इंसान की ज़िंदगी भी अजीब होती है - जब वो छुप कर खुद की कहानी लिख रहा होता है - तभी न जाने कहाँ से कुछ और पन्ने ....किसी और कहानी के उड़ के उसके पास आ जाते है - वो उन्हें पढता है फिर उन पन्नों को अपनी अधूरी कहानी के बीच रख देता है ...और फिर अगली सुबह वो पन्ने उसकी अधूरी कहानी को पुरी करते नज़र आते हैं ...जैसे उन्ही पन्नों की तलाश में उसकी कहानी अधूरी रुकी हुई थी ...पर अगर वो पन्ने उड़ कर उसके पास नहीं आते ...फिर उसकी कहानी कैसी होती ...:))
@RR - १३ अप्रैल २०१४
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