बचपन की बातें हैं - बडका भईया का छोटका साला - गुड्डू - उम्र में तीन साल बड़ा होगा - भौजी जब कभी मायके जाती - हम भी साथ हो जाते - गुड्डू 'गुड्डी' उड़ाने में उस्ताद - हम दिन भर उसके पीछे - पीछे ! गुड्डू गरमी / जाड़ा की छुट्टी में भी हमारे गाँव आता था - कभी लटटू का माहौल तो कभी 'गोली' ( कंचे ) - कभी गुल्ली - डंडा तो कभी कबड्डी ! पढ़ने में एकदम बुरबक - कहानी गढ़ने में उस्ताद - आज भी याद है - पहली दफा उसने ही झूठ बोलना सिखाया था - घर में सब कहते 'गुड्डूआ' के चक्कर में हम बर्बाद हो रहे हैं ! पास - फेल करते करते - गुड्डू भी मेरी ही क्लास में आ गया ! मैट्रिक में हम टॉप किये तो गुड्डू घींच घांच के पास ! फिर मेरे सहारे ही वो 'इंटर' किया ! मै मेडिकल स्कूल में गया और गुड्डू पास वाले इंजीनियरिंग में ! फिर हम दोनों साथ ही पास किये - गुड्डू विदेश निकल गया - मै बिहार सरकार ज्वाइन कर लिया ! फिर कभी मुलाकात नहीं हुई - यादों पर् पर्दा गिर गया !
एक देर रात दरवाजे पर् खट खट की आवाज़ हुई ! दरवाजा खोला तो गुड्डू - बाहर एक टैक्सी खड़ी थी - गुड्डू लाल सूट - बूट में खडा ! धम्म से मेरे सीसम वाली कुर्सी पर् बैठ गया ! हाथ में एक बड़ा सा सूटकेस था - मेरे मुह से कुछ नहीं निकल पा रहा था - फिर वो बोला - 'होटल' के लिये निकल रहा हूँ - ये सूटकेस अपने पास रखो - सुबह आकर ले लूँगा - मै बिलकुल निशब्द था - गुड्डू के रूप - हाव भाव को देखकर ! वो उसी टैक्सी से निकल गया !
बहुत देर तक मै गुड्डू के सूटकेस को देखता रहा - फिर थोडा नोर्मल हुआ तो गुड्डू के सूटकेस को खोलने की चाहत हुई - सोचा बंद होगा - लॉक होगा - फिर मन नहीं माना - एक ट्राई किया - अरे..ये क्या ..कोई लॉक नहीं ...धीरे से सूटकेस को दीवान पर् रखा और खोल दिया ....ये क्या ...पुरे पचास हज़ार डॉलर ...और दो चार कपडे ..बस ! मै उस खुले सूटकेस को यूँ ही छोड़ वापस कुर्सी पर् बैठ गया ...और पूरा बचपन फ्लैश बैक में दिखने लगा !
समझ गया ...गुड्डू ने जानबूझ कर सूटकेस को खुला रख छोड़ा था ...एक बड़ा सा आइना मेरे सामने खडा कर दिया ..जिसमे मुझे अपनी अवकात नज़र आ रही थी ...पूरी रात उसी सीसम वाली कुर्सी पर् ही निकल गयी !
[ यह सच्ची कहानी है ..पात्र और सम्बन्ध भी वहीँ हैं ..बस कहानी तीस - चालीस साल पुरानी है ]
~ 9 Feb - 2012
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