आँगन से बारिश की बूंदा - बांदी की आवाज़ आने लगी।
झाँक कर देखा तो मुंडेर से लटकते पीपल के पेड़ के पत्ते बारिश में झूम रहे थे। ।
मैं भाग कर बाहर गया। …
काले घने बदल आसमान पे घिर आये थे। … उनके बीच कभी कभी कड़कड़ाती हुई बिजली। ।
मुसलाधार वर्षा।
प्रकृति मानो धरती को सींच रही हो।
मैं बारिश में खूब देर भीगा। …
तब तक जब तक तन ही नहीं मन भी भीगा। ....
मन ताज़गी से भर गया। … उन्मुक्त हो गया। .... चिंतामुक्त हुआ। ।
फिर।
बादलों को चीरती हुई हलकी सी धुप निकली।
पल में रंग बदलता आसमान। ....
आसमान पे और मेरे मन पे अब एक इन्द्रधनुष सी खिंच गयी. …।
@......२१ जुलाई - २०१३
@......२१ जुलाई - २०१३
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