Monday, September 29, 2014

शब्दों की शक्ती ....


शक्ती स्त्रीलिंग शब्द है और पुरुष कमज़ोर और यहीं से शुरू होती है - शक्ती की चाहत - हर सफल पुरुष के पीछे एक स्त्री का 'आशीर्वाद / साथ' होता है ! खैर ...शक्ती हर तरह की होती है - मै जिस धर्म को मानता हूँ वहां उन शक्तीओं को मोटे तौर पर 'दुर्गा - लक्ष्मी- सरस्वती' के रूप में दर्शाया गया है - दुनिया बहुत बड़ी है और हर तरह की शक्ती होती है - धन की शक्ती , बाहुबल की शक्ती , ज्ञान की शक्ती ...भावनात्मक शक्ती ...हर तरह की शक्ती ...हर पुरुष की कामना होती है वो किसी ना किसी एक शक्ती से परिपूर्ण हो ...सर्वप्रथम उस शक्ती को ग्रहण करने के लिए आपको खुद को तैयार करना होगा ...फिर उनलोगों के समीप जाना होगा जिनके पास वो शक्ती है ...मसलन आपको धन कमाने की तमन्ना है ...फिर लक्ष्मी पुत्रों के समीप जाना होगा ...वहीँ से आपको प्रेरणा / रास्ता दिखेगा और मदद भी ! अब आपको ज्ञान की शक्ती की चाहत है फिर बेहतर होगा आप अपने विषय के किसी ज्ञानी के पास जाएँ ...वहां ज्ञान प्राप्त करने का एक माहौल मिलेगा - हाँ ..उसके पहले आपको खुद को तैयार करना होगा ...! 
जीवन के हर क्षण एक जैसे नहीं होते - मजबूत से मजबूत इंसान भी एक समय कमज़ोर होता है - वहां उसे भावनात्मक शक्ती की जरुरत होती है - दुनिया का सब भोग रहते हुए भी वो खुद को अन्दर से कमज़ोर पाता है - ऐसे पल में भावनात्मक रूप से मजबूत इंसान उसे मजबूत बना सकता है ...शब्दों में इतनी ताकत होती है की वो सकरात्मक शब्द किसी को भी कहीं से भी खिंच किसी भी शिखर तक पहुंचा सकते हैं ....
धन / ज्ञान / बाहुबल ...कोई भी शक्ती तभी आपको सुशोभित करेगी जब आप भावनात्मक स्तर पर मजबूत होंगे ...वरना वो सब फीका लगता है ...हाँ ...कोई भी शक्ती जब आपको परिपूर्ण करेगी ...वो शक्ती है ...ताकतवर है ...पूर्ण है ....सर्वप्रथम आपके अहंकार को समाप्त करेगी ...:))

@RR - २३ जुलाई - २०१४ 

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