरपोर्ट पर छोड़ने आता है ...अगली बार रिसीव करने के लिए !
पड़ोस की डाक्टर आंटी ...सत्तर की होने आयीं ...आज भी उसी अंदाज़ अपने फिएट से उतरती हैं ...सबकुछ बदल गया ...नयी गाडी भी आ गयी ...पर उनके गैराज में ..आज भी वो हलके हरे रंग की फिएट खड़ी रहती है - जिसमे गेयर स्टीरिंग के साथ होता था ...कभी कभी वो चलाती हैं...सिल्क साड़ी और स्लीवलेस में ...सारी दुनिया देख लिया ...वो कान्फिडेंस और खुबसूरती अब क्यों नहीं नज़र आती ...हमारी जेनेरेशन तो ज्यादा पढी लिखी और एडवांस है ...न !
जब सारी दुनिया बदल रही है ...वो क्यों नहीं बदलता ...जहाँ हमारे बचपन की 'रूह' कैद है ...सबको बदल जाने दो ...तुम मत बदलना ....!
~ रंजू
@RR - २२ जून - २०१४
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