व्यक्ती , समाज और सरकार में सबसे महत्वपूर्ण 'समाज' होता है ! कई बार व्यक्ती या सरकार को यह गलतफहमी हो जाती है वो समाज से बड़ा हो गया है और फिर वहीँ से उस व्यक्ती या सरकार का पतन शुरू हो जाता है ! आपकी क्षमता को देखते हुए 'समाज' किसी ख़ास व्यक्ती को यह अधिकार देता है - की - आप सरकार के द्वारा 'समाज' की रक्षा करें या एक नेतृत्व प्रदान करें - समाज उसके अनुशरण को तैयार रहता है - अगर आप विचलित हुए / कमज़ोर हुए 'समाज' अपना नया नेता बना लेगा ! कई बार उस नेता की बातें समाज समझ नहीं पाता - फिर वो एक ऐसी नेतृत्व की तलाश करता है जो उनकी वर्तमान स्थिती को समझते हुए समाज की भाषा में अपना 'विजन' बताये !
समाज हमेशा से विभाजित रहा है - कभी क्षेत्र के नाम पर - कभी जाति तो कभी धर्म तो कभी विचारधारा - जो मजबूत होगा वो आगे आएगा !
समाज का वर्गीकरण अलग अलग ढंग से हुआ है - इस पोस्ट में मै - समाज का वर्गीकरण उम्र के हिसाब से कर रहा हूँ ! हर इंसान अपने दौर में ज़िंदा रहता है वहीँ उसका स्वाद बनता है वहीँ उसकी सोच बनती है ...:))
प्रथम - 65+ वाले - आपमें से अधिकतर अपनी बहुत सारी जिम्मेदारी से मुक्त है - जीवन के अनुभव को समझते हुए भी कई बार चुप रहते हैं ! आपको किसी धर्म - जाति / उंच नीच से कोई मतलब नहीं - आपके औलाद अपनी क्षमता के अनुसार ज़िंदगी जी रहे हैं - सरकार किसी की भी आये - आपको बस टीवी देख मुस्कुराना है ...
दुसरे - 35 से 50 वाले - आप त्रिशंकु में है - रेडिओ से अपना सफ़र शुरू किया और आज इंटरनेट के भी बादशाह है - आप धोती भी ट्राई करते हैं और शॉर्ट्स पहन कर जॉगिंग करते हैं ! आप ऊपर से चिकने हैं - अन्दर अपनी जाति / धर्म के लिए प्रेम है ! जहाँ हैं - वहां धीरे धीरे पावर की तरफ बढ़ रहे हैं ! आप अपना दीमाग और दिल को बैलेंस बनाने के ज्यादा वक्त लगाते हैं ! जहाँ देखे खीर वहीँ गए फीर ( पलट ) ...:))
तीसरे - 18 से 35 वाले - आप हैं युवा शक्ती - जबरदस्त फ़ोर्स के साथ - मोदी को सितारा बनाने वाले - किसी को भी जमीन से उठा फलक बैठाने को तैयार - कोई जाति / लिंग भेद नहीं ! अपनी पत्नी / प्रेमिका के साथ मित्रवत व्यवहार - राजनीति की परख - बुड्ढों की जटिलता से तंग - देश सर्वप्रथम - किसी भी तरह का एक्सपेरिमेंट को तैयार - खाली पन्नों पर कुछ भी लिखने को तैयार ! आपको सलाम - अनुभव की जरुरत नहीं - गूगल है ..न ..:))
चौथे - 50 से 65 वाले - आप महान हैं - सारी शक्ती जाती रही फिर भी सबकुछ अपने कण्ट्रोल में रखनी की जिद - अपने अहंकार के सामने सब कुछ बौना - हर तरह की जटिलता के शिकार - फिर भी उम्र के आधार पर सब कुछ आपके पास - ना तो इधर के ना उधर के - थोड़ा अवसर मिले तो सबकुछ अपने चरणों में - घर हो या ओफ्फिस - कितना भी कोशिश कर ले ...आपकी संकीर्णता आपके साथ चिता पर जायेगी ...:))
दोस्तों ...जो कुछ लिखा हूँ ..बेहद व्यक्तिगत अनुभव पर ...पुरे लोकसभा चुनाव चुप रहा ...आस पास हो रही घटनाओं को समझ रहा था ...बस एक दो दिन और ...फिर उसके बाद दालान अपने पुराने कलेवर में रहेगा - एक ही परिवार में लोग अलग अलग विचारधारा के होते हैं - अपनी अपनी मजबूरी होती है - पर परिवार वही मजबूत होता है जो शाम में एक साथ एक ही डाईनिंग टेबल पर खाए - संबंधों के बीच विचारधरा आड़े नहीं आनी चाहिए - गाली देने का मन है दीजिये - पर पुरी बात सुनिए ...:))
"मांझी जी बिहार के मुख्यमंत्री बनने के बाद सबसे पहले जगनाथ मिश्र के घर गए - यह कहते हुए - राजनीति का पहला ब्रेक उन्होंने ही दिया था - यह भी हमारा संस्कार होता है - आँख में पानी " ....:))
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