Saturday, September 27, 2014

गैंग्स ऑफ़ वासेपुर

स्व० वी ० पी ० सिन्हा 
बा
त 1956-57 की रही होगी। पटना जिले के बाढ़ अनुमंडल का एक नवयुवक ‘बीपी सिन्हा’ अपने जीवन यापन के लिए धनबाद पहुंचता है। तेज तर्रार – ओजस्वी। वहां की स्थिति भांप वह नवयुवक बहुत तेजी से मजदूर यूनियन में अपनी जगह बनाता है। नेतृत्व संभालता है। यहीं बीज पड़ा था, गैंग्स ऑफ वासेपुर का।
देखते–देखते वह नवयुवक पूरे कोयला क्षेत्र पर अपनी पकड़ मजबूत बनाता है – बिलकुल सिनेमा के माफिक। पर उसे ताकत की जरूरत महसूस होती है। इसी बीच उसके गैंग में शामिल होता है, बलिया का एक मजदूर – सूरजदेव सिंह। अब सूरजदेव सिंह बीपी सिन्हा का बॉडीगार्ड ही नहीं, उसका दाहिना हाथ भी बन जाता है। दस साल के अंदर पूरे कोयला क्षेत्र में बीपी सिन्हा इतने मजबूत हो जाते हैं कि वो अपने माली ‘बिंदेश्वरी दुबे’ को भी मजदूर नेता बना देते हैं। अमरीका से बाहर – व्हाइट हॉउस पहली दफा ‘धनबाद’ में ही बनता है।
अगले दस साल और बीपी सिन्हा बेताज बादशाह बने रहे। कहते हैं, उस दौरान उनकी बात स्व इंदिरा गांधी से हॉटलाइन पर होती थी। सूरजदेव सिंह भी अपने मालिक के साथ मजबूत होते गये। जाति का घुन लगना शुरू हो गया। आवाज उठने लगी, लाठी हमारी तो मिल्कियत भी हमारी। बीपी सिन्हा थोड़े विचलित हुए और अपने लोगों को आगे करने लगे। बिहार की महशूर जातिगत दुश्मनी इस कदर फैल गयी कि एक दो साल में कई हत्याएं हुई।
इसी बीच सत्ता से बाहर रहने के कारण इंदिरा गांधी भी कमजोर हो चुकी थीं। पूर्व प्रधानमंत्री और तब के युवा तुर्क नेता ‘चंद्रशेखर’ ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी। खाई बहुत बड़ी हो चुकी थी। फिर भी बीपी सिन्हा का सूरजदेव सिंह पर जबरदस्त विश्वास रहा। सूरजदेव सिंह का रात बिरात व्‍हाइट हॉउस में आना जाना और गुरुमंत्र जारी रहा। फिर एक रात अपनों ने व्‍हाइट हॉउस में खून की गंगा बहा दी। जिन हाथों ने जिनको चलना सिखाया, उन्ही हाथों ने अपने राजनीतिक बाप की क्रूर हत्या कर अपने दिल को ठंडक पंहुचायी। दहल गया कोयलरी क्षेत्र। व्‍हाइट हॉउस की चमक खत्म हुई और ‘सिंह मैन्सन’ का झंडा लहराने लगा।
धीरे–धीरे बीपी सिन्हा के लोग हर सप्ताह मारे जाने लगे। आज झारखंड के हर शहर का दबंग अपने मकान का नाम ‘सिंह मैन्सन’ रखता है। रांची में भी सभी बड़े ठेकेदार अपने मकान का नाम ‘सिंह मैनसन’ ही रखते हैं।
कुदरत का खेल देखिए – आज खुद उस धनबाद के सिंह मैन्‍सन में करीब सोलह विधवा रहती हैं। कई वरिष्ठ पत्रकार बीपी सिन्हा को ‘बेनाईन डॉन’ कहते थे। यानी जिसके पनपने से कोई खतरा नहीं। परिवार बंट ही नहीं चुका, आपस में भी कई हत्याएं हो चुकी हैं।
दरअसल उस दौर में एक और डॉन और स्मगलर पैदा हुए थे। बेगूसराय के ‘सम्राट कामदेव सिंह’। कहते हैं ‘कामदेव सिंह’ के गोदाम के गेटकीपर के पास भी आज पटना में करोड़ों की धन संपदा है। वो खुद बेगूसराय के रोबिनहुड थे। हर साल अपने क्षेत्र में सैकड़ों गरीब बाप की बेटी की शादी का पूरा खर्च उठाते थे। वो खुद कम्युनिस्ट विचारधारा के मालिक थे, पर इंदिरा गांधी का आशीर्वाद मिला हुआ था। जब इंदिरा गांधी बेगूसराय आयीं, तब उन्होंने एक नंबर से लेकर सौ तक, सभी सफेद एंबेसेडर से उनका स्वागत किया था। इनकी भी हत्या तब ही हुई, जब इंदिरा गांधी थोड़ी कमजोर हुईं।
टाइम्स ऑफ इंडिया जब पटना संस्करण लेकर आया, तो उसने अपने प्रथम पृष्ठ पर इसी कामदेव सिंह को लेकर शुरुआत की। कहते हैं, बिहार पुलिस के वो सभी अधिकारी जो नेपाल सीमा पर पोस्टेड थे, जितनी तनख्‍वाह सरकार उन्‍हें देती थी, उतनी ही तनख्‍वाह कामदेव सिंह उन्‍हें देता था।
“इस ताबूत में कई कील हैं … अभी और कील लगने बाकी हैं!”

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