दिल्ली में मेरे एक बिहारी मित्र होते थे - उम्र में पांच / छः साल बड़े ! बेहतरीन वक्ता और अपने क्षेत्र में एक नामी गिरामी पर्सनाल्टी और खुद भी दिल्ली से पढ़े लिखे थे सो नेटवर्किंग भी जबरदस्त ! देर शाम अक्सर फोन पर लम्बी वार्तालाप होती थी !
उनके दादा जी / पिता जी इत्यादी भी देश के बेहतरीन स्कूल कॉलेज से पढ़े लिखे थे - उनके दादा जी सेंट स्टीफेंस के बेहतरीन विद्यार्थी होने के बाद - अपने गाँव लौट आये और खेती बाड़ी में व्यस्त हो गए !
बहुत वर्षों बाद - उनके स्टीफेंस के दोस्तों ने उनको याद किया - श्रीमति इंदिरा गांधी तुमसे मिलना चाहती हैं - यह खबर मिलते ही वो दिल्ली रवाना हो गए - तब श्रीमति इंदिरा गांधी नयी नयी प्रधानमंत्री बनी थीं - श्रीमति गांधी ने उनसे यूरोप के एक प्रमुख राष्ट्र का 'राजदूत' बनने का ऑफर दिया - वो अचानक से चुप हो गए - एक महीना का समय लेकर अपने गाँव वापस लौट गए !
गाँव में अपने दोस्तों की महफ़िल बुलाकर - यह प्रस्ताव सबको बताया ! एक ने कहा - "इसका मतलब आपको इंदिरा गांधी का नौकरी करना होगा - वो जो कहेगी वही करना होगा - जिस दिन मन करेगा आपको हटा देगी " .......हा हा हा हा ....यह बात बुरी तरह से मेरे मित्र के दादा जी को चुभ गयी ...उन्होंने उसी वक़्त प्रधानमंत्री कार्यालय को पत्र लिख अपने नए निर्णय से अवगत करा दिया ..मुझे यूरोप पसंद पर आपकी नौकरी के रूप में नहीं !
हा हा हा हा ....कल्पना कीजिए ...मेरे मित्र के दादा जी के व्यक्तित्व को ...मिजाज़ भी एक चीज़ होता है ...:))
@RR - २५ जून - २०१४
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