Saturday, September 27, 2014

सिनेमा - सिनेमा - लाईफ ऑफ़ पाई


सिनेमा - सिनेमा - लाईफ ऑफ़ पाई 
बहुत ही कम सिनेमा देखता हूँ - कल छुट्टी का दिन था - सुबह से कुछ ताना बाना - अचानक दोपहर घर के ठीक सामने वाले मल्टीप्लेक्स से शाम का टिकट कटा लिया ! दुर्भाग्यवश , जैसा की गुलज़ार साहब ने लिखा है - किताबों की जगह 'इंटरनेट' ने ले लिया है  अब थक हार - सिनेमा के माध्यम से ही जीवन दर्शन को देख रहे हैं - हर कहानी कुछ तो जरुर कहती है ! 
यह सिनेमा पुरी तरह जीवन दर्शन के एक मजबूत स्तम्भ 'विश्वास' को लेकर बनाई गयी है ! नायक एक टीनएजर लड़का है - जिसके पिता एक चिड़ियाघर के मालिक है और अपने जानवरों के साथ कनाडा के लिए एक समुद्री जहाज पर निकल पड़ते हैं - बीच समुद्र में तूफ़ान में जहाज डूब जाता है - नायक अपने माता पिता भाई को खो कर - एक नौका में अन्य जानवरों के साथ बच जाता है - जहाँ एक अदना सा लोमड़ी ज़ेबरा / चिम्पांजी जैसे जानवरों को नायक के सामने मार देता है फिर उस लोमड़ी को नौका में ही सवार बंगाल टाईगर मार गिराता है ! फिर अब नौका पर - नायक और बंगाल टाईगर - फिर दो सौ से भी ऊपर दिनों का अनजान सफ़र - नायक में असीम साहस और बंगाल टाईगर अपने प्रकृती के विपरीत - नायक के साथ ! 
यह किसकी कहानी है - यह उनलोगों की कहानी है - जिनमे असीम साहस और विश्वास भरा है - अंत तक लड़ने की क्षमता है और संभवतः यही 'जीवन' है ! जीवन के विषम सिचुएशन में ही - आपको प्रकृति का अदभुत नज़ारा भी देखने को मिलता है ! जब बीच समुद्र में बिजली गिरती है - नायक अकेला अपने बंगाल टाईगर के साथ चिल्लाता है - उस नज़ारे को देख वो हैरान है ! 
एक दिन यहाँ से जाना तो सबको है - एक लड़ाई लड़ने में क्या हर्ज़ है - एक मुट्ठी साहस और एक मुट्ठी विश्वास - फिर देखिये ...जीने का मजा !!
'बंगाल टाईगर' आपके साथ है - विश्वास कीजिए :)))
~~ रंजन
~ २९ नवम्बर - २०१२
@RR

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